छत्रपति शिवाजी का स्मारक और उसके राजनीतिक मायने
03-Jan-2017 07:13 AM 1234886
महाराष्ट्र की राजनीति और सामाजिक जीवन में छत्रपति शिवाजी का बड़ा महत्व है। हर बार चुनाव में शिवाजी का स्मारक चुनावी मुद्दा रहा है जो पिछले 10 सालों से फाइलों में दबा था, लेकिन सत्ता में आते ही भाजपा ने इस मुद्दे को हथिया लिया और 3,600 करोड़ रुपये के इस स्मारक का शिलान्यास कर दिया गया। भाजपा के पक्ष में शिवाजी को देख कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना हैरान है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नगर निकाय चुनावों के कुछ महीने पहले मुंबई तट पर मराठा नायक शिवाजी महाराज के भव्य स्मारक का शिलान्यास कर मैदान मार लिया है। 17वीं सदी के इस महान शासक की विरासत पर दावा करने वाले अन्य राजनीतिक दल अब हाथ मल रहे हैं। राज्य सरकार के अनुसार यह स्मारक दुनिया में सबसे ऊंचा होगा जिसकी ऊंचाई 192 मीटर होगी। इस स्मारक की लागत करीब 3,600 करोड़ रुपये आंकी गई है। ऐसा माना जा रहा है कि यह स्मारक मराठा अस्मिता कि नई मिसाल बनेगा। मुंबई में तकरीबन 23 प्रतिशत मराठा वोटरों के लिए स्मारक कि मूर्ति एक बहुत बड़ा आइकॉन होगा। ऐसे में इस स्मारक के कारण पूरे मराठा नहीं तो कम से कम एक वर्ग बीजेपी के प्रति नरम भी हो सकता है। हाल ही में पूरे महाराष्ट्र में मराठी समुदाय के लोगों ने आरक्षण के मुद्दे पर प्रदर्शन किया था। ऐसे में सरकार इस स्मारक के बूते मराठा वोटरों की सहानुभूति लेने का प्रयास भी करेगी। गौरतलब है कि कुछ महीने बाद ही बीएमसी के चुनाव भी होने वाले हैं। भले ही शिव सेना महाराष्ट्र में भाजपा की सहयोगी पार्टी है लेकिन आजकल उसकी भूमिका विपक्ष जैसी ही दिखती है। शिवसेना और भाजपा दोनों पार्टियों के बीच दोस्ती भी है और वे बार-बार एक-दूसरे को चुनौती देने की कोशिश भी करते हैं। अभी नोटबंदी के खिलाफ शिवसेना ने भाजपा के खिलाफ मोर्चा भी खोल रखा है। पिछले विधान सभा चुनावों में हम लोग देख चुके हैं कि कैसे भाजपा शिवसेना से बड़े भाई कि भूमिका को छीन कर खुद बड़ी बन बैठी। पहली बार 1987 में शिवसेना और भाजपा  का गठबंधन हुआ और ये कई सालों तक चला। महाराष्ट्र में उस समय भाजपा का कोई जनाधार नहीं था। शिवसेना के पास जनाधार था क्योंकि उसके पास बाला साहब ठाकरे जैसे लीडर थे। लेकिन यह माना जाता है कि भाजपा हमेशा से राजनीति की शातिर खिलाड़ी रही है और जैसे ही मोदी और अमित शाह जैसे सिक्के भाजपा को मिले और उसका वोट प्रतिशत बढ़ा, उसने उसी दिन से शिवसेना को सबक सिखाने की ठान ली। मुंबई महानगर पालिका में शिवसेना का अधिकार और सत्ता शिवसेना की जान है ऐसे में आने वाले वक्त में दोनों पार्टियों के बीच खाई गहराने की सम्भावनाएं ज्यादा ही हैं। भाजपा के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है। इस वजह से वह हर दांव आजमाएगी। लेकिन अगर शिवसेना बीएमसी चुनाव में हार जाती है तो यह उसके लिए विनाशकारी साबित हो सकता है। शिवसेना का सबसे बड़ा आइकॉन शिवाजी महाराज हैं जो यहां के मराठी मानुष में बहुत महत्वपूर्ण हैं। ऐसे में शिवसेना को अपना अस्तित्व बचाने के लिए काफी मशकत करने की जरूरत होगी। उधर इस स्मारक का विरोध कुछ राजनीतिक धड़े सहित अन्य संगठन कर रहे हैं। इसके पीछे उनका तर्क है कि इतने पैसों से बड़े विकास कार्यों को अंजाम दिया जा सकता था। इन्हें विकास योजनाओं पर व किसानों के हित पर खर्च करना चाहिए था। भाजपा की नजर मराठा वोटों पर ! काफी लंबे अरसे से महाराष्ट्र की राजनीति में शिवाजी का स्मारक चुनावी मुद्दा रहा है। हालांकि यह योजना कांग्रेस और एनसीपी की सरकार में पिछले 10 सालों से फाइलों में दबा था लेकिन सत्ता में आते ही भाजपा ने इस मुद्दे को हथिया लिया और फिलहाल ऐसा प्रतीत होता है कि भाजपा सरकार राज्य में अपनी राजनीतिक बढ़त बना ली है। भाजपा के इस कदम से सभी दल सदमे में हैं। दरअसल हर बार चुनाव में पार्टियां स्मारक को चुनावी मुद्दा बनाकर अपनी राजनीतिक रोटी सेंकती थीं, लेकिन मोदी ने एक झटके में न केवल सबके हाथों से मुद्दा छीन लिया बल्कि प्रदेश के एक बड़े वोट बैंक पर भी अपना प्रभाव डाल दिया। इससे सबसे अधिक नुकसान में शिवसेना है। क्योंकि शिवाजी उसकी राजनीति का आधार हैं। -मुंबई से बिन्दु
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