16-Feb-2017 06:48 AM
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चौराहों, मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों पर अक्सर आपका सामना भीख मांगते हुए भिखारियों से होता है। कभी कारों के कांच को साफ कर भीख मांगी जाती है, तो कभी अपंगता के चलते आपके आगे हाथ फैलाए जाते हैं। कोई दवा के लिए तो कोई भोजन के लिए। कोई बच्चा होता है तो कोई बूढ़ा, कोई महिला होती है तो कोई पुरुष। उनका गिड़गिड़ाना पत्थर दिल को भी नर्म कर देता है। ऐसे में अक्सर सवाल उठता है कि विकास के बड़े-बड़े दावे करने वाली हमारी सरकारें आखिर कर क्या रही हैं।
ऐसा नहीं है कि इस देश में भीख मांगने वालों के लिए योजनाओं की कमी है। सामाजिक न्याय विभाग ने गरीबों, दिव्यांगों, वृद्धों, विधवाओं और अनाथ बालकों के लिए योजनाओं की भरमार कर रखी है। लेकिन एक तो योजनाओं का ठीक ढंग से क्रियान्वयन न होना और सरकारी उदासीनता के कारण जरूरतमंदों को उसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। दूसरा यह कि भीख मांगना अब मजबूरी नहीं धंधा बन गया है। राजधानी भोपाल हो या फिर प्रदेश का कोई अन्य शहर या गांव भीख मांगते लोग कहीं भी दिख जाएंगे। इससे न केवल शहर का सौंदर्य खराब हो रहा है बल्कि अपराध भी बढ़ रहे हैं। भिक्षावृत्ति में कमाई का ग्राफ इस कदर बढ़ गया है कि अब इसके लिए गिरोह बन गए हैं। इस कारण बच्चों के अपहरण की घटनाएं बढ़ गई हैं। भिक्षावृत्ति के दुष्प्रभाव को देखते हुए सामाजिक न्याय विभाग ने सभी कलेक्टरों और नगर निगमों को पत्र लिखकर भीख मांगने पर रोक लगाने को कहा है।
केंद्रीय सामाजिक न्याय राज्य मंत्री विजय सांपला के अनुसार देश में 4,13,670 भिखारी हैं जिसमें 2.2 लाख पुरुष और 1.91 लाख महिला भिखारी हैं। सबसे अधिक पश्चिम बंगाल में करीब 81,000 भिखारी हैं। उसके बाद उत्तर प्रदेश में 65,835, आंध्र प्रदेश में 30,218, बिहार में 29,723 और मध्य प्रदेश में 28,695 भिखारी हैं। जबकि लक्षद्वीप में महज दो ही भिखारी हैं। ये आंकड़े यह दर्शाते हैं कि भिक्षावृत्ति किस तरह हमारी व्यवस्था में कलंक बनी हुई है। हकीकत यह है कि इन आंकड़ों से अधिक लोग भिक्षावृत्ति कर रहे हैं। भोपाल के प्रमुख चौराहों पर बच्चों को गोद में रखकर भीख मांगने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी है। दिव्यांग भी रोशनपुरा, अपेक्स बैंक चौराहा, बोर्ड ऑफिस और पीईबी चौराहे पर भीख मांगते हुए मिलते हैं। भीख न देने पर वाहन चालकों के साथ बदतमीजी भी करते हैं। इसे देखते हुए सामाजिक न्याय विभाग ने प्रदेश के सभी नगर निगम क्षेत्रों में भिक्षावृत्ति पर पूरी तरह रोक लगाने के लिए शहरों को अधिसूचित करने का प्रस्ताव तैयार किया है।
विभाग के प्रमुख सचिव वीके बाथम का कहना है कि प्रदेश के कई शहर स्मार्ट सिटी में तब्दील होने जा रहे हैं। ऐसे में चौराहों पर भिखारियों की मौजूदगी से प्रदेश को लेकर गलत संदेश जाता है, इसलिए शहरों को अधिसूचित करने के साथ भिक्षावृत्ति रोकने पुलिस को कार्रवाई के अधिकार दिए जाएंगे। सामाजिक न्याय विभाग की जानकारी के अनुसार राजधानी में भीख मंगवाने का धंधा करने वाले गिरोह सक्रिय हैं। न्यू मार्केट, एमपी नगर, शहर के सभी प्रमुख चौराहे और सभी धार्मिक स्थलों के साथ पार्क इनके ठिकाने हैं।
अक्सर देखा जाता है कि लोग भिखारियों पर तरस खाकर उन्हें कपड़े और खाने की चीजें देते हैं। लेकिन, इसके ठीक उलट भिखारियों का मनोविज्ञान सिर्फ और सिर्फ पैसा बटोरना होता है। चाहे मंदिर-मस्जिद हो, स्टेशन या लालबत्ती चौराहा। पैसे के अलावा और कुछ लेना भिखारियों को मंजूर नहीं होता। दरअसल, भिक्षावृत्ति कुछ ही लोगों के लिए मजबूरी का सौदा है, बड़े पैमाने पर यह एक धंधा बन चुकी है। इसे शुरू करने के लिए न तो किसी पूंजी की जरूरत है और न शारीरिक श्रम की। यही वजह है कि देश में भिखारियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
