02-Feb-2017 10:39 AM
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चांद पर बस्ती बसाने का सपना देखने जा रहे भारत में शराबबंदी एक ऐसी कसरत है, जिसे शुरू करने के बाद हर राज्य सरकार का दम फूलने लगता है। बिहार में शराबबंदी के बाद से देश में इनदिनों शराब पर पाबंदी की हवा-सी चल पड़ है। कहा जा रहा है इससे अपराध रूकेंगे, सड़क दुर्घटनाएं कम होंगी। इन्हीं तर्को के आधार पर मप्र में भी शराबबंदी की हवा-सी चल पड़ी है। लेकिन सवाल यह उठ रहा है क्या जिन राज्यों में शराबबंदी है वहां अपराधों पर अंकुश लग गया है, क्या सड़क दुर्घटनाएं रूक गई हैं, क्या पति-पत्नी के झगड़े बंद हो गए हैं या फिर लोगों ने शराब पीना बंद कर दिया है? इन सबका जवाब है ना। क्योंकि शराबबंदी राजनीति में वोट जुटाने का नया हथकंडा बनी है। बिहार के सीएम नीतीश कुमार शराबबंदी के बहाने बिहार समेत पूरे देश में अभियान चला रहे हैं तो बाकी राज्यों में भी अब शराब पर पाबंदी की आवाजें उठने लगी हैं। मध्यप्रदेश में भी शराबबंदी पर जोर दिया जा रहा है। अगर प्रदेश में शराबबंदी होती है तो सरकार को करीब 8,500 करोड़ रुपए की राजस्व हानि होगी। और इसकी कोई गारंटी नहीं है कि शराबबंदी के बाद राज्य में लोग शराब पीना छोड़ देंगे, अपराध कम हो जाएंगे। सत्य यह है कि देश में पाबंदियों की भरमार है किन्तु एक भी पाबंदी सौ प्रतिशत सफल नहीं है। पाबंदी तो नर-हत्या पर भी है, गौ-हत्या पर भी है, नारी-शोषण, बलात्कार और जाने कितनी और बुरी बातों पर भी है। क्या वे सब बंद हो गयीं? पाबंदी इलाज नहीं रोक-थाम का हिस्सा है। शराब पर पाबंदी होते ही शराबखोरी चोरी-छिपे और तेजी से चल पड़ती है। बिहार से पहले कई राज्यों में पूर्ण शराबबंदी की पहल हुई लेकिन यह गुजरात को छोड़कर किसी राज्य में बरकरार नहीं रह सकी। अभी बिहार के साथ गुजरात, केरल और लक्षद्वीप में पूरी तरह शराबबंदी है। मणिपुर और नगालैंड में आंशिक बंदी है। हालांकि इससे पहले आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, हरियाणा जैसे राज्यों ने भी शराबबंदी लागू करने की कोशिश की थी लेकिन ज्यादा सफल नहीं रहने की वजह से बाद में इस पाबंदी को वापस ले लिया गया। 18 साल बाद मिजोरम में 2016 के शुरू में इस बंदी को हटा दिया गया। आंध्र प्रदेश में एनटी रामाराव की राजनीति में एंट्री इसी मुद्दे पर हुई थी। शराबबंदी पर आंदोलन चलाकर वह लोकप्रिय हुए और सत्ता में आए। आने के बाद शराबबंदी भी की लेकिन बाद में उनके दामाद चंद्रबाबू नायडू ने सत्ता में आने पर इस पाबंदी को हटा दिया था। इसी तरह बिहार में 1977 में कर्पूरी ठाकुर और 1996 में हरियाणा में बंसीलाल शराबबंदी की घोषणा कर लोकप्रिय हुए थे लेकिन बाद में दोनों राज्यों में प्रयोग नाकाम रहा और शराबबंदी को हटा लिया गया।
अमेरिका में भी हुआ था प्रयोग
