शिकारियों की वापसी
20-Jan-2017 08:34 AM 1234926
पिछला साल भारत में बाघों की संख्या के लिहाज से सबसे खराब साल रहा। संसद के सामने पेश किए गए आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 2016 में 98 बाघों की मौत हुई, जो कि 2001 के बाद सबसे ज्यादा है। बाघों की मृत्यु दर में 2015 के मुकाबले 25 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। 2015 में देश के विभिन्न राष्ट्रीय उद्यानों और संरक्षण केंद्र में कुल मिला कर 78 बाघों की मौत हो गई थी। ये आंकड़े राष्ट्रीय पशु को बचाने की भारत की तैयारी की साफ तस्वीर पेश करते हैं, जिनकी मृत्यु दर चौंकाने वाली है। देश में दुनिया भर के बाघों की 70 प्रतिशत आबादी है और भारत राष्ट्रीय उद्यानों और संरक्षण केंद्रों में बाघ के शिकार पर रोक लगाने की कोशिश कर रहा है। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के राष्ट्रीय बाघ संरक्षण अधिकरण (एनटीसीए) ने कहा है कि 98 में से 50 फीसदी बाघों की मौत का कारण स्पष्ट नहीं है। इसका मतलब एनटीसीए जताना चाह रही है कि ज्यादातर बाघों की मौत शिकार के चलते हुई है। एनटीसीए ने पूर्व में एक पत्र जारी कर कहा था कि जिन मौतों का कारण पता न चले, उन्हें शिकार की ही गिनती में माना जाएगा या फिर मौत का कारण साक्ष्य के आधार पर तय किया जाए। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री अनिल माधव दवे ने कहा बाघों का शिकार और उन्हें जहर देकर मारने की घटनाएं बाघों के लिए सबसे बड़ा खतरा है क्योंकि बाघ के अंगों का इस्तेमाल पारम्परिक चीनी दवाओं में किया जाता है। मंत्रालय के एक पूर्व वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि बाघों के संरक्षण के उपायों में सुधार तो हुआ है लेकिन ये संतोषजनक नहीं है। बाघ, चीता, हाथी, पेंगोलिन जैसे पशुओं के शिकार की घटनाएं जिस रफ्तार से हो रही हैं, वह चिंताजनक है और सरकार इस ओर ध्यान ही नहीं दे रही है। पुराने वनकर्मी आजकल के संगठित अपराधियों का मुकाबला करने में सक्षम नहीं हैं। इसके लिए हमें कुछ होशियार व सतर्क लोगों की जरूरत है। राजनीतिक जागरुकता की कमी भी देश में बाघों के संरक्षण के लिए अभिशाप हैं। एनटीसीए के पूर्व प्रमुख और ग्लोबल टाइगर फोरम के प्रमुख राजेश गोपाल का कहना है कि अब बाघों की मौतों के आंकड़ों की खबर रखी जा रही है, क्योंकि अब वन विभाग पहले से ज्यादा सक्रिय हो गया है। उन्होंने कहा कि ये सारी ही मौतें शिकार की वजह से नहीं हुई हैं, बल्कि इनमें से कई प्राकृतिक और बेवजह हुई हैं। वे कहते हैं, लक्षित मौतों से उनका आशय है जब बाघों को उनके अंगों की वजह से मारा जाता है और बिना वजह हुई मौतों से उनका मतलब है जब कीट पतंगों के लिए बिजली के तार लगाए जाते हैं और गलती से बाघ उनकी चपेट में आ जाते हैं। ऐसा तब होता है जब पशुओं को झुंड में मारा जाता है और बदले की भावना से मारा जाता है। ऐसे में यह कहना गलत है कि पिछले एक साल में बाघों के शिकार में बढ़ोत्तरी हुई है। हालांकि वे मानते हैं कि भारत में शिकारी काफी सक्रिय हैं और इन टाइगर रिजर्व को निशाना बनाते हैं लेकिन बाघ मृत्यु दर बढऩे का एकमात्र कारण यही नहीं है। कुल 18-19 कारण हैं, जिस वजह से जंगलों में बाघों की मौतें हो रही हैं। गौरतलब है कि 2016 में बाघों की मौतों की संख्या में बढ़ोत्तरी देखी गई और इसी साल देश में बाघ बचाने पर तीसरा एशियाई मंत्रालयिक सम्मेलन हुआ था, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाघों को बचाने की अपील करते हुए इसके लिए आवंटित किए जाने वाले फंड की राशि 185 करोड़ रूपए से बढ़ा कर 380 करोड़ रूपए कर दी। भारत ने 2022 तक बाघों की संख्या दोगुनी करने का संकल्प लिया है और 2016 के आंकड़ों पर नजर डालें तो लगता है कि यह लक्ष्य हासिल करने के लिए काफी कुछ करना होगा। कमजोर वन्य जीव कानूनों और खराब संसाधनों के कारण बाघों के शिकार की समस्या साल-दर-साल बढ़ती ही जा रही है। अगर भारत वाकई बाघों की संख्या दोगुनी करना चाहता है तो इसे यह सुनिश्चित करना होगा कि 2016 जैसे हालात फिर से न हो। वरना बाघ तो यूं ही मरते रहेंगे। मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा मौतें एनटीसीए के आंकड़ों से पता चलता है कि मध्यप्रदेश में सर्वाधिक 33, कर्नाटक में 18 और महाराष्ट्र में 15 बाघों की मौत हुई। 2016 में केवल शिकार से ही 30 बाघ मारे गए, जो कि पिछले साल शिकार से हुई बाघों की मौत की संख्या से दोगुनी से भी ज्यादा है। कनसर्वेशन लेन्स एंड वाइल्ड लाइफ क्लॉ की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में 102 बाघों की मौत हुई जो 2015 के मुकाबले 145 प्रतिशत अधिक है। 102 बाघों में से 35 की मौत अप्राकृतिक कारणों से हुई। 43 की प्राकृतिक वजह से व 24 बाघों की मौत के कारणों का फिलहाल पता नहीं चला है।  रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 27.4 प्रतिशत मौतें 1 माह से 3 साल की उम्र के बाघों की हुई है। 30.39 प्रतिशत बाघों की मौतें 4-9 साल की उम्र के बाघों की हुई और 19.6 प्रतिशत बाघ दस साल से अधिक उम्र के थे। वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार, यह स्थिति चिंताजनक है और हमें अपने पार्कों के हालात सुधारने की जरूरत है। जांच की तकनीक में सुधार की जरूरत बताते हुए उन्होंने कहा, देश के राष्ट्रीय उद्यानों को बाघों के लिए सुरक्षित जगह बनाने की जरूरत है। -बिन्दु माथुर
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