देश के बाईस राज्य और केंद्रशासित शासित प्रदेश भिक्षावृत्ति के खिलाफ कानून बना चुके हैं। उत्तर प्रदेश में म्युनिसिपेल्टी एक्ट भिक्षावृत्ति का निषेध करता है। जबकि पंजाब-हरियाणा में भिक्षावृत्ति निरोधक अधिनियम 1971 लागू है। मध्य प्रदेश में 1969-1973, मुंबई में 1945, पश्चिम बंगाल में 1943 में बने कानून लागू हैं। इसके अलावा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 133 भी कहती है कि जो व्यक्ति भीख मांगने के लिए अनुचित प्रदर्शन करते पाए जाएंगे, वे दंड के भागी होंगे। भारतीय रेलवे अधिनियम भी भिक्षावृत्ति का निषेध करता है। लेकिन इसके बावजूद भिक्षावृत्ति का धंधा दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है। भिखारियों में बच्चों की तादाद भी अच्छी-खासी है। हालांकि, इस बाबत कोई आधिकारिक आंकड़ा मौजूद नहीं है, लेकिन एक अनुमान के अनुसार, प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में तकरीबन 10 से ज्यादा बच्चे भिक्षावृत्ति से जुड़े हैं। कोई पारंपरिक रूप से भिक्षावृत्ति कर रहा है, कोई मजबूरी के चलते। वहीं बड़ी संख्या में बच्चे संगठित गिरोहों का शिकार हैं, जो उन्हें डरा-धमका कर, अंग-भंग करके उनसे भिक्षावृत्ति करा रहे हैं। प्राय: भिक्षुक की श्रेणी में कुष्ठ रोगी, मानसिक विक्षिप्त, वृद्ध अनाथ बच्चे रहते हैं। इन चारों श्रेणी के भिक्षुकों के लिये शासन की विभिन्न योजनाओं के अन्तर्गत उनमें पुनर्वास किया जा सकता है। जिले भोपाल, इन्दौर, उज्जैन वृद्ध के लिये वृद्धाश्रम, कुष्ठ रोगियों के लिये कुष्ठ पुनर्वास केन्द्र, अनाथ बच्चों के लिये बाल सुधार गृह और जो मानसिक विक्षिप्त हैं उनको मानसिक चिकित्सालय इन्दौर या ग्वालियर में प्रवेश दिलाया जाता है। अब समाज में वर्षों से चली आ रही इस भिक्षावृत्ति की कुव्यवस्था को रोकने के लिए सामाजिक न्याय विभाग ने पहल की है। जल्द ही मध्यप्रदेश के शहरों को भिक्षावृत्ति से मुक्ति मिलेगी साथ ही वास्तविक भिखारियों को सरकारी संरक्षण का लाभ मिलेगा।
इंदौर, उज्जैन में भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम लागू
मध्यप्रदेश भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम 1973 की योजना प्रदेश के 2 जिलों इंदौर एवं उज्जैन में प्रभावशील है। वर्तमान में एक भिक्षुक प्रवेश केन्द्र इंदौर में स्थापित एवं संचालित है। योजना अन्तर्गत भिक्षुकों को अभिरक्षा में लेकर उन्हें न्यायालय के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है। न्यायालय के निर्णय अनुसार विचाराधीन एवं दंडित भिक्षुकों को भिक्षुक गृह में रखा जाता है। भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम 1973 के तहत राज्य सरकार सभी नगर-निगमों को अधिसूचित करने जा रही है।
भीख मांगना अपराध
भीख मांगने या मंगवाने जैसे कृत्यों के लिए संविधान में जेल जाने से लेकर जुर्माने तक का प्रावधान है।
द्य अपहरण करने के पश्चात भीख मंगवाना अपराध की श्रेणी में आता है।
द्य किसी स्वस्थ व्यक्ति, बच्चे या महिला को विकलांग कर भीख मंगवाना।
द्य 14 साल से कम उम्र के बच्चों से भीख मंगवाना अपराध की श्रेणी में आता है।
द्य इसके अलावा सार्वजनिक स्थलों जैसे रेलवे स्टेशनों, ट्रेनों में, बसों में, स्कूलों के आसपास, सहकारी या निजी संस्थाओं में भीख मांगना भी अपराध ही है।
द्य किसी को मजबूर, ब्लैकमेल कर भीख मंगवाना भी अपराध ही है।
दी जाएगी प्रोफेशनल ट्रेनिंग
प्रदेश में इस कानून के लागू होने के बाद भीख मांगते पकड़े जाने पर बुजुर्ग महिला और पुरुष को वृद्धाश्रम में और बच्चों को बाल आश्रम में रखा जाएगा। इन आश्रम में इन्हें क्षमता के अनुसार प्रोफेशनल ट्रेनिंग दी जाएगी ताकि वे अपना कोई काम-धंधा कर सकें। अगले चरण में शहर में भिक्षु केंद्र बनाए जाएंगे।
- तीन साल पहले कैबिनेट ने लौटा दिया था
भिक्षावृत्ति पर शहरों में पूरी तरह से रोक के लिए तीन साल पहले भी प्रस्ताव बना था। कैबिनेट में भेजा गया, लेकिन मंत्री इस पर सहमत नहीं थे। तब कहा गया था कि यह व्यवहारिक नहीं होगा। अब फिर से प्रस्ताव बनाया जा रहा है।
-कुमार विनोद