01-May-2013 08:53 AM
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बिहार में भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड के बीच जो शब्दों का सैलाब आया था वह थम भले ही गया हो लेकिन भीतर ही भीतर तूफान घुमड़ रहा है। दरअसल नीतिश जिस तरह कांग्रेस से

नजदीकियां बढ़ा रहे हैं। वह आने वाले दिनों की राजनीति का स्पष्ट संकेत है। नीतिश कांग्रेसी धु्रव से जुडऩे के प्रयास में हैं, लेकिन उनकी अपनी ही पार्टी में कांग्रेस को लेकर भयानक अंतरविरोध है। यह अंतरविरोध अनायास नहीं है इसका कारण यह है कि राज्य में कांग्रेस की उपस्थिति न के बराबर है और उसके विधायकों की संख्या भी उंगलियों पर गिने जाने लायक है। जबकि भारतीय जनता पार्टी बिहार में दूसरे नंबर की मजबूत पार्टी समझी जाती है और यदि नीतिश ने भारतीय जनता पार्टी को धोखा दिया तो उस धोखे से उपजी सहानुभूति का फायदा भी भाजपा को मिलना तय है। इस हकीकत को जनतादल यूनाइटेड के रणनीतिकार तो भली भांति जानते हैं पर नीतिश को शायद यह हकीकत समझ में नहीं आ रही है। नीतिश के आत्मविश्वास का कारण यह भी है कि उनकी पार्टी अकेले ही बहुमत के बहुत करीब है। यदि भाजपा नीतिश से दूर होती है तो उनके स्थायित्व पर कोई खतरा फिलहाल दिखाई नहीं दे रहा है। दूसरी तरफ राज्य में कांग्रेस और जनतादल यूनाइटेड के वोटों को मिला दिया जाए तो एक अच्छी-खासी मजबूत वोट संख्या तैयार हो जाती है। जिसमें मुस्लिमों के मतों से एक मजबूत आधार भी मिल सकता है। इसी कारण नीतिश बेखौफ होकर भाजपा पर हमले बोल रहे हैं। पर सवाल यह है कि भारतीय जनता पार्टी से बैर मोल लेकर नीतिश जनतादल यूनाइटेड को संगठित रख पाएंगे उनकी पार्टी में कांग्रेस और अन्य दलों से जुडऩे पर वैसे ही भारी अंतरविरोध है। बहुत से सांसद और विधायक कांगे्रस से किसी भी प्रकार का गठबंधन किए जाने के खिलाफ हैं। इसीलिए फिलहाल दोनों महत्वपूर्ण दल मुस्लिमों को लुभाने में असफल रहे हैं। किंतु यदि नीतिश किसी प्रकार की नादानी करते हैं तो लालू प्रसाद यादव का साथ मुस्लिमों को ज्यादा भला लगने लगेगा और फिर नीतिश बिना आधार के नेता बनकर रह जाएंगे। नीतिश यह जोखिम उठाएंगे या नहीं यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन भाजपा फिलहाल गठबंधन तोडऩे के मूड में नहीं है। राजनाथ सिंह ऐसा अवसर तलाश रहे हैं जिसमें यदि गठबंधन टूटता भी है तो उसका ठीकरा जनतादल यूनाइटेड के ऊपर ही फूटे और नीतिश को निशाना बनाया जा सके। आलम यह है कि नितिश के अल्पसंख्यक मतों के प्रेम ने उनके उस आधार को खिसकाना शुरू कर दिया है, जिसके बल पर नितिश सत्ता में आए थे। अगड़ी भूमिहार जाति अब नितिश के खिलाफ लामबंद होती नजर आ रही है। उसका मुख्य कारण नितिश का पंचायतों में आरक्षण और कांट्रेक्टर मास्टरों को उचित वेतनमान नहीं मिलना है। बिहार में भूमिहार लगभग चार प्रतिशत है। इस जाति ने लालू यादव के विरोध में नितिश का साथ दिया था। ये नितिश को छोड़ वापस लालू यादव के पास नहीं जाएंगे। मजबूरी में ये भाजपा को अपना विकल्प मान कर चल रहे हंै। उधर भाजपा ने काफी चालाकी से इस स्थिति को पहचाना है। झारखंड में जहां भाजपा का अध्यक्ष भूमिहार बना दिया गया है, वहीं सीपी ठाकुर को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर भाजपा ने नितिश पर अंदरूनी वार किया है। हर लोकसभा क्षेत्र में पचास से साठ हजार वोट रखने वाला वैश्य समुदाय अब खुलकर नरेंद्र मोदी के पक्ष में आता नजर आ रहा है। उतर बिहार में अच्छी संख्या रखने वाले ब्राहमण भी अब नितिश के खिलाफ लामबंद होते दिख रहे है। वैसे नरेंद्र मोदी नितिश के अति पिछड़ा कार्ड को तोडऩे के लिए जयनारायण निषाद को भाजपा में लाने का मन बना चुके है। जयनारायण निषाद का भाजपा मे जाने का मतलब है उतरी बिहार के दो से तीन प्रतिशत नोनिया, बिंद, मल्लाह जाति का भाजपा में शिफ्ट होना।
वैसे इन परिस्थितियों में सबसे ज्यादा खुश लालू यादव है। उन्हें लगता है, बिल्ली के भाग्य से छींका टूट जाएगा। लालू यादव की लाटरी खुल जाएगी। पिछले लोकसभा चुनाव में कई सीटों पर थोड़े से मतों से हारने वाले लालू यादव उन सीटों को हासिल करने की स्थिति में आ जाएंगे। क्योंकि इन इलाकों में भाजपा अब पहले से ज्यादा मजबूत है। जिन सीटों पर हार जीत का फासला पचास हजार मतों तक है वहां पर गठबंधन टूटते ही लालू यादव की लाटरी खुल जाएगी। नितिश ने सारा गैंबल मुस्लिम वोट बैंक को लेकर खेला। बिहार के 16 प्रतिशत अल्पसंख्यक वोट नितिश लालू के हाथ से छीनना चाहते है। लेकिन इस गैंबल के बावजूद मुस्लिम नितिश के साथ आएंगे इसकी गारंटी नहीं है। क्योंकि मुस्लिम वहीं वोट करेगा जो भाजपा को हरा सके। नितिश की कुर्मी जाति पूरे बिहार में नहीं है। कुर्मी प्रभावी रुप से बिहार के सात जिलों में है। जबकि यादव प्रभावी तौर पर बिहार के सारे जिलों में है। गठबंधन टूटने की स्थिति में भाजपा को हारने में लालू यादव ज्यादा सक्षम होंगे क्योंकि उनका 10 प्रतिशत का यादव वोट बैंक पूरे बिहार में फैला है। नितिश पांच से सात जिलों में मुस्लिम वोटों के साथ गठबंधन बनाकर भाजपा को हरा सकते है। वैसे मुस्लिम मतदाता अभी भी लालू यादव को ज्यादा विश्वनीय नेता मानते है। उसका मुख्य कारण नितिश का अपना रिकार्ड है।
आरएमपी सिंह