बलात्कारी निकली पुलिस!
20-Jan-2017 08:17 AM 1234838
नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ की पुलिस पर एक बार फिर गंभीर आरोप लगे हैं। इस बार किसी सामाजिक संस्था, एनजीओ या विरोधी पार्टी के नेता नहीं बल्कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने छत्तीसगढ़ पुलिस को अक्टूबर 2015 में 16 महिलाओं के साथ बलात्कार और मारपीट करने का आरोपी पाया है। आयोग ने छत्तीसगढ़ सरकार को एक नोटिस जारी किया है। उसका सवाल है कि पीडि़ताओं को अंतरिम राहत के तौर पर 37 लाख रुपए देने की सिफारिश अब तक क्यों नहीं की गई। दरअसल, मानवाधिकार आयोग ने नवंबर 2015 में बीजापुर जिले के पांच गांवों में 40 पुलिस जवानों द्वारा आदिवासी महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और कम से कम दो महिलाओं के साथ बलात्कार की एक खबर पर संज्ञान लेते हुए सरकार को नोटिस जारी किया था। जिसके बाद राज्य सरकार ने मामले में रिपोर्ट दर्ज करने और जांच की जानकारी दी थी। इस जांच के दौरान ही मानवाधिकार आयोग को 11 से 14 जनवरी 2016 के बीच बीजापुर, सुकमा और दंतेवाड़ा जिले में बड़ी संख्या में सुरक्षाबल के जवानों द्वारा आदिवासी महिलाओं के साथ दुष्कर्म और शारीरिक प्रताडऩा की खबर मिली। जिसके बाद मानवाधिकार आयोग की फुल बेंच ने अपने अन्वेषण और विधि विभाग के एक जांच दल को मौके पर जाकर जांच के निर्देश दिए थे। आयोग ने अपने अन्वेषण विभाग के उप-पुलिस महानिरिक्षक को आदेश दिया है कि वह सुरक्षाबल के जवानों द्वारा बलात्कार और यौन प्रताडऩा की शिकार शेष 15 आदिवासी महिलाओं के बयान दर्ज करने के लिए अन्वेषण और विधि विभाग के अधिकारियों का दल बनाए और एक महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट आयोग को सौंपे। इसके साथ-साथ आयोग ने छत्तीसगढ़ में सीआईडी के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक को कहा है कि सुरक्षाबल द्वारा प्रताडि़त जिन 19 महिलाओं के बयान दंडाधिकारी के समक्ष दर्ज किए जा चुके हैं, उसे एक महीने के भीतर आयोग को उपलब्ध कराया जाए। आयोग ने राज्य के मुख्य सचिव को आदेश दिया है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कानून के तहत पीडि़त महिलाओं को जो भी आर्थिक सहायता दी जानी है, उसे जल्द से जल्द दिया जाए। आयोग ने यह साफ किया है कि ये सारे आदेश अंतरिम रूप से जारी किए जा रहे हैं और सुरक्षाबलों द्वारा महिलाओं के साथ बलात्कार और यौन प्रताडऩा के इस मामले में अन्य पीडि़त महिलाओं के बयान और इस पूरे मामले की विवेचना के बाद अंतिम आदेश जारी किए जाएंगे। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने 16 औरतों को छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा प्रथम दृष्टया बलात्कार, यौन उत्पीडऩ और मारपीट का शिकार पाया है। हालांकि उन्हें अभी 20 अन्य पीडि़ताओं के बयान रिकॉर्ड करने हैं। आयोग ने मुख्य सचिव की ओर से छतीसगढ़ सरकार को एक नोटिस भेजा है, यह बताने के लिए कि उन्हें 37 लाख रुपए अंतरिम आर्थिक राहत के तौर पर देने की सिफारिश क्यों नहीं की गई। इसमें सभी 8 बलात्कार पीडि़ताओं को 3-3 लाख रुपए, सभी 6 यौन उत्पीडऩ की शिकार औरतों को 2-2 लाख रुपए, और मारपीट की दो पीडि़ताओं को 50-50 हजार रुपए देना शामिल है। आयोग का प्रथम दृष्टया मत है कि सुरक्षा कर्मचारियों ने पीडि़ताओं के मानवाधिकारों का हनन किया है। इसके लिए छत्तीसगढ़ सरकार अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार है। आयोग ने यह भी पाया कि एफआईआर में छत्तीसगढ़ सरकार के सुरक्षा कर्मचारियों के खिलाफ बलात्कार, यौन उत्पीडऩ और मारपीट के गंभीर आरोप दर्ज हैं। जांच के दौरान इन आरोपों को एनएचआरसी टीम के सामने बार-बार दुहराया गया। एनएचआरसी टीम, एफआईआर में दर्ज 34 में से केवल 14 पीडि़ताओं के बयान रिकार्ड कर सकी। इस तरह 20 पीडि़ताओं के बयान रिकॉर्ड होने अभी बाकी हैं। केवल 15 पीडि़ताओं के बयान मजिस्ट्रेट ने रिकार्ड किए हैं जबकि 19 के बयान और रिकॉर्ड होने हैं। तीन एफआईआर में दर्ज इन घटनाओं की लगभग सभी पीडि़ताएं जनजातियों से आती हैं। कल्लूरी की बढ़ती मुश्किलें एनएचआरसी की जांच के नतीजों से छत्तीसगढ़ के शीर्ष पुलिस अधिकारी एसआरपी कल्लूरी मुश्किल में पड़ सकते हैं। उन्हें पहले ही जनजातीय लोगों पर पुलिस के अत्याचार के कारण कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। अब बीजापुर जिले के पांच गांव-पेगडापाली, चिन्नागेलूर, पेड्डागेलूर, गुंदम और बुर्गीचेरू की औरतों ने छत्तीसगढ़ पुलिस पर आरोप लगाया है कि उन्होंने उनमें से 40 का यौन उत्पीडऩ और मारपीट की और कम से कम दो का गैंग रेप किया। यह भी रिपोर्ट थी कि इन गांवों से गुजरते हुए पुलिस वालों ने ग्रामीणों के घरों में चोरी और उसे तहस-नहस कर दिया। इधर मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल की छत्तीसगढ़ ईकाई के अध्यक्ष डॉक्टर लाखन सिंह ने कहा है कि बस्तर में सुरक्षाबलों का जिस तरह से आतंक चल रहा है, यह केवल उसका एक नमूना है। लाखन सिंह ने कहा-ऐसे सैकड़ों मामले हैं जो गांवों की सरहद में ही दम तोड़ देते हैं। संकट ये है कि जब मानवाधिकार संगठन और वकील इस तरह के मामलों में हस्तक्षेप करते हैं तो पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों के आदेश पर उन्हें डराया-धमकाया जाता है। -रायपुर से टीपी सिंह के साथ संजय शुक्ला
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