03-Jan-2017 07:42 AM
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दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग के इस्तीफे के बाद जो सबसे बड़ा सवाल हर जेहन में उठ रही है वो ये कि क्या अब दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार और राजनिवास के बीच जंग खत्म हो गई? क्या नजीब जंग के इस्तीफे के बाद दिल्ली सचिवालय और राजनिवास के बीच की दूरियां खत्म होंगी? इन सवालों के जवाब छुपे हैं उस सवाल के बीच कि आखिर नजीब जंग ने इस्तीफा क्यों दिया। यूं तो केंद्र शासित प्रदेशों में राष्ट्रीय ये नुमाइंदे के तौर पर केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले उपराज्यपाल का कोई तय कार्यकाल नहीं होता। फिर भी माना जा रहा था कि नजीब जंग बतौर उपराज्यपाल दिल्ली में 2017 तक पारी खेलने वाले थे। इन कयासों को अगर दरकिनार भी कर दें तो ये सवाल उठता है कि अचानक ऐसा क्या हुआ जिसने जंग को दिल्ली का सिंहासन खाली करने पर मजबूर कर दिया है। जाहिर है इतनी आसानी से इस्तीफे से पीछे नजीब जंग द्वारा दिए गए निजी वजह और अध्यापन में
लौटने के कारणों को इतनी आसानी से कोई पचा नहीं सकता।
नजीब जंग को अगर अध्यापन में ही लौटना था तो ये फैसला पहले या कुछ महीने बाद क्यों नहीं लिया? हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली में अधिकारों की लड़ाई पर फैसला नजीब जंग के पक्ष में रखा। इसी फैसले के बाद नजीब जंग ने शुंगलू कमेटी बनाकर केजरीवाल सरकार द्वारा पिछले डेढ़ सालों में लिए गए सभी फैसलों को जांच के दायरे में खड़ा कर दिया। इतना ही नहीं, सूत्रों की माने तो जंग ने दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से जुड़ी फाइलें भी सीबीआई को भेजीं। इसी बीच एसीबी के जरिए स्वाति मालीवाल के खिलाफ दिल्ली महिला आयोग में नियुक्ति को लेकर एफ आइ आर भी हुई। राजनिवास से केजरीवाल सरकार के सभी करीबी अधिकारियों के तबादले के आदेश आ गए, लेकिन इस बीच अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली से मोहभंग कर पंजाब और गोवा का रुख कर लिया। दिल्ली की कमान मनीष सिसोदिया को सौंप केजरीवाल गोवा और पंजाब में विधानसभा चुनावों की तैयारियों के लिए निकल गए। यानि नजीब जंग की राह में फिलहाल कोई रोड़ा दिल्ली में नहीं था
सिवाय छिटपुट हमलों के जो केजरीवाल
सरकार के मंत्री लगातार उन पर करते रहे। ऐसे में जंग का अचानक पलायन सोचने पर मजबूर करता है कि ऐसे कौन से हालात अचानक बन गए जिन्होंने जंग को दिल्ली की गद्दी छोडऩे पर मजबूर कर दिया।
गलियारों में चर्चा कई है, किस्से कई हैं। कहा जा रहा है कि जंग के जाने की वजह खुद जंग ही हैं। केंद्र सरकार की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाने का दबाव बड़ी वजह रही उनके जाने की। हाईकोर्ट के आदेश के बाद दिल्ली के सर्वेसर्वा बने नजीब जंग ने शुंगलू कमेटी के जरिए केजरीवाल सरकार के पिछले सभी फैसलों की जांच शुरू करवाई लेकिन सिवाय कुछ छोटे-मोटे फैसलों को पलटने से ज्यादा कुछ हासिल नहीं हुआ उस जांच में। साथ ही एसीबी में दाखिल केजरीवाल सरकार के खिलाफ किसी भी केस में बहुत ज्यादा कामयाबी नहीं मिल पाई। इतना ही नहीं हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली पर अधिकारों की लड़ाई को लकेर जो अदालत की टिप्पणी आई उससे भी राजनिवास परेशान थे। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा था कि चुनी हुई सरकार के पास अगर अधिकार ना हों तो काम नहीं हो सकता। सुनवाई अपने पड़ाव पर है तो क्या राजनिवास में बैठे जंग को सुप्रीमकोर्ट से फैसला अपने खिलाफ आने का डर सता रहा था। संविधान के जानकार भी मान रहे थे कि भले ही दिल्ली की व्यवस्था संविधान के मुताबिक आधे राज्य की हो, चुनी हुई सरकार के हर अधिकार छीन लेना संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। ऐसे में क्या एलजी जंग पर दबाव बढ़ गया था? शायद यही वजह है कि जंग ने इस्तीफा दिया है।
जंग का दर्द है
खट्टा-मीठा
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और इस्तीफा देने वाले उपराज्यपाल नजीब जंग के बीच करीब दो साल के दौरान कभी अच्छे संबंध नहीं रहे। कभी केजरीवाल ने उन्हें पीएम मोदी का एजेंट कहा तो कभी बीजेपी की कठपुतली। इन सबके बीच अब जबकि नजीब जंग ने उपराज्यपाल का पद छोड़ दिया है, अरविंद केजरीवाल ने पुराने विवाद को दरकिनार करने की कोशिश की है। दिल्ली सरकार के अधिकारों के मुद्दे पर नजीब जंग और केजरीवाल हमेशा आमने-सामने रहे। आम आदमी पार्टी के नेता जंग पर हमले का कोई मौका चूकते नहीं थे। वहीं दिल्ली के सीएम नजीब जंग के आवास पर उनसे मिलने के लिए पहुंचे। करीब आधे घंटे तक दोनों के बीच यह मुलाकात चली। मुलाकात के बाद जब जंग से रिश्तों के बारे में केजरीवाल से सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कहा, खट्टा-मीठा तो जिंदगी में चलता रहा है। उन्होंने चाय पर बुलाया था, इसलिए आया था। उन्होंने इस्तीफा पर्सनल वजह से दिया है।
-श्याम सिंह सिकरवार