03-Jan-2017 06:51 AM
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ऊपर से ठीक ठाक, भीतर में मार काट। बिहार महागठबंधन में यही नजारा है। बड़ा भाई बोलता है कि नोटबंदी देश को बर्बाद कर रहा है तो वहीं छोटे भाई का मानना है कि केन्द्र ने सही कदम उठाया है। बड़ा भाई नोटबंदी के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आन्दोलन शुरू करने की तैयारी कर रहा है, तो छोटा नोटबंदी पर लिए गए अपने निर्णय की समीक्षा करने की बात कह रहा है। लय यहां है तो ताल वहां है। इन सबके बावजूद बिहार की राजनीति में यह देखने को मिल रहा है कि सत्तारूढ़ जदयू और राजद ने शासन का बंटवारा कर लिया है। यानी आधा-आधा शासन चल रहा है। यहां तक कि ट्रांसफर पोस्टिंग में भी आधी हिस्सेदारी ली जा रही है। इससे सुशासन बाबू का शासन बंदरबांट का शिकार हो गया है।
दूसरी तरफ, महागठबंधन सरकार में शामिल तीसरा भाई कांग्रेस सदमे में है। उसकी हालत गांधीजी के तीन बंदरों के समान है। सबकुछ देखते हुए भी शांत रहना है या रहने की लाचारी है। क्योंकि वह भलीभांति अपनी औकात जानता है। वैसे कभी-कभार इस पार्टी के एक बोलन्तू नेता टिटहरी के माफिक सबकुछ दुरूस्त कर देने का अलाप लगाते हैं। लेकिन जब महागठबंधन के बड़े भाई लालू प्रसाद यादव की घुड़की लगती है तो इनकी स्थिति सटक नारायण सीताराम की हो जाती है। महागठबंधन में जारी अंदरूनी मारामारी के कारण राज्य में महीनों से खाली पड़े बोर्डों तथा निगमों में नियुक्तियां नहीं हो पा रही हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार डीएम तथा एसपी का समय पर तबादला करने में असमर्थ हैं। वातावरण में गुलाटी मार रही खबरें खुलासा करतीे हैं कि सहयोगी दल के एक पराक्रमीÓ नेता ने सीएम को मैसेज भिजवाया है कि राज्य के कुल 38 जिलों में से 20, जिसमें पटना भी शामिल है, को उन्हें सौंपा जाए ताकि उनकी मर्जी से अधिकारियों का ट्रांसफर व पोस्टिंग हो। गठबंधन सरकार में मेरा शेयर ज्यादा है, फलत: मुझे प्राफिट भी अधिक मिलना चाहिएÓÓ। ऐसा उनका तर्क है।
हालांकि महागठबंधन के अन्दर मौजूद अंर्तविरोध जगजाहिर हैं। पहले नीतीश कुमार की पीएम उम्मीदवारी, फिर उत्तर प्रदेश चुनाव पर शह- मात का खेल, बीते दिनों पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी का राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के घर आना, पटना आने पर किसी मंत्री के द्वारा स्वागत न किया जाना, कई राजद नेताओं द्वारा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को गद्दार कहा जाना, राबड़ी देबी का नीतीश कुमार पर आपत्तिजनक टिप्पणी करना, राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तथा पूर्व केन्द्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह का नीतीश कुमार के खिलाफ लगातार बयान देना तथा भारत बंद से जनता दल (यू) का दूर रहना, फिर बीपीसीसी के अध्यक्ष अशोक चौधरी की चेतावनी कि अगर आलाकमान आदेश दे तो हम एक मिनट में सरकार से अलग हो जाएंगे इत्यादि गतिविधियों से संकेत मिल रहे हैं कि महागठबंधन में भीतरिया मारामारी चल रही है।
महागठबंधन में जारी आपसी युद्ध प्रदेश के कामकाज को भीषण रूप से प्रभावित कर रहा है। सबसे दीनहीन व त्रिशंकु वाली स्थिति पदाधिकारियों की है। कइयों का कहना है कि हम सब दो सीएम को डील करते हैं। पहला नरम बाबू हैं और दूसरा कड़क साहब हैं। नरम बाबू कोमल भाषा में कभी-कभी कोई टेलिफोनिक आदेश देते हैं जबकि कड़क साहब असली राजा की तरह रोज कम से कम आधा दर्जन बार फोनिआते हैं, हम पर दबाव बनाने के लिए अभद्र लैंग्वेज का भी प्रयोग करते हैंÓÓ। यानी बिहार में शासन दो हिस्सों में बंटा हुआ है। इसका खामियाजा अफसरों को उठाना पड़ रहा है। उन्हें परेशानी यह रहती है कि वे किसका कहा मानें। ऐसे में अफसरों ने भी बीच का रास्ता यानी नाफरमानी का सहारा ले लिया है। इससे बिहार में शासन भगवान भरोसे चल रहा है।
सियासी यात्राओं में लीन नीतीश
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सियासी यात्राओं से बड़ा फायदा होता रहा है। फिलहाल वे निश्चय यात्रा कर रहे हैं। पिछले दिनों सुपौल गए और जनसभा कर आए। इससे पहले तीन और जगहों पर यही कवायद की थी। निश्चय यात्रा का मतलब यह है कि विकास और जनहित के उनके कार्यों का निश्चय। इन दिनों अपने सात निश्चयों का बखान कर रहे हैं। लगे हाथ अपनी सरकार की कामयाबियों का बखान करना भी नहीं भूलते। यात्राओं के बहाने वे सूबे के विभिन्न इलाकों का दौरा भी कर लेते हैं और लोगों से संवाद भी। ग्यारह साल पहले जब बिहार की सत्ता संभाली थी तो उससे ठीक पहले न्याय यात्रा से इस नए प्रयोग का आगाज किया था। सत्ता में आकर भी यात्राएं करनी नहीं छोड़ी। अलबत्ता यात्रा का नाम और मुद्दे बेशक बदलते रहे। कई बार यह सफाई भी दी कि वे महज चुनावी मौके पर तैयारी नहीं करते। अलबत्ता उनकी तैयारी तो चुनाव के लिए पूरे पांच साल चलती है।
-कुमार विनोद