20-Jan-2017 08:09 AM
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कुछ समय पहले तक भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आंख की किरकिरी बने रहे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन दिनों भाजपा के लिए नूर बन गए हैं। कभी नीतीश का हर कदम भाजपा को नागवार गुजरता था आज उनका हर काम अच्छा लगने लगा है। कहीं यह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के विरोध का डर तो नहीं है। वजह कुछ भी हो भाजपा को नए नीतीश अब कबूल हैं। तभी तो मोदी भी नीतीश की जमकर तारीफ कर रहे हैं। वहीं नीतीश भी मोदी की तारीफ में कशीदे गढ़ रहे हैं।
पटना में गुरूगोविंद सिंह के प्रकाश पर्व पर आयोजित कार्यक्रम में दोनों नेताओं ने एक-दूसरे की तारीफ पर तारीफ की। इसकी शुरुआत नीतीश ने की थी। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में कहा कि हमारे प्रधानमंत्री 12 साल तक मुख्यमंत्री रहे और गुजरात में शराब बैन को लागू किए रखा। जब नीतीश भाषण देकर मंच पर लौटे तो नरेंद्र मोदी ने बड़ी गर्मजोशी से उनसे हाथ मिलाया। जब मोदी का संबोधन हुआ तो उन्होंने नीतीश की ऐसी तारीफ की जिसकी उम्मीद उनके करीबी नेताओं को नहीं थी। प्रधानमंत्री ने कहा - नीतीश कुमार ने नशामुक्ति के जरिए समाज परिवर्तन का बहुत मुश्किल काम किया है। बिहार देश के लिए मिसाल बन गया है। नीतीश कुमार के एक करीबी नेता का कहना है कि नशामुक्ति तो बहाना था, दोनों का असली निशाना लालू यादव थे। जब नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार एक-दूसरे की शान में कसीदे पढ़ रहे थे तो लालू प्रसाद यादव वहीं मंच के नीचे बैठे थे। नीतीश की सरकार में लालू के बेटे तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री हैं, लेकिन उन्हें मंच पर जगह नहीं मिली थी। लालू के एक करीबी नेता और नीतीश सरकार में कैबिनेट मंत्री बताते हैं कि तारीफ के इस आदान-प्रदान से बिहार के महागठबंधन में घमासान मच गया है। जब से लालू यादव ने यह नजारा अपनी आंखों से देखा है वे बेचैन हैं। उन्हें लगता है कि मोदी और नीतीश के बीच कोई खिचड़ी पक रही है, जिसकी भनक अब तक उन्हें नहीं है।
यह दूसरा मौका है जब सार्वजनिक तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नीतीश कुमार की तारीफ की है। बिहार के एक सांसद बताते हैं कि दस साल से ज्यादा लंबी लड़ाई अगर बड़ाई में बदल गई तो ऐसा सिर्फ नोटबंदी और शराबबंदी की वजह से नहीं हुआ है। इसके पीछे असली वजह मोर्चाबंदी और गोलबंदी है। दरअसल, नीतीश कुमार बहुत संभलकर 2019 की तैयारी कर रहे हैं और राहुल गांधी बहुत खुलकर 2019 के लिए अपना मोर्चा बना रहे हैं। लालू यादव ने बिना ज्यादा सोचे-समझे राहुल के मोर्चे में जाने की सहमति दे दी। लेकिन नीतीश कुमार उन्हें अपना नेता नहीं मानते। नीतीश की सरकार लालू यादव और राहुल गांधी की पार्टी के सहारे से चल रही है। लेकिन अगर किसी भी दिन इन दोनों ने उनसे पल्ला झाड़ लिया तो भाजपा के समर्थन से उनकी सरकार बच सकती है।
पटना में इस बार जो हुआ वह इस लिहाज से भी एकदम अलग है कि नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी की अदावत की खुली शुरुआत भी पटना से ही हुई थी। 2010 में नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के लिए पटना गए भाजपा नेताओं को भोज पर आमंत्रित करने के बाद उसे रद्द कर दिया था। नीतीश कुमार नहीं चाहते थे कि नरेंद्र मोदी भी उस भोज में आएं। लेकिन जब हालात बदले तो नीतीश कुमार बिलकुल बदल गए। नये नीतीश कुमार प्रधानमंत्री का स्वागत करने हवाई अड्डे पर
जाते हैं, मंच पर नरेंद्र मोदी के साथ ठहाके लगाते हैं, नोटबंदी पर उनका समर्थन करते हैं और शराबबंदी पर नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करते हैं। भाजपा को ये नए नीतीश कुमार कबूल हैं। बस नीतीश को कहना है कि भाजपा भी उन्हें कबूल है।
राजनीतिक मजबूरी
मोदी और नीतीश की राजनीतिक मजबूरी है की वे एक-दूसरे के करीब आ रहे हैं। बिहार भाजपा के नेता अब यह मान चुके हैं कि अकेले दम पर विधानसभा चुनाव में नीतीश और लालू की जोड़ी को नहीं हराया जा सकता। बिहार चुनाव से पहले 2019 में लोकसभा चुनाव होने हैं। भाजपा को लगता है कि तब तक लालू और नीतीश साथ नहीं चल पाएंगे। लालू हर रोज कोशिश करते हैं कि वे सरकार के काम में अपना दखल बनाए रखें और नीतीश हर रोज उनकी दखलंदाजी को अपने अंदाज में नजरअंदाज या अस्वीकार कर देते हैं। यह स्थिति नीतीश कुमार को बेहद असहज करती है। नीतीश सरकार में मंत्री रह चुके भाजपा के एक नेता बताते हैं कि देर-सबेर जेडीयू और भाजपा का गठबंधन होना ही है क्योंकि अपनी वर्तमान स्थिति से न तो नीतीश खुश हैं और न भाजपा ही संतुष्ट है।
-कुमार विनोद