क्या रुकेगा अवैध खनन
20-Jan-2017 09:51 AM 1234778
मप्र में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पहल पर नमामि देवी नर्मदे यात्रा चल रही है, ताकि नर्मदा को अवैध खनन और प्रदूषण से बचाया जा सके। उधर, आलम यह है कि प्रदेश में केन से लेकर नर्मदा नदी तक में बेखौफ दनादन खनन हो रहा है।  नर्मदा, चंबल, बेतवा, केन, सोन और बेनगंगा आदि नदियों के साथ ही अन्य नदियों में जितनी रेत खदानें  वैध हैं, उससे कई गुना अवैध खदानें हैं। इन खदानों के एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) के नियमों को दरकिनार कर हर माह अरबों रूपए की अवैध रेत निकाली जा रही है। मध्यप्रदेश में रेत खदानें सोना उगलती हैं। इसलिए इस कारोबार में माफिया सबसे अधिक सक्रिय है। जिसका परिणाम यह हो रहा है कि रेत खनन वैध तरीके से कम अवैध रूप से अधिक चल रहा है। किसी के पास वैधानिक मंजूरी नहीं है। जो खदान चल रहीं हैं उनके पास पर्यावरण मंजूरी नहीं है। प्रशासन अनजान बन रहा है और अवैध उत्खनन खुलेआम जारी है। नियमों को दरकिनार नदियों का कलेजा चीर कर माफिया अवैध धंधा कर रहा है।  मप्र प्रदूषण बोर्ड का दावा है कि प्रदेश में जितनी भी रेत खदानें चल रही है उनमें से अधिकांश के पास पर्यावरण मंजूरी नहीं है। बिना मंजूरी के सभी खदान अवैध हैं। प्रशासन को भी खदान आवंटन से पहले पर्यावरण मंजूरी की जानकारी लेना चाहिए था। रेत के अवैध उत्खनन, अबैध भण्डारण व ओव्हरलोड परिवहन के कारण नदियों की सभी स्वीकृत रेत खदानों की 90 प्रतिशत रेत पूरी तरह समाप्त हो चुकी है। खनन माफिया ऐसे स्थानों से रेत का उत्खनन कर रहे है, जहां खदान स्वीकृत नहीं है। इससे नर्मदा, चंबल, बेतवा, केन, बेनगंगा आदि नदियों के हालात खनन के कारण गंभीर हैं। मध्यप्रदेश में खनन कारोबार का पिछले दस सालों में इस कदर विस्तार हुआ है कि राज्य के हर हिस्से में खदानों का खनन हो रहा था जिसके चलते अवैध उत्खनन का ग्राफ बढ़ गया है। माफिया ने अपने पैर फैला लिए है। अवैध उत्खनन की बार-बार बढऩेे की शिकायतों के बाद अब केंद्र सरकार ने खदानों की अनुमति लेने की शर्त केंद्र से अनिवार्य कर दी है। इसके चलते खनन कारोबारी घबरा गए हैं। मप्र का खनिज विभाग भी विचलित है।  अमरकंटक से लेकर होशंगाबाद तक नर्मदा किनारे रेत खनन के लिए खनिज विभाग ने जहां खदानें दी थी, उससे कई गुना ज्यादा क्षेत्र में खनन हो चुका है। इस पूरे मामले में विभाग तो आंखे मूंदे बैठा रहा और सैकड़ों एकड़ में रेत माफियाओं ने खुदाई कर पूरे तटों को खोखला कर दिया। पहले बड़े पैमाने पर हजारों ट्रक रेत निकालकर यहां से कई क्षेत्रों में जाती थी। अब ट्रैक्टरों से ये काम निरंतर जारी है। रही कसर अब ये लोग पूरी करने में लगे हैं। रेत खनन के मामले में खुदाई का कोई पैमाना न तो खनिज विभाग को दिखा और ना ही रेत माफियाओं ने इस पर अमल किया। सैकड़ों एकड़ में हुई खुदाई कई मीटर गहराई तक हो चुकी है। सबकुछ जानते हुए भी विभाग के जिम्मेदार इस दिशा में कुछ नहीं सोच रहे हैं। रेत खनन पर प्रशासन स्तर से खनन नहीं होने के चाहे जितने भी दावे किए जाए, लेकिन हकीकत इसके ठीक उलट है। रेत का अवैध खनन अब भी लगातार जारी है।  नर्मदा के तटों को खोखला करने में रेत माफिया कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। दिन के उजाले में चल रहे अवैध रेत खनन पर नकेल कसने में विभाग तो अब भी नाकाम ही है। औपचारिकताओं की पूर्ति के लिए कभी एक या दो ट्रैक्टरों को पकड़कर खनिज विभाग के जिम्मेदार अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। अभी हाल ही में बड़वानी में अवैध रेत खनन करने वाले माफिया विरोध करने वालों के साथ गुंडागर्दी पर उतर आए। प्रतिबंध के बाद भी रेत खनन कर रहे माफिया को रोकने पहुंचे नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट कर जान से मारने की धमकी दे डाली। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सरकार के इस कदम से अवैध खनन रुकेगा। केवल कमाई के लिए गठन नर्मदा केवल सफेदपोश, माफिया और अफसरों के लिए ही नहीं बल्कि उनके नाम पर समाज सेवा करने वालों के लिए भी काली कमाई का जरिया बनी हुई हैं। लेकिन आज जब नर्मदा के संरक्षण के लिए नमामि देवी नर्मदे यात्रा चल रही है और नेता, अफसर, जनता सभी इस अभियान में सहभागी बने हुए हैं ऐसे में समाजसेवा के नाम पर गठित एनजीओ कहां है? यह सवाल जनता पूछ रही है। यात्रा के दौरान नर्मदा मैय्या के  संरक्षण के तथाकथित सबसे बड़े पैरोकार नर्मदा बचाओ आंदोलन के लोग तो गायब हैं, साथ ही पिछले 10 सालों में सेवा के नाम पर करोड़ों रूपए लेकर मौज करने वाले गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ)भी गायब हैं। प्रदेश में जन अभियान परिषद ऐसे कार्यों के लिए हमेशा आगे रहता है। प्रदेश में जन अभियान परिषद से तकरीबन 50 हजार से ज्यादा एनजीओ रजिस्टर्ड हैं। इसके बावजूद नदी संरक्षण को लेकर काम करने वाले कुछ चुनिंदा एनजीओ को छोड़कर सामाजिक चेतना की अलख जगाने का दावा करने वाले तमाम संगठनों के सदस्य सिर्फ इक्का-दुक्का पौधे रोपकर ही अपने कर्तव्य से इतिश्री कर रहे हैं। जन अभियान परिषद के माध्यम से एनजीओ को बकायदा उनके काम के हिसाब से बजट आवंटित किया जाता है। लेकिन प्रदेश स्तर पर चल रही नर्मदा सेवा यात्रा में जागरुकता फैलाने के लिए एक भी एनजीओ को इससे नहीं जोड़ा जा सका। -नवीन रघुवंशी
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