15-May-2013 06:04 AM
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छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में जब रमन सिंह माँ दंतेश्वरी की पूजा कर रहे थे तो उनके जेहन में कर्नाटक में भाजपा की दुर्गति की कहानी कही न कही अवश्य चल रही होगी। यह सुकून की बात है कि

छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी में भितरघात उतना नहीं है और न ही वहां कोई अनंत कुमार हैं न ही येदियुरप्पा जैसे महत्वाकांक्षी किन्तु भ्रष्ट राजनीतिज्ञ। इसीलिए दंतेश्वरी देवी के आशीर्वाद के बाद शुरू हुई मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की विकास यात्रा थोड़ी सुकून भरी भी है। केंद्रीय नेतृत्व ने भी रमन सिंह को फ्री हेंड देकर रखा है कि वे अपनी पसंद से चुनावी रणनीति और टिकट इत्यादि का मामला तय कर सकते हैं। हालांकि राह आसान नहीं है। खासकर रमन सिंह को भाजपा की अंदरूनी राजनीति से परेशानी हो सकती है। 10 वर्षीय शासन के दौरान सत्ता विरोधी मतों के कारण भी कठिनाई हो सकती है। कुछ बाधाएं हाल ही में हुए घोटालों के कारण भी हंै। कानून व्यवस्था से लेकर किसानों की आत्महत्या और आदिवासी कन्याओं से बलात्कार की खबरें भी कहीं न कहीं रमन सरकार की असफलता की और इशारा कर रही हैं। लेकिन रमन फिर भी मजबूत स्थिति में हैं। क्योंकि जो चुनौती उन्हें मिलनी चाहिए थी वह चुनौती फिलहाल दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रही। इसीलिए रमन सिंह ने प्रदेश में एक बार फिर भाजपा को सत्तासीन करने के लिए कमर कस ली है। रमन सिंह की यह विकास यात्रा 20 जून तक चलेगी जिसमें वे करीब छह हजार किलोमीटर की यात्रा हवाई मार्ग और सड़क मार्ग से तय करेंगे। यात्रा के दौरान होने वाली जनसभा के प्रबंधन के तौर तरीके से यह साफ लग रहा है कि यात्रा सरकार की न होकर भारतीय जनता पार्टी की है और राजनीतिक यात्रा होने के साथ-साथ तीसरी बार सत्तासीन होने की यात्रा भी है। छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश दो ऐसे राज्य हैं जहां भारतीय जनता पार्टी ने लगातार दो चुनाव जीते हैं लेकिन तीसरा चुनाव जीतना इतना आसान नहीं है क्योंकि लगातार चुनाव जीतने का अनुभव इन दोनों प्रदेशों में इन दोनों दलों को नहीं है। सुकून की बात यह है कि यहां कांग्रेस का संगठन अब इतना मजबूत नहीं रह गया है और कांग्रेस की गुटबाजी का फायदा भाजपा को मिलता रहा है। छत्तीसगढ़ में भी अजीत जोगी से लेकर चरणदास महंत के गुटों में बटी कांग्रेस भाजपा के लिए एक तरह से फायदा देने वाली साबित हो रही है।
जिस तरह की भीड़ रमन सिंह की सभाओं में देखने को मिल रही है उससे तो साफ है कि भाजपा अब बड़े पैमाने पर मोबलाइजेशन करने में सफल है। रमन सिंह को आदिवासियों के बीच चाउर वाले बाबा की संज्ञा दी गई है। चाउर वाले बाबा का अर्थ है चावल देने वाले बाबा। चावल छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के बीच प्रमुख खाद्य है। रमन सिंह सरकार ने चावल को यथासंभव सस्ता और सुलभ बनाने में सफलता पाई है। धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में आदिवासी इतने संतोषी स्वभाव के हैं कि वे मात्र चावल से संतुष्ट हो जाते हैं। उनकी ज्यादा महत्वाकांक्षाएं नहीं हैं। लेकिन रमन सरकार ने जिस