15-May-2013 06:01 AM
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नरेंद्र मोदी को लेकर फिलहाल नीतिश कुमार ने मौन साध लिया है। वे देखो और इंतजार करो की नीति अपना रहे हैं। उधर बिहार में मोदी समर्थकों ने एक नया ही तरीका तलाशा है। मोदी का

गुणगान करती हुई सीडी गांव-गांव तक पहुंचाने की योजना है ताकी मोदी के पक्ष में माहौल बनाया जा सके। लेकिन जिस तरह कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी को कांग्रेस ने पछाड़ दिया है और राहुल गांधी की जादू कर्नाटक में सर चढ़कर बोला है उससे साफ जाहिर है कि मोदी केवल सोशल मीडिया पर वातानुकूलित कक्ष में बैठने वाले देश के गिने-चुने लोगों की पसंद हैं। आम जनता यह नहीं जानती कि मोदी कौन हैं पर मोदी के इस बुरी तरह धराशायी होने से बिहार में उनके समर्थकों को कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्होंने तो ऐसे गाने चुन लिए हैं जिनमें मोदी को लेकर आग्रहों और दुराग्रहों का शमन किया जा सके। खास बात यह है कि यह गाने हरियाणा से पहुंचे हैं और मोदी का गुणगान करने वाले इस गायक का नाम है रॉकी मित्तल। हरियाणवी गायक की आवाज बिहारियों को कितनी पसंद आएगी यह कहना तो फिलहाल संभव नहीं है पर नीतिश अब पहले से ज्यादा बेफिक्र हो गए हैं क्योंकि उन्हें पता चल चुका है कि मोदी नाम के गुब्बारे की हवा निकल चुकी है। मोदी केवल स्टाइलिश राजनीतिक बनकर रह गए हैं और आम जनता में फिलहाल उनकी पकड़ न के बराबर है।
कांग्रेस ने मोदी के इस खोखलेपन को पहले ही भांप लिया था इसी कारण बिना किसी प्रचार के उसने अपना किला बिहार में मजबूत करना शुरू कर दिया। उसी का परिणाम है कि बिहार में जनता दल यूनाइटेड और कांग्रेस भीतर ही भीतर काफी निकट आ चुके हैं। इसकी वानगी बंसल प्रकरण में देखने को मिली जब भाजपा ने बंसल के इस्तीफे की मांग कर डाली तो जनता दल यूनाइटेड ने साफ इंकार कर दिया कि बंसल को इस्तीफा देने की जरूरत नहीं है। यह निकटता देखा जाए तो दोनों दलों के लिए लाभान्वित करने वाली हो सकती है। तीसरे मोर्चे को भविष्य में बाहरी समर्थन की आवश्यकता पड़ेगी और यह समर्थन कांग्रेस तीसरे मोर्चे को उस शर्त पर दे सकती है कि वह नीतिश को प्रधानमंत्री प्रोजेक्ट करे। इस प्रकार एक तीर से दो निशाने साधना कांग्रेस को बखूबी आता है।
मुलायम सिंह यादव कांग्रेस की मजबूरी भले ही हों पर वे उतने विश्वसनीय नहीं हैं दूसरी तरफ कांग्रेस कभी नहीं चाहेगी कि मुलायम प्रधानमंत्री बनें। इसीलिए प्रधानमंत्री के नाम पर भी वह तीसरे मोर्चे को जुडऩे नहीं देना चाहती और नीतिश को बढ़ावा देने की रणनीति पर इसीलिए काम हो रहा है। चूंकि नीतीश की बिहार में राजनीतिक हैसियत बढ़ी है और लालू-पासवान जैसे दिग्गजों के राजनीतिक अवसान के बाद बिहार में कांग्रेस अपनी खोई जमीन पाने हेतु लालायित है, अत: नीतीश की आंधी में वह भी पंजे को जनता के साथ जोडऩा चाहती है और यह कवायद तभी पूरी हो सकती है जब नीतीश को अपने पाले में करने के