ऐसा नहीं है कि शराबबंदी का प्रयोग सिर्फ भारत में हुआ। शराब के कारण अपराध बढऩे का तर्क देकर अमेरिका में भी 1920 से 1933 के बीच शराबबंदी का प्रयोग किया गया। लेकिन यह कोशिश न सिर्फ नाकाम रही, बल्कि इस दौरान अपराध और बढ़ गए। यूरोप और दक्षिण अमेरिका के कुछ छोटे-छोटे राज्यों में भी ऐसी कोशिशें हुईं लेकिन ग्लोबल स्तर पर कहीं भी शराबबंदी के पूरी तरह से सफल होने का कोई बड़ा मॉडल सामने नहीं है।
शराबबंदी के साइड इफेक्ट्स
बिहार में शराबबंदी के साइड इफेक्ट्स भी दिखने लगे हैं। भले शराब की बिक्री बंद हो लेकिन नशेबाज अब उसके विकल्प की तलाश में जुट गए हैं। इसका असर यह हुआ कि वहां गांजा, भांग, चरस और अफीम की अवैध सप्लाई तेजी से बढ़ी है। बिहार में शराब बंदी के बाद स्कूल बैग्स में शराब की बोतल मिलने के मामले सामने आए हैं। घरेलू शराब पीने से गोपाल गंज में कई दर्जन लोग मर चुके हैं। बिहार के अलावा दूसरे राज्यों में भी ऐसा ट्रेंड देखा गया है। फिर लोग अक्सर जहरीली शराब का भी शिकार होते हैं। एनसीआरबी की 2014 की रिपोर्ट के अनुसार बिहार से ज्यादा गुजरात में औरतों के विरूद्ध अपराध होते हैं।
बगैर कानून तोड़े इन राज्यों में ऐसे मिलती है शराब!
बिहार- मदिरा प्रेमियों को तो बस पीने से मतलब होता है। आप लाख कानून बना दीजिए। तरीका वे खुद खोज लेते हैं। बिहार में खुलेआम शराब बिकनी बंद हो गई तो क्या, महफिलें अब भी यहां जमती हैं। पड़ोसी देश नेपाल और फिर दूसरे राज्यों जैसे यूपी और झारखंड से इनकी पूर्ति होने लगी है। पड़ोस के राज्यों से सटे लोग केवल पीने के लिए दो-तीन घंटे के सफर से नहीं हिचकते। यही नहीं, चोरी-छिपे शराब को राज्य में लाने का खेल भी खूब हो रहा है। एक पूरा नेटवर्क तैयार हो गया है जो आपकी डिमांड पूरी कर देगा।
नागालैंड- इस राज्य में भी 1989 से शराबबंदी लागू है। यहां के कानून के मुताबिक शराब बिक्री से लेकर उसे बनाने, पीने-पिलाने या अखबारों में उसके बारे में विज्ञापन देने पर रोक है। लेकिन विभिन्न मीडिया रिपोट्र्स की कहानी कुछ और ही सच बयां करती है। पूरे राज्य में गैरकानूनी बार और शराब की दुकानें तक मौजूद हैं। पड़ोसी असम से शराब की तस्करी भी खूब होती है।
गुजरात- गुजरात में 1960 से शराबबंदी लागू है। लेकिन आपके पास अगर परमिट है, मतलब वो मेडिकल सर्टिफिकेट जिसमें कहा जाए कि शराब आपके लिए जरूरी है, तो फिर चांदी ही चांदी। वैसे भी राज्य में लोग प्रतिबंध को सिर्फ कागजों पर मानते हैं। सरकारी के आंकड़ों के मुताबिक ही पिछले पांच सालों में वहां 2500 करोड़ रुपए की अवैध शराब जब्त हुई। गुजरात में गैरकानूनी ढंग से शराब पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश, दीव और दमन से आती है। गैरकानूनी जहरीली शराब पीने से राज्य में अब तक 3,000 लोगों की मौत हुई है। साल 2008 में अहमदाबाद में हुई एक बड़ी दुर्घटना में शराब पीने से 150 लोग मारे गए थे। राज्य में शराबबंदी के कारण शराब का अवैधधंधा करके अब्दुल लतीफ, वासु सिंधी, सूखा पटेल जैसे माफिया सड़क से उठकर अरबपति बन गए।
