02-Feb-2017 10:42 AM
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मप्र में एक बार फिर से चुनावी चौसर बिछने लगी है। इस बार भिंड जिले की अटेर और उमरिया जिले की बांधवगढ विधानसभा सीट पर उपचुनाव होना है। ये उपचुनाव भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती है क्योंकि जहां अटेर कांग्रेस का गढ़ है, वहीं बांधवगढ़ के पूर्व से ही प्रस्तावित प्रत्याशी सांसद ज्ञान सिंह के पुत्र शिवनारायण सिंह को हारा हुआ माना जा रहा है। ऐसे में उपचुनाव जीतने के विशेषज्ञ माने जाने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर भाजपा पूरी तरह आश्रित है। अत: पार्टी की आवश्यकता को देखते हुए मुख्यमंत्री ने चुनावी चौसर बिछानी शुरू कर दी है।
मप्र ही नहीं देशभर में शिवराज सिंह चौहान की छवि चुनाव जिताऊ नेता की हो गई है। लेकिन इस बार बांधवगढ़ और अटेर में हालात कुछ अलग हैं। सबसे पहले बात बांधवगढ़ की करते हैं। बांधवगढ़ सीट मंत्री ज्ञान सिंह के शहडोल सांसद बनने के बाद खाली हुई है। बताया जाता है कि शहडोल लोकसभा सीट पर उपचुनाव के दौरान कांगेस के प्रत्याशी के बढ़ते प्रभाव के आगे जब भाजपा को कोई दमदार प्रत्याशी नहीं मिल रहा था तो पार्टी ने मंत्री और बांधवगढ़ विधायक ज्ञान सिंह को चुनाव लड़ाने का मन बनाया। लेकिन ज्ञान सिंह ने चुनाव लडऩे से मना कर दिया। दरअसल, सिंह राज्य का मंत्री पद छोड़ सांसद बनने के मूड में कतई नहीं थे। इधर, प्रदेश के सत्तारुढ़ दल भाजपा के समक्ष दिक्कत यह थी कि उसके पास ज्ञानसिंह को छोड़ इस उपचुनाव के लिए कोई मजबूत उम्मीदवार नहीं था। वहीं झाबुआ सीट गंवा चुकी भाजपा एक और संसदीय सीट गंवाना नहीं चाहती थी। हालांकि चुनाव को जीतने में भी पार्टी को काफी पसीना बहाना पड़ा और जीत का अंतर भी ढाई लाख से सिमट कर पचास हजार रह गया। उपचुनाव में जीत को लेकर पार्टी व उम्मीदवार दोनों ही अंतिम समय तक संशय में रहे, लेकिन ज्ञान सिंह ने उम्मीदवारी इसी शर्त पर स्वीकार की थी कि हारे तो मंत्री बने रहेंगे और जीते तो पार्टी उनकी खाली सीट से उनके बेटे शिवनारायण को टिकट देगी। लेकिन अभी हाल ही में पार्टी के पास जो रिपोर्ट पहंची है उसमें कहा गया है कि अगर बांधवगढ़ से शिवनारायण सिंह चुनाव लड़ते हैं तो भाजपा हार सकती है। सूत्रों का दावा है कि बांधवगढ़ उपचुनाव की घोषणा होने तक मुख्यमंत्री ज्ञानसिंह को मंत्री बनाए रखना चाहते हैं ताकि उन पर कोई वादाखिलाफी का आरोप न लग सके। फिलहाल ज्ञान सिंह के बेटे शिवनारायण सिंह के चेहरे पर पिता की विरासत संभालने का आत्मविश्वास साफ दिख रहा है। लेकिन, भाजपा का स्थानीय संगठन परिवारवाद के आरोपों से बचने की जुगत में है। ऐसे में भाजपा से जनपद पंचायत सदस्य रहीं मनीषा सिंह, नगर पंचायत अध्यक्ष रहे सतीलाल बैगा के नाम भी विधायकी का टिकट पाने वालों की कतार में दिख रहे हैं। वहीं, बदलाव की बयार के नारे