तरह पिछले 10 वर्ष में अधोसंरचना का विकास किया है। उससे स्पष्ट है कि आदिवासियों के बीच विकास की ज्योति को पहुंचाने के लिए यह सरकार भरसक प्रयास कर रही है। दंतेवाड़ा और जगदलपुर में विकास यात्रा के दौरान जनसैलाब को देखकर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि छत्तीसगढ़ में रमन सिंह लोकप्रियता के मामले में सर्वप्रथम नेता बन गए हैं। लेकिन उनकी लोकप्रियता वोट में तब्दील होगी या नहीं यह कहना आसान नहीं है। अन्य राजनीतिज्ञों की तरह रमन सिंह भी विकास यात्रा के दौरान जनता से भरपूर वादे कर रहे हैं जैसे उन्होंने इंद्रावती नदी को नया जीवन देने के लिए इंद्रावती विकास प्राधिकरण की घोषणा की। बस्तर में आयोजित विकास यात्रा की आमसभा में 28 हजार परिवारों को नए राशन कार्ड की सौगात दी गई। बकावंड में आईटीआई और बालिका छात्रावास बनाने का ऐलान किया गया। लगातार घोषणाएं की जा रही हैं जनता भी जानती है कि सारी घोषणाएं पूरी होना संभव नहीं है पर उसे सुकून है कि कम से कम घोषणाएं तो हो रही हैं। रमन सिंह की विकास यात्रा पर केंद्रीय नेतृत्व भी गदगद है। दंतेवाड़ा के हाईस्कूल ग्राउंड में जुटी भीड़ को देखकर वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी मंच से ही बोल उठे की पिछली बार की तुलना में चार गुना अधिक बड़ी सभा है। आडवाणी ने रमन सिंह की यात्रा को हरी झंडी दिखाई है अब देखना है कि जनता उन्हें हरी झंडी दिखाती है या नहीं।
उधर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने भी चुनावी गतिविधियां तेज कर दी हैं। कांग्रेस ने विकास यात्रा को काले झंडे दिखाने की योजना बनाई थी लेकिन यह योजना सफल नहीं हो सकी क्योंकि कांग्रेसी कार्यकर्ता ही आपस में उलझ पड़े। हाल ही में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा में मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भाजपा को झूठ बोलने में माहिर बताते हुए कहा कि डॉक्टर रमन सिंह का अहंकार ज्यादा दिन नहीं टिकेगा। उन्होंने रमन सरकार पर एक अनुभवहीन कंपनी को कई हेक्टेयर जमीन लोहे के लिए लीज में देने, कोयला खदान सस्ते में बेचने, बिजली-खाद्य-मिट्टी-गेहूं की काला बाजारी करने का भी आरोप लगाया। दिग्विजय सिंह ने प्रश्न किया कि राज्य सरकार नक्सलियों को विरोधी बताती हैं लेकिन आश्चर्य की बात है कि नक्सलियों के इलाके में ही 60-70 प्रतिशत पोलिंग भाजपा के पक्ष में होती है। कांग्रेस के आरोप शासन-प्रशासन और भ्रष्टाचार को लेकर तो लगते रहे हैं लेकिन दिग्विजय सिंह ने पहली बार भाजपा सरकार पर सीधे तौर पर नक्सलियों से सांठ-गांठ का आरोप लगाया है। अब यह संभावना प्रबल हो गई है कि इस बार चुनावी तापमान कुछ ज्यादा ही सर चढ़कर बोलेगा। दिग्विजय सिंह के पहुंचने से कांग्रेस में हलचल भी बढ़ी है। दिग्विजय सिंह ने कहा है कि यदि नारेबाजी पर कंट्रोल हो जाए तो कांग्रेस में कभी झगड़ा नहीं होगा क्योंकि सारे फसाद की जड़ नारेबाजी ही हैं। गौरतलब है कि जिस तरह मध्यप्रदेश की कांग्रेसी सभाओं में ज्योतिरादित्य के पक्ष में नारे लगते हैं उसी तरह छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी के समर्थक नारे लगाते हैं। दिग्विजय का इशारा किसकी और था यह समझा जा सकता है।
रायपुर से टीपी सिंह के साथ संजय शुक्ला