02-Feb-2017 10:18 AM
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लड़कियां क्या पहनें और क्या न पहनें- हमारे देश के तथाकथित प्रगतिशील बुद्धिजीवियों के लिए यह हमेशा से एक गरमागरम और लार-टपकाऊ विषय रहा है। लेकिन हमारा स्टैंड बिल्कुल साफ है कि जो लड़कियों पर कपड़ों की पाबंदी लगाना चाहते हैं, वे भी एक्स्ट्रीमिस्ट हैं और जो लोग यह कहते हैं कि चाहे कुछ भी पहनो, किसी को क्यों परेशानी होनी चाहिए, वे भी एक्स्ट्रीमिस्ट हैं। कपड़ों की आजादी आपको है, होनी चाहिए, लेकिन नग्नता की आजादी किसी को नहीं दी जा सकती।
आप चाहे साड़ी पहनें, जींस पहनें, कुर्ती-सलवार पहनें- कुछ भी पहनें, इतना ध्यान जरूर रखें कि कपड़े पहनने का प्राथमिक उद्देश्य तन को ढंकना ही होता है। न बिल्कुल ऐसा निजाम होना चाहिए कि हर औरत बुरके में दिखे, न बिल्कुल ऐसा दौर होना चाहिए कि हर स्त्री नग्न या अर्धनग्न सड़कों पर घूमे। एक बीच का रास्ता ही श्रेयस्कर है।
भारत में जब भी कपड़ों पर चर्चा होती है, कई लोग हमें अजंता और एलोरा के दर्शन कराने लगते हैं। धर्म से, संस्कृति से, इतिहास से ढूंढ़-ढूंढ़कर हवाला देने लगते हैं। उस लंबी बहस का कोई मतलब नहीं होता, क्योंकि सबसे बड़ा तथ्य यही है कि एक दिन पूरी दुनिया में इंसान नंगे रहे होंगे और आज पूरी दुनिया में लोग कपड़े पहन रहे हैं।
हम पुराने राजा-महाराजाओं वाली व्यवस्था तो अपने मुल्क मे नहीं चाहते, लेकिन अपनी अप्सराओं को उन्होंने जैसे कपड़े पहनवाए, अपने कलाकारों से जैसी मूर्तियां बनवाईं, उनका हवाला देकर आज स्त्रियों को नग्न या अर्धनग्न देखने की तमन्ना जरूर रखने लगे हैं।
पुरुषों की मानसिकता को समझने की जरूरत है। ज्यादातर हिन्दुस्तानी मर्द अपनी बहन-बेटियों को ढंका हुआ और दूसरों की बहन-बेटियों को नग्न देखना चाहते हैं। इसीलिए वो आपको इतने प्रगतिशील दिखाई देते हैं। बहुत सारी स्त्रियां पुरुषों की इस चालाक मानसिकता को नहीं समझ पातीं और बहुत सारी इसे अच्छी तरह समझते हुए इसका फायदा उठाना चाहती हैं।
नग्नता के पक्ष में बहुत सारी आवाजें आपको इसीलिए सुनने को मिलती हैं। दोहरा रवैया तो हर जगह है। सरकारी स्कूल-कॉलेजों में ड्रेस-कोड की मुखालफत की खबरें अक्सर आती रहती हैं, लेकिन प्राइवेट स्कूल-कॉलेजों में ड्रेस-कोड का विरोध आपने कभी सुना है? वहां वही ड्रेस-कोड डिसिप्लिन का हिस्सा बन जाता है। इसी तरह, स्त्रियों के कपड़ों की आजादी पर फिल्म इंडस्ट्री काफी कुछ बोलती रहती है, लेकिन क्या फिल्म इंडस्ट्री में लड़कियों को अपनी मर्जी के कपड़े पहनने की आजादी है? बिल्कुल नहीं। फिल्म इंडस्ट्री में कोई अभिनेत्री अगर कपड़े नहीं उतारना चाहेगी, तो हमारी इंडस्ट्री उसे यह आजादी नहीं देगी, क्योंकि वहां पर आजादी तो सिर्फ कपड़े उतारने की है।
इस वक्त देश को एक ऐसे युग पुरुष की जरूरत है जो वाकई में राम राज्य की स्थापना कर सके। जहां देश की बहु-बेटियां स्वयं को सुरक्षित महसूस कर सकें। ऐसा नहीं है इस देश का कानून कमजोर है। बल्कि इस देश के कानून में वेश्या के साथ भी जबरदस्ती करने पर सजा का प्रावधान है, लेकिन हद तो ये है कि ये बलात्कारी नाबालिग है इसलिए सजा का हकदार नहीं। यकीन मानिए यह बात मुझे बहुत हास्यपद लगती है कि जो बलात्कार कर सकता है वो नाबालिग कैसे? भारतीय समाज में शुरू से ही स्त्री को नीची जाति का माना गया है। शुरू से ही बेटी को घर की नौकरानी और बेटे को राजा माना गया है। बलात्कार एक तरह से स्त्री को नीचा दिखाने और कमजोर कहने का तरीका है। प्राकृतिक रूप से औरत को कमजोर और पुरुष को बलिष्ठ कहा गया है। अब यह एक मानसिकता बन गई है जिसके कारण स्त्री-पुरुष की जोर जबरदस्ती का विरोध शारीरिक रूप से नहीं कर पाती है और हार मान लेती है। देश की समूची स्त्री जाति को एक जुट होकर देश में कानून के बदलाव की मांग करनी चाहिए। हिंदी फिल्म में स्त्री द्वारा भड़काऊ गीत और नृत्य बंद करवाने की मांग करनी चाहिए। बलात्कारी की सजा सिर्फ फांसी होनी चाहिए।
आखिर तय कौन करेगा कि महिला कैसे कपड़े पहने?
देश ये किस काल से गुजर रहा है। एक ओर जहां हम नारी सशक्तिकरण की बात कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर पुरुष अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर नारी की अस्मिता तार-तार कर रहा है। जब भी कहीं ऐसी घटना होती है सोशल मीडिया पर एक जंग छिड़ जाती है। एक बड़ा तबका समानता के अधिकार के नाम पर शराब सिगरेट और कम कपड़ों की हिमायत करता है तो दूसरा तबका इसे पतन का रास्ता मानता है। सवाल तो ये है कि आखिर तय कौन करेगा कि महिला कैसे कपड़े पहने? या कैसा आचरण करे? रोज- रोज बलात्कार की बढ़ती घटनाओं से समाज में डर की स्थिति बनती जा रही है। मां-बेटी को जन्म देने से डर रही हैं और महिलाएं घर से बाहर नहीं निकलना चाहती हैं। भारत में हर पंद्रह मिनट में बलात्कार हो रहा है। ध्यान रहे ज्यादातर की शिकायत दर्ज भी नहीं की जाती। आखिर बलात्कार के कारण क्या है? अगर हाल के कुछ वर्षों के आंकड़ों को देखें तो बलात्कार की घटनाएं कम होने की बजाए बढ़ती जा रही हैं। लेकिन सरकार चुप है। चुप क्यों है? क्योंकि सरकार चलाने वाले युगपुरुष जात-पात और धर्म की राजनीति में व्यस्त है। विदेश भ्रमण में व्यस्त है। सेल्फी बाजी और जुमले बाजी में व्यस्त है।
-ज्योत्सना अनूप यादव