के साथ कांग्रेसी नेताओं में भी राजनीतिक करंट दिखने लगा है। कांग्रेस से अभी जिला पंचायत अध्यक्ष ज्ञानवती सिंह, जिला पंचायत सदस्य सावित्री सिंह धुर्वे और 15 हजार वोटों के अंतर से पिछला चुनाव हारने वाले प्यारेलाल बैगा के नाम टिकट के दावेदारों में नजर आने लगे हैं। शहडोल लोकसभा उपचुनाव में हार का अंतर कम होने से कांग्रेस का खेमा पीछे नहीं रहना चाहता। इसलिए बांधवगढ़ विधानसभा के उपचुनाव में भी आम जनता कांटे की टक्कर की उम्मीद कर रही है।
उधर, कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक सत्यदेव कटारे निधन के बाद भिंड जिले की अटेर विधानसभा सीट पर उपचुनाव होने वाला है। अटेर कांग्रेस का गढ़ है। अटेर विधानसभा सीट पर भी उपचुनाव की सरगर्मियां तेज हो गयीं हैं। स्व. सत्यदेव कटारे के सुपुत्र हेमंत कटारे जनाधार बनाने में लगे हैं तो भाजपा के नेता भी गोटियां बिठाने में जुट गए हैं। भाजपा का मकसद किसी भी सूरत में चुनाव जीतना है क्योंकि यहां पर भाजपा के तेजतर्रार नेता अरविन्द सिंह भदौरिया की साख दांव पर है। अधिकांश उपचुनावों में जनमत उसी परिवार की ओर रहता है जिसके नेता के गुजरने पर उपचुनाव हो रहे हों, ऐसे में यह उपचुनाव जीतना भाजपा के लिए चुनौती के रूप में देखा जा रहा है। इसी चुनौती के तहत मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विधानसभा क्षेत्र सहित पूरे जिले पर अपनी नजर गड़ा दी है।
भाजपा को चुनावी वैतरणी पार कराने में माहिर खिलाड़ी शिवराज सिंह चौहान ने जिले में चुनावी तैयारी शुरू कर दी है। इसी के तहत उन्होंने गत दिनों हुई हल्की बारिश के बाद मुख्यमंत्री जिले के गांवों का दौरा करने पहुंच गए और किसानों को राहत के लिए कई घोषणाएं कर डाली। मुख्यमंत्री की इस सहृदयता पर किसान भी हैरान हैं। दरअसल, मुख्यमंत्री के इस कदम को कांग्रेस सियासी पैतराबाजी मान रही है। लेकिन कुछ भी हो क्षेत्र में मुख्यमंत्री की सक्रियता ने कांग्रेस को चिंता में डाल दिया है। हालांकि कांग्रेस के लिए प्रत्याशी का चुनाव ज्यादा मुश्किल नहीं है क्योंकि वह तो स्व. सत्यदेव कटारे के वोट बैंक और उनके असामयिक निधन पर लोगों की सहानुभूति का फायदा लेना चाहेगी। प्रत्याशी के चयन को लेकर सबसे बड़ी उलझन सत्ताधारी भाजपा की है। भाजपा के पास इस समय दो मुख्य नेता हैं पूर्व विधायक मुन्ना सिंह भदौरिया और दूसरे पिछले चुनाव में स्व. कटारे से लगभग 11 हजार वोटों से हारने वाले पूर्व विधायक अरविन्द सिंह भदौरिया। उधर खबर यह है कि यहां भाजपा की जीत सुनिश्चित करने के लिए सांसद भागीरथ प्रसाद जातिगत समीकरण को देखते हुए बसपा में पैठ बढ़ा रहे हैं ताकि बसपा से किसी को खड़ा किया जा सके, ताकि कांग्रेस के वोटबैंक में सेंध लगाई जा सके। अब देखना यह है कि भाजपा उपचुनाव जीतने के अपने सिलसिले को जारी
रख पाती है या फिर उसे हार का सामना करना पड़ता है।
-श्यामसिंह सिकरवार