लिए उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा किया जाए। यही वजह है कि गुरूवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) की बैठक में सरकार ने बिहार को पिछड़ा क्षेत्र अनुदान कोष (बीआरजीएफ) के तहत मौजूदा 12वीं योजना के शेष बचे चार वर्षो में 12,000 करोड़ रुपये दिए जाने की घोषणा की है। गौरतलब है कि पिछली योजना के दौरान राज्य को 6,468 करोड़ रुपये मिले थे। हालांकि नीतीश ने बिहार के लिए 20 हजार करोड़ की मांग की थी किन्तु केंद्र ने उनकी मांग को आर्थिक कमजोरी का नाम देकर उन्हें थोड़े से ही संतुष्ट करने की कोशिश की है। नीतीश की बिहार को विशेष दर्ज दिए जाने की मांग और दिल्ली में विशाल रैली से अपनी ताकत दिखाने के बाद से ही कयास लगाए जा रहे थे कि सरकार उनकी मांग को देर-सवेर मान ही लेगी। यही वजह है कि पहले केंद्र सरकार की तरफ से जारी आर्थिक सर्वेक्षण और बाद में आम बजट 2013 में वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों की मौजूदा परिभाषा को बदलने की बात कही। कुल मिलाकर बिहार को विशेष पैकेज के बहाने कांग्रेस ने भावी राजनीतिक समीकरणों को हवा दे दी है जो राजनीति की दशा-दिशा बदल सकते हैं। जहां तक बिहार को विशेष राज्य दर्जा देने की मांग है तो सीधे तौर पर उसे नहीं माना गया है। चूंकि बिहार विशेष राज्य के दर्जे की आहर्ताओं को पूरा ही नहीं करता लिहाजा सरकार ने उसे पिछड़ा क्षेत्र अनुदान कोष (बीआरजीएफ) के तहत उक्त राशि दी है। यह राशि किसी भी राज्य की आर्थिक व भौगोलिक स्थिति को देखकर दी जाती है। हालांकि यह केंद्र के विवेक पर निर्भर करता है कि वह इस राशि का इस्तेमाल किसे और कैसे करने की छूट देता है पर यह परिपाटी भी उचित नहीं कि केंद्र सरकार मात्र राजनीतिक स्वार्थों के चलते किसी भी राज्य को भारी भरकम राशि दे ताकि उस राज्य का मुख्यमंत्री विपक्षी पार्टी की चाल को मंद कर सके। केंद्र ने बिहार को राशि देकर जो मुसीबत मोल ली है उससे पार पाना अब आसान न होगा। सरकार का हर सहयोगी या भावी सहयोगी अब सरकार से आर्थिक मदद का अभिलाषी होगा। हो सकता है केंद्र सरकार बिहार को दी गयी राशि को सही ठहराने के लिए आंकड़ों का मायाजाल दिखाए पर इससे एक बात को साबित होती है कि नीतीश ने आज तक बिहार की तरक्की का जो झूठा महिमा-मंडन किया था वह खोखला था। यदि बिहार सच में विकास और प्रगति की राह पर अग्रसर होता तो पिछड़ा क्षेत्र अनुदान कोष (बीआरजीएफ) के तहत राशि पाने का हकदार ही नहीं होता। स्पष्ट दृष्टिगत हो रहा है कि केंद्र और नीतीश के बीच की गलबहियां बढ़ते हुए अब उस स्तर तक पहुँच गयी हैं जहां वे कोई भी अथवा किसी भी तरह का आपसी समझौता कर सकते है। अब चूंकि 12,000 करोड़ की राशि बिहार को मिलने वाली है लिहाजा इस राशि का कैसा और क्या उपयोग होता है उस पर निगाह रखनी होगी। हालांकि राजनीति के वर्तमान चाल-चलन को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि इस राशि की बंदर-बांट भी तय है।
आरएमपी सिंह