02-Feb-2017 09:18 AM
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बुंदेलखंड यानी शोषण, अवैध खनन, माफिया, डकैतों, रसूखदारों, नेताओं और अफसरों द्वारा सताए गए लोगों की भूमि। इस बुंदेलखंड की तकदीर और तस्वीर बदलने के लिए वादे तो खूब होते हैं, लेकिन इरादे कहीं नहीं दिखते। इस कारण इस क्षेत्र की बदहाली दूर नहीं हो पा रही है। हालांकि मध्यप्रदेश के अंतर्गत आने वाले 6 जिले सागर, दमोह, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना और दमोह की तस्वीर उत्तर प्रदेश के सात जिलों से अच्छी है। लेकिन मप्र के हिस्से का बुंदेलखंड माफिया की मनमानी से बेजार है। इन जिलों में जल, जंगल और जमीन हर जगह अवैध खनन हो रहा है।
पन्ना जिले में रेत, पत्थर, फर्शी पत्थर और मुरम जैसे गौड़ खनिजों की लूट मची हुई है। खनन कारोबारी दोनों हाथों से रात-दिन खनिजों को लूटकर अपनी तिजोरियों को भर रहे हैं। पिछले कुछ सालों में वे खासे दुस्साहसी हो गए हैं। उन्हें वन, राजस्व, पुलिस और प्रशासन की कार्रवाई का तनिक भी भय नहीं है। आलम यह है कि वह मजदूरों और आदिवासियों को आगे करके कार्रवाई करने पहुंचे अलमे पर भी हमला करने का दुष्साहस कर बैठता है। प्रशासन आज जहां कार्रवाई करता है दूसरे दिन वहीं फिर से अवैध खनन चालू हो जाता है। गौरतलब है बुंदेलखंड का पन्ना की रत्नगर्भा धरती खनिजों से भरपूर है। यहां जैम क्वाटिली के हीरे के साथ ही पत्थर, फर्सी पत्थर, मुरम और रेत जैसे गौण खनिज भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। अकेले कल्दा क्षेत्र में ही एक सैकड़ा से अधिक वैध पत्थर और फर्सी पत्थर की खदानें चल रही हैं, जबकि क्षेत्र में अवैध रूप से भी समानांतर खदानें चल रही हैं।
यही हाल रेत का है। अजयगढ़ क्षेत्र में केन सहित अन्य नदियों के किनारों पर अच्छी क्वालिटी की रेत पाई जाती है। इससे यहां करीब आधा दर्जन वैध रेत की खदानें चल रही हैं, जबकि अवैध रूप से दर्जनों खदानों का नियमित रूप से बगैर किसी प्रकार की रोकटेक के संचालन किया जा रहा है। खनिज के अवैध खनन के कारोबार से जुड़े लोग बेहद दुष्साहसी हो गए हैं। कई बार तो वे सीधे प्रशासन से उलझ चुके हैं, जबकि कई बार वे मजदूरों और क्षेत्रीय लोगों से कार्रवाई दल पर हमला करवा देते हैं। 11 जनवरी 2017 को एसडीओ आरएन द्विवेदी के वन परिक्षेत्र मोहन्द्रा के प्रवास के दौरान सिंगवारा वीट में अतिक्रमण क्षेत्र के सीमांकन के लिए निरीक्षण पर पहुंचे थे। उसी दौरान सिंगवारा गांव के जंगल कक्ष क्रमांक पी.-1217 में एक व्यक्ति खैर की लकड़ी लाते देखा गया।
गौरतलब है कि कार्रवाई के मामले में भी प्रशासन की ओर से भेदभाव की गवाही आंकड़े देते हैं। ई-खनिज के आंकड़ों के अनुसार पिछले साल अवैध खनन के जो 29 मामले दर्ज दिखाए जा रहे हैं उनमें अवैध रेत उत्खनन के सिर्फ दो मामले हैं। जबकि शेष मामले पत्थर, फर्शी पत्थर और मुरम के थे। एनदियों के परिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिए एनजीटी की ओर से नदी क्षेत्र में भारी मशीनें जैसे जेसीबी, चैन माउंटेड मशीनों और लिफ्टर मशीनों का उपयोग पूरी तरह से प्रतिबंधित हैं। इसके बाद भी केन नदी के किनारों पर चल रही सभी वैध खदानों पर खुलेआम लिफ्टर मशीनों, जेसीबी और चैन माउंटेड मशीनों का उपयोग हो रहा है।
हाल ही में सामने आई रिपोट्र्स में मध्य प्रदेश कई मामलों में या तो पहले पायदान पर आ रहा है या दूसरे-तीसरे। अफसोस ये कि इनमें से अधिकांश मसले सकारात्मक नहीं हैं। अब सामने आया है कि अवैध खनन के मामलों में भी मध्य प्रदेश अव्वल पांच राज्यों में शामिल है। सन् 2015-16 में प्रदेश में अवैध खनन के 13 हजार 627 मामले सामने आए हैं। ये आंकड़े भी वे हैं जो दर्ज हो गए, वरना अवैध खनन तो रात के अंधेरे या दिन के सन्नटे में चलने वाली ऐसी प्रक्रिया है जो सरकारी रजिस्टरों में कम ही दर्ज हो पाती है।
तबाह हुए जल स्रोत
बुंदेलखंड में हो रहे अंधाधुंध खनन ने प्राकृतिक जल स्रोतों को तो खत्म कर ही दिया है, साथ ही इससे नदियों का प्रवाह भी बाधित हुआ है। अवैध खनन करने वालों के लिए सोने की खान बने बुंदेलखंड में विस्फोटकों के जरिए पहाडिय़ों को उड़ाया गया है और भारी मशीनें लगाकर नदियों की तलहटी से बालू निकाली जा रही है। अवैध खनन करने वालों ने कई जगहों पर प्रशासन को धता बताते हुए बेतवा, यमुना और केन नदियों पर वाहनों की आवाजाही के लिए अस्थायी पुल भी बना डाले हैं। बेखौफ खनन माफिया नदियों के सूख जाने के बाद भी तलहटी को खोदकर बालू की निकासी कर रहे हैं। गौरतलब है कि लाल रेता कहलाने वाले बुंदेलखंड के मौरंग की भवन निर्माण में भारी मांग है। बुंदेलखंड का लाल रेता लखनऊ, सागर, छतरपुर से लेकर दिल्ली तक भेजा जाता है। हजारों करोड़ रुपये के खनन व्यवसाय वाले बुंदेलखंड से प्रदेश सरकार को हर साल केवल 500 करोड़ रुपये का राजस्व खनन के रुप में मिलता है। जबरदस्त खनन के चलते कभी हरे भरे रहने वाले बुंदेलखंड में अब बंजर जैसा नजारा दिखता है। खुद वन विभाग का मानना है कभी 30 फीसदी से ज्यादा जंगलों वाले इस क्षेत्र में अब बमुश्किल 5 से 6 फीसदी ही वन रह गए हैं।
-सिद्धार्थ पाण्डे