02-Feb-2017 09:22 AM
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प्रधानमंत्री के साथ ऐसा बार-बार हो रहा है। जिस व्यक्ति को वे बेहद काबिल मानकर बड़ी जिम्मेदारी का पद सौंपते हैं उससे थोड़े ही दिन में नाउम्मीद हो जाते हैं। सुनी-सुनाई है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर उर्जित पटेल से नाराज हैं। प्रधानमंत्री को लगता है कि उर्जित पटेल उनकी अपेक्षाओं पर उतना खरे नहीं उतरे जितने की उम्मीद उन्होंने लगा रखी थी। नोटबंदी का आइडिया प्रधानमंत्री का था और उसे कामयाब बनाने की जिम्मेदारी सबसे ज्यादा उर्जित पटेल पर ही थी। लेकिन इस पर उर्जित पटेल की सलाह मानने से मोदी सरकार को फायदा कम और नुकसान ज्यादा हुआ।
रघुराज राजन को दोबारा मौका न देकर प्रधानमंत्री ने उर्जित पटेल पर दांव खेला था लेकिन वह दांव नोटबंदी के मसले पर कारगर साबित नहीं हो सका। सुनी-सुनाई है कि नोटबंदी से अचानक पैदा हुए नोट संकट का एकमात्र उपाय था हर तरह के नोटों को जल्द से जल्द बैंकों तक पहुंचाना। ऐसे में उर्जित पटेल ने दो हजार रुपए के नोटों से बैंकों को भर देने का आइडिया सरकार को दिया। यह अजीबोगरीब सुझाव उर्जित पटेल ने मजबूरी में भी दिया होगा। जितने कम समय में नोटबंदी का निर्णय लिया गया उसमें इतनी बड़ी संख्या में नए नोट छापना मुश्किल था। इसलिए टकसाल में पहले से छप रहे 2000 रुपए के नोटों से बैंकों को भरने का प्रस्ताव सरकार को दिया गया। लेकिन 2000 के नोटों को भी जनता तक पहुंचने में इतना वक्त लग गया कि चारों और त्राहि-त्राहि मच गई।
सुनी-सुनाई है कि प्रधानमंत्री कम से कम अपने रिजर्व बैंक के गवर्नर से इतनी तो उम्मीद रखते ही थे कि उन्हें यह पता होगा कि देश के लाखों एटीएमों में ऐसे बक्से नहीं थे जो दो हजार रुपए के नये नोट जनता में बांट सकें। ऊपर से नोटबंदी की घोषणा के बाद आज तक पांच सौ के नोटों की किल्लत बनी ही हुई है। बताया जाता है कि प्रधानमंत्री के निर्देश पर सेना से लेकर हर सरकारी महकमे की मदद रिजर्व बैंक को दी गई लेकिन उसने उस तेजी और समझदारी से काम नहीं किया जिसकी उम्मीद प्रधानमंत्री को नए आरबीआई गवर्नर से थी। इस मसले पर आरबीआई की सफाई यह है कि उसके इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था। इसलिए गलतियां होना लाजमी था।
पीएमओ तक पहुंच रखने वाले भाजपा के एक नेता के मुताबिक प्रधानमंत्री नोटबंदी की योजना को नए साल में लागू करना चाहते थे। लेकिन ऐसा इसलिए नहीं हो पाया क्योंकि आरबीआई के टकसाल से नए दो हजार के नोट का नमूना सोशल मीडिया पर घूमने लगा था। यह खबर फैल गई थी कि सरकार दो हजार के नोट ला रही है। प्रधानमंत्री जिस ऑपरेशन को टॉप सीक्रेट रखना चाहते थे, उसे वैसा बनाए रखने के लिए जनवरी के बजाय दो महीने पहले नवंबर में ही अमल में लाना पड़ा। टकसाल से जिस तरह नए नोट बाहर आए उसके लिए भी रिजर्व बैंक को ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।
रिजर्व बैंक के नए गवर्नर से नाराजगी की एक और वजह है - पुराने नोटों की वापसी का आंकड़ा। पहले आरबीआई ने पुराने नोटों के बारे में सार्वजनिक तौर पर बयान दिया कि दस लाख करोड़ से ज्यादा नोट वापस आ चुके हैं। फिर वित्त मंत्रालय की तरफ से इस गिनती की नई व्याख्या की गई। अब आरबीआई बता ही नहीं रहा कि आखिर कितने नोट वापस आए। फिर यह खबर आई कि 14 लाख 40 हजार करोड़ रुपए के पुराने नोट जमा हो चुके हैं।
प्रधानमंत्री ने पचास दिन लंबा नोटबंदी का अभियान काला धन पकडऩे के लिए चलाया था लेकिन अब ऐसा लगता है जैसे 97 फीसदी पुराने नोट बैंक में वापस आ चुके हैं। सरकार मानती है कि आरबीआई को ये आंकड़े जारी करने में जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए थी। अभी तो नोटों की छंटनी ही चल रही है, छंटनी के बाद गिनती होगी और सही आंकड़ा आने में करीब छह से आठ महीने लगेंगे। इसलिए रिजर्व बैंक को इस पर थोड़ा धीरज से काम लेना चाहिए, ऐसा मोदी सरकार को लगता है।
इसके अलावा मोदी सरकार इस बात से भी खफा है कि आरबीआई गवर्नर ने पिछले दिनों अपने कर्मचारियों का प्रवंधन ठीक से नहीं किया। हाल ही में आरबीआई की कर्मचारी यूनियन ने पटेल को पत्र लिखकर संस्थान की स्वायत्तता और उसमें वित्त मंत्रालय की दखलंदाजी को लेकर चिंता जताई थी। सरकार में इस बात को लेकर भी नाराजगी है कि यह पत्र उसके पास पहुंचने के साथ ही मीडिया को लीक हो गया था।
विश्वसनीयता पर संदेह!
उधर नोटबंदी का फैसला लागू करने के तरीके को लेकर आवाज उठने लगी है। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर बिमल जालान और वाईवी रेड्डी ने नोटबंदी का फैसला लागू करने के तरीके को केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता पर आघात बताया है। रिजर्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड ने एक दिन पूर्व सरकार के इस फैसले पर सहमति जताकर केवल औपचारिकता का ही निर्वहन किया। नियमों के मुताबिक भारतीय रिजर्व बैंक स्वायत्त संस्था है। दुनिया भर के लोकतांत्रिक देशों के केंद्रीय बैंक, मौद्रिक नीति को बनाते और उसकी घोषणा करते हैं और उसे संचालित करने के लिए समय-समय पर कदम उठाते हैं। जहां तक राजकोषीय नीति का सवाल है तो वह कार्यपालिका की जिम्मेदारी है। सरकार का वित्त विभाग राजकोषीय नीति बनाने और उसे लागू करने की जिम्मेदारी निभाता है। भारत में केंद्रीय बैंक के तौर पर भारतीय रिजर्व बैंक देश के आर्थिक हालात पर पैनी निगाह रखता है और समय-समय पर मौद्रिक एवं ऋण नीति घोषित करता है।
-मधु आलोक निगम