02-Feb-2017 09:33 AM
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इंडिया अगेंस्ट करप्शनट्ट की त्रिमूर्ति के आपसी संबंध राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की भेंट चढऩे की खबर है। कवि कुुमार विश्वास तो पहले से ही हाशिए पर डाल दिए गए थे। अब मुख्यमंत्री केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री सिसोदिया के संबंध भी बिगडऩे लगे हैं। कुछ समय पूर्व सिसोदिया ने अपना त्यागपत्र तक सीएम को भेज दिया था। पार्टी सूत्र कहते हैं कि सिसोदिया की बढ़ती लोकप्रियता से खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे केजरीवाल इन दिनों सत्येंद्र जैन पर ज्यादा भरोसा करने लगे हैं
भारतीय राजनीति के परिदृश्य में आम आदमी पार्टी का जन्म एक ऐसे समय में हुआ जब स्थापित राजनेताओं और राजनीतिक दलों पर से आमजन का भरोसा उठ चुका था। समाजसेवी अन्ना हजारे के नेतृत्व में शुरू हुआ आंदोलन तत्कालीन यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार पर चुनिंदा युवाओं का ऐसा प्रहार था जिसकी गूंज पूरे देश में सुनी गई। यकीन इस आंदोलन का चेहरा महाराष्ट्र के वयोवृद्ध आंदोलनकारी नेता अन्ना का था लेकिन दिमाग इन्हीं चुनिंदा युवाओं का था। इंडिया अगेंस्ट करप्शन के नारे से शुरू हुए इस आंदोलन की एक सूत्रीय मांग एक जनलोकपाल कानून की थी जिसके माध्यम से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सके। टीम अन्ना के नाम से चर्चा में आए इन युवाओं में मुख्य रूप से आरटीआई कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल मनीष सिसोदिया और कुमार विश्वास थे। आंदोलन के विस्तार ने योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को इससे जोड़ा। बाद में मेधा पाटकर संतोष हेगड़े, संजय सिंह, आशुतोष आदि इनसे जुड़ते गए। अन्ना हजारे इस आंदोलन को भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मुहिम के रूप में जारी रखना चाहते थे जबकि उनकी कोर टीम की राजनीतिक महत्वाकांक्षा जागने लगी थी। नतीजा उन्नीस सितंबर 2012 के दिन अन्ना और उनके चेलों के बीच चल रहा शीतयुद्ध अलगाव का कारण बन गया। दोनों ने स्वीकारा कि राजनीतिक दल बनाने के मुद्दे पर उनके मतभेद हैं। अरविंद केजरीवाल ने दो अक्टूबर 2012 को राजनीतिक दल बनाने की घोषणा की। संतोष हेगड़े और किरण बेदी ने उनके निर्णय का विरोध किया जबकि सिसोदिया और विश्वास अरविंद के साथ रहे। मनीष सिसोदिया केजरीवाल संग 2005 के अंत से ही जुड़ गए थे। कबीर नाम के एनजीओ के संस्थापक मनीष पत्रकारिता से भी जुड़े रहे।
2006 में सूचना के अधिकार कानून का मसौदा तैयार करने वालों में वे शामिल रहे। 2006 में केजरीवाल और सिसोदिया ने पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन बनाया। सिसोदिया के पुराने मित्र रहे कुमार विश्वास को अन्ना आंदोलन से जोडऩे में मुख्य भूमिका सिसोदिया की ही रही। कुमार विश्वास पेशे से अध्यापक और हिंदी कविता का जाना-पहचाना नाम हैं। अन्ना आंदोलन के दौरान इन तीनों की जुगलबंदी देखते बनती थी। जब कभी अन्ना हजारे संग अरविंद का विवाद होता तो विश्वास मध्यस्थ की भूमिका में नजर आया करते थे। योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण संग केजरीवाल के संबंध खराब होने के दौरान कुमार विश्वास ही आपसी सुलह का प्रयास करते देखे गए थे। इस त्रिमूर्ति में आपसी टकराहट के संकेत बहुत अर्से से सामने आने लगे थे। केजरीवाल और विश्वास के बीच खटपट दिल्ली में आम आदमी पार्टी की पहली सरकार के दौरान ही देखने को मिली थी। केजरीवाल के कई पुराने साथियों ने पार्टी में बढ़ते अधिनायकवाद और केजरीवाल के इर्द-गिर्द एक चौकड़ी के विरोध में अपना इस्तीफा दे दिया। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं यदि पंजाब में पार्टी को अपेक्षित सफलता नहीं मिली तो केजरीवाल का ध्यान फिर से दिल्ली में केंद्रित हो जाएगा। ऐसे में पार्टी के इन दो शीर्ष नेताओं के बीच टकराव होना निश्चित होगा। दूसरी तरफ पार्टी के एमएलए अरविंद केजरीवाल की कार्यशैली से खासे नाखुश बताए जा रहे हैं। ऐसी खबरें भी आ रही हैं कि पार्टी के असंतुष्ट एमएलए केजरीवाल की बजाय सिसोदिया संग काम करने में ज्यादा सहज रहते हैं। जाहिर है इन सबके चलते केजरीवाल और सिसोदिया के बीच सत्ता के लिए संघर्ष हो सकता है। यदि ऐसा हुआ तो अन्ना आंदोलन के विश्वास की संपदा सहारे खड़ी हुई पार्टी की यह अधोगति निश्चित ही कष्टकारी होगी।
हाशिए में कुमार विश्वास
अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का अग्रणी चेहरा बन उभरे लोकप्रिय कवि डॉ कुमार विश्वास इन दिनों आम आदमी पार्टी में हाशिए का दंश झेलने को विवश हैं। कभी अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के संग इंडिया अगेंस्ट करप्शन की महत्वपूर्ण तिकड़ी का हिस्सा रहे विश्वास की पार्टी प्रमुख केजरीवाल संग खास बनती नहीं। यही कारण है इन दिनों वे पार्टी मंच पर बहुत सक्रिय नजर नहीं आते। हालांकि पार्टी की सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक कार्य समिति के वे सदस्य हैं लेकिन उन्हें न तो पंजाब में स्टार प्रचारक के तौर पर बुलाया गया है न ही गोवा में उनकी छवि को उपयोग में लाया जा रहा है। जानकारों की मानें तो केजरीवाल विश्वास को विश्वसनीय नहीं मानते। दूसरी तरफ विश्वास समर्थकों का मानना है चूंकि विश्वास केजरीवाल के यसमैन नहीं हो सकते इसलिए उन्हें जानबूझकर किनारे लगाने का काम चल रहा है। 2018 में दिल्ली से राज्यसभा की तीन सीटें खाली होने जा रही हैं। विधानसभा में प्रचंड बहुमत के कारण तीनों पर भी आप नेताओं का चुना जाना तय है।
-रेणु आगाल