02-Feb-2017 10:44 AM
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डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेते ही एलान किया कि अमेरिका दुनिया से कट्टरपंथी इस्लामी आतंकवाद का सफाया करेगा। 70 साल के डोनाल्ड ट्रंप के इस दम को देखते हुए उम्मीद की जा रही है कि डोनाल्ड की ट्रंप चाल आने वाले दिनों में विश्व में कुछ न कुछ भूचाल जरूर लाएगी। इसका संकेत पहले ही मिल गया था। वैसे बीते नौ नवंबर को अमेरिका में राष्ट्रपति चुनावों के नतीजों ने अमेरिका सहित दुनिया के ज्यादातर लोगों को हिलाकर रख दिया था। अमेरिका में रह रहे अल्पसंख्यकों सहित दुनिया के कई देशों के प्रमुख इस बात से परेशान थे कि आखिर अब क्या होगा? प्रचार के दौरान डोनाल्ड ट्रंप के विवादित बयानों और उनके ऊपर लगे महिलाओं के शोषण के आरोपों को देखते हुए ऐसा लग रहा था कि उदार माने जाने वाला अमेरिकी समाज ट्रंप को अपना राष्ट्रपति नहीं चुनेगा। लेकिन, चुनावी नतीजों ने सभी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
ट्रंप की जीत के बाद से अमेरिकी मुस्लिम, हिस्पैनिक, अश्वेत और एलजीबीटी समुदाय के साथ-साथ अमेरिका में रह रहे अप्रवासी भी काफी घबराए हुए हैं। इन लोगों की घबराहट दिन पर दिन बढ़ती जा रही है, क्योंकि ट्रंप का हर कदम इन लोगों के लिए घातक लग रहा है। दरअसल, ट्रंप ने कुछ महत्वपूर्ण पदों पर ऐसे लोगों को चुना जिनमें से कुछ तो अमेरिका में अपनी नस्लभेदी और मुस्लिम विरोधी सोच के लिए जाने जाते हैं। और कुछ विदेश नीति पर वैसे ही विचार रखते हैं जैसे चुनाव प्रचार के दौरान डोनाल्ड ट्रंप के भाषणों में सुनने को मिले थे। वहीं चीन, सीरिया और रूस से संबंधों को लेकर ट्रंप के रुख में चुनाव बाद भी कोई बदलाव नहीं आया है। ट्रंप ने प्रचार के दौरान रूस के साथ मित्रता करने और चीन को सबक सिखाने की वकालत की थी। चुनाव बाद ताइवान की प्रधानमंत्री से प्रोटोकॉल तोड़कर बात करना, चीन को नीतियां बदलने की चेतावनी देना और रूस से प्रतिबंध हटाने संबंधी बयान देना इस बात का संकेत हैं कि वे अपने पुराने रुख से पलटने वाले नहीं हैं।
इराक और अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना का नेतृत्व कर चुके मैटिस मध्य-पूर्व की स्थिरता और शांति के लिए ईरान को आईएस और अलकायदा से बड़ा खतरा मानते हैं। इसके अलावा ट्रंप ने तेल के सबसे बड़े व्यवसाईयों में से एक रेक्स टिलरसन को अमेरिका का नया विदेश मंत्री चुना है। टिलरसन को रूसी राष्ट्रपति पुतिन का करीबी माना जाता है। 2014 में क्रीमिया को यूक्रेन से अलग करने पर जब अमेरिका और पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाए थे तो इस फैसले का सबसे ज्यादा विरोध टिलरसन ने ही किया था। डोनाल्ड ट्रंप ने माइक पोंपेय को सीआईए प्रमुख और पूर्व कमांडर जेम्स मैटिस को रक्षा मंत्री के रूप में नामित करके भी काफी कुछ साफ कर दिया है। ये दोनों ही पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की मध्य-पूर्व नीति, खास तौर पर ईरान संबंधी नीति के मुखर आलोचक रहे हैं। मैटिस और पोंपेय दोनों ने ही जुलाई 2015 में कई सालों की कोशिश के बाद हुए ईरान परमाणु समझौते का विरोध किया था। ये दोनों ही इस समझौते को गलत मानते हैं। इराक और अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना का नेतृत्व कर चुके मैटिस मध्य-पूर्व की स्थिरता और शांति के लिए ईरान को आईएस और अलकायदा से बड़ा खतरा मानते हैं।
डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के तुरंत बाद ही अपने इरादे जाहिर भी कर दिए हैं। उन्होंने शपथ लेने के कुछ देर बाद ही अफोर्डेबल केयर एक्टÓ के कुछ प्रावधानों को रोकने और इस कानून को वापस लेने के आदेश पर हस्ताक्षर कर दिये। इस कानून को ओबामाकेयर के नाम से भी जाना जाता है। प्रचार के दौरान उन्होंने इसे खत्म करने का वादा किया था। ट्रंप के इन कदमों से अमेरिका ही नहीं पूरे विश्व में अस्थिरता का माहौल बना हुआ है।
भारत को ट्रंप से क्या है उम्मीद...
ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से काफी हद तक एक अनिश्चितता का माहौल दिखाई पड़ता है क्योंकि भारत और इस क्षेत्र के लिए ट्रंप की नीतियां अपने पूर्ववर्ती राष्ट्रपति बराक ओबामा से थोड़ी हटकर हैं। कई बार उनकी ओर से मनोनीत महत्वपूर्ण व्यक्तियों ने कुछ ऐसे बयान भी दिए हैं जो काफी विरोधाभासी प्रतीत होते हैं। फिर भी इस बात के संकेत हैं कि वह रूस के साथ संबंधों को बेहतर करना चाहते हैं और यह बात भी भारत के लिए अच्छी होगी। अब यह देखना है कि आतंकवाद से लडऩे खासकर इस्लामिक स्टेट, हक्कानी समूह और पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों से निपटने के लिए ट्रंप, रूस के साथ मिलकर क्या रणनीति अपनाते हैं। माना जा रहा है कि ट्रम्प चीन पर दबाव बनाने की दिशा में काम करेंगे। चाहे वह व्यापार का क्षेत्र हो या दक्षिणी चीन सागर का मामला हो, कुल मिलाकर यह भारत के पक्ष में होगा।
-माया राठी