महाराष्ट्र- यहां की कहानी और भी दिलचस्प है। क्या आपको पता है कि अगर आप मुंबई के किसी पब में शराब पी रहे हैं तो आप एक गैरकानूनी काम कर रहे हैं। बॉम्बे प्रोहिबिश्न एक्ट-1949 के अनुसार शराब पीने के लिए आपके पास सरकारी परमिट होना जरूरी है। लेकिन परमिट के पीछे कौन भागे। तो जाहिर है, अगर आप जाम का मजा ले रहे हैं तो उसका बिल किसी और के नाम पर
फाड़ा जा रहा है। इसका मतलब परमिट फर्जी और जिनके नाम पर बने होंगे वो नाम भी फर्जी होंगे।
जागरूकता से रूक सकती है शराबखोरी
विश्व में कहीं भी नैतिकता को कानूनी रूप देने में सफलता नहीं मिली और न ही इससे पापी संत बने हैं। इसकी बजाय इससे पहले से ही मौजूद समस्याओं में और वृद्धि हुई है। इससे न तो समस्याओं का समाधान होगा और न ही उनकी आवृत्ति कम होगी, बल्कि शराब पीने वाले और रास्ते निकाल लेंगे। इससे केवल अवैध शराब निकालने वालों, अपराधियों तथा सरकार में शक्तिशाली लोगों को ही फायदा पहुंचेगा। इससे प्रशासन की लागत और बढ़ेगी। देश की समस्या शराब पीना नहीं वरन् शराबखोरी है। जिसके प्रति हम गम्भीर नहीं हैं। हम हर काम प्रचार के लिए करते हैं। शराबबंदी हो ही नहीं सकती, यह तो इन्सान की फितरत में शामिल है। ऐसा करने से गैर-कानूनी शराब को बढ़ावा मिलेगा। गांवों में मनोरंजन के पर्याप्त साधन नहीं हैं। युवाओं को रोजगार नहीं मिल पा रहा। लोग कुंठा का शिकार होते हैं तो नशाखोरी की तरफ जाते हैं। 2 चीजों पर खास ध्यान देना चाहिए - एक तो शराब उपलब्ध न हो और दूसरा लोगों को इसकी जरूरत ही महसूस न हो। बिहार में नीतीश सरकार ने केवल शराब बंदी का एलान नहीं बल्कि राज्य में नेताओं पुलिस कर्मियों को आजीवन शराब न पीने की शपथ भी दिलाई है। यह इस दिशा में एक कारगर तरीका है। इसी तरह स्कूल की किताबों में नशे के खिलाफ पाठ होना चाहिए। हर जिला अस्पताल में नशा खोरी करने वालों का इलाज करने के लिए एक सेंटर होना चाहिए।
क्या शराबबंदी से अपराध रुक जाएंगे
शराब बंदी के पीछे तर्क दिया जा रहा है कि इससे अपराध रूकेंगे। लेकिन शराब बंदी वाले राज्यों की स्थिति देखकर ऐसा नहीं लगता कि वहां इसका असर पड़ा है। शराबबंदी कानून का मतलब यह नहीं कि लोग पीना छोड़ देंगे। वे ऐसा करने के लिए अन्य रास्ते ढूंढ लेंगे जैसे कि पीने के लिए पड़ोसी राज्यों में जाना अथवा एल्कोहल संग्रह करने के लिए अन्य विकल्पों का इस्तेमाल करना। यह महज एक असंभव कार्य को करने के लिए लोगों की शक्ति को व्यर्थ करना है जिससे भ्रष्टाचार के अन्य रास्ते खुलेंगे।
-भोपाल से रजनीकांत पारे