02-Feb-2017 10:28 AM
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हिंदी चीनी भाई-भाई का नारा देकर 1965 में भारत के साथ षड्यंत्र करने वाला चीन लगातार भारत विरोधी गतिविधियों में लगा रहता है। चीन की ओर से लगातार धमकियां मिल रही हैं। उधर, भारत अपने इस बिगडै़ल पड़ोसी को साधने के लिए तमाम तरह के प्रयास कर रहा है, लेकिन चीन है कि मानता नहीं। चीन के एक चैनल ने दावा किया है कि अगर जंग होगी तो चीनी मोटरयुक्त सैनिकों का दस्ता 48 घंटे में भारत की राजधानी दिल्ली पहुंच सकता है। चैनल की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अगर चीन के सैनिकों की टुकड़ी को पैराशूट की मदद से भेजा गया तो वे केवल दस घंटे में ही दिल्ली पहुंच जाएंगे।
दरअसल चीन भारत की बढ़ती अंतराष्ट्रीय छवि को लेकर परेशान है। इसका हालिया उदाहरण तब देखने को मिला जब एप्पल ने भारत में आकर निवेश करने और यहां पर एक प्लांट बनाने की बात की। चीनी मीडिया ग्लोबल टाइम्स में चीन को सावधान करते हुए लेख में कहा गया कि चीन को जल्द से जल्द अपनी निर्माण क्षमता को बढ़ाना होगा जिससे आगे आने वाले वक्त में उनके वहां उत्पादन के लिए कंपनियों को आकर्षित किया जा सके। ये भी लिखा गया कि हो सकता है कि एप्पल आने वाले वक्त में साउथ एशिया के देशों की तरफ मुड़ जाए। इससे चीन पर दबाव बनेगा कि वह अपने घरेलू निर्माण की तकनीकों में तेजी से बदलाव करे। जिससे वह कम लागत में निर्माण करने वाले देशों से टक्कर ले सके।Ó इससे पहले जब भारत ने अग्नि-4 मिसाइल का सफल परिक्षण किया तो चीन तिलमिला गया था। उसने भारत को साफ-साफ शब्दों में चेतावनी दे दी थी कि अगर भारत अपनी लंबी दूरी की मिसाइल क्षमता में बढ़ोतरी करता रहा तो वह पाकिस्तान को लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइल बनाने में सहायता करेगा।
चीन की ऐसी धमकियों के बीच विदेश सचिव एस.जयशंकर ने कहा है कि चीन अपनी भौगोलिक संप्रभुता को लेकर जितना संजीदा रहता है, उस लिहाज से उसे औरों की भी संवेदनशीलताओं को समझना चाहिए दूसरे देशों की भी अपनी भौगोलिक संप्रभुता को लेकर चिंताए हैं। जयशंकर ने बिना किसी लाग-लपेट के कहा कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा भारत के कश्मीर के उस हिस्से से निकलता है जो पाकिस्तान के गैर-कानूनी कब्जे में है। न तो चीन ने इस बारे में भारत से कोई मशविरा किया था और न ही ऐसा लग रहा है कि चीन को भारत की चिंताओं की कोई परवाह है। यह पहली दफा नहीं है, जब विदेश सचिव ने भारत-चीन संबंधों में आई हालिया अनिश्चितताओं को रेखांकित किया है। इससे पहले भी जयशंकर कई मर्तबा बोल चुके हैं। हालांकि दोनों देश एक-दूसरे से गला-काट प्रतिस्पर्धा नहीं कर रहे हैं, पर उनके संबंध जटिल हैं, इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता।
विदेश सचिव ही नहीं, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और प्रधानमंत्री मोदी खुद कई बार भारत की भौगोलिक संप्रभुता और चीन द्वारा मसूद अजहर के मामले में पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में दिए गए सरंक्षण के सवाल को विदेश मंत्री और राष्ट्राध्यक्ष स्तर पर उठा चुके हैं। इस संदर्भ में पहले प्रधानमंत्री और फिर विदेश सचिव के दो-टूक बयान गहरे मायने रखते हैं। ऐसा लगता है भारत सरकार ने फैसला कर लिया है कि चीन के साथ अच्छे आर्थिक-सांस्कृतिक संबंधों की खातिर देश की संप्रभुता के मामलों पर चीन के रवैये को अनदेखा नहीं किया जाएगा। भारत चीन और पाकिस्तान के परमाणु और असैनिक सहयोग को बदली न जा सकने वाली हकीकत तो बहुत पहले ही मान चुका है और उस पर ज्यादा कुछ करने की गुंजाइश भी कभी नहीं रही है। परंतु भारत की और मोदी सरकार की भौगोलिक-सामरिक समझदारी में चीन की पाक-अधिकृत कश्मीर में उपस्थिति सामरिक और सैनिक-रणनैतिक लिहाज से राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर और चिंता का विषय है। साथ ही, भारतीय राष्ट्र और राष्ट्रवाद की समझदारी के लिहाज से एकदम अस्वीकार्य है।
वियतनाम को मिसाइलें बेचीं तो हम चुप नहीं बैठेंगे!
भारत-वियतनाम की नजदीकियां भी चीन को नहीं भा रहीं है हाल ही में चीन की सरकारी मीडिया ने कहा कि बीजिंग का मुकाबला करने के लिए यदि वियतनाम के साथ भारत अपने सैन्य संबंध मजबूत करने का कोई कदम उठाता है तो चीन हाथ पर हाथ धरकर नहीं बैठेगा। गौरतलब है कि यह बात तब सामने आई जब नई दिल्ली ने हनोई को सतह से हवा में मार करने वाली आकाश मिसाइलें बेचने की योजना की बात कही थी। वियतनाम को सतह से हवा में मार करने वाली आकाश मिसाइल प्रणाली की
आपूर्ति की खबरों पर ग्लोबल
टाइम्स में छपे लेख में कहा गया कि यदि भारत सरकार रणनीतिक
समझौते या बीजिंग के खिलाफ प्रतिशोध की भावना से वियतनाम के साथ असल में अपने सैन्य संबंधों को मजबूत करती है तो इससे क्षेत्र में गड़बड़ी पैदा होगी और चीन हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठेगा।
-माया राठी