03-Jan-2017 07:27 AM
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अभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र की एनडीए सरकार ने तीन साल भी पूरे नहीं किए हैं कि उसे सत्ता से हटाने के लिए राजनीतिक दल दंड पेलने लगे हैं। लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में सभी को मालूम है कि मोदी से अकेले मुकाबला करना किसी के बूते की बात नहीं है। इसलिए महागठबंधन की तैयारी हो रही है। विभिन्न विचारधारा, विभिन्न मुद्दों, विभिन्न तौर तरीकों से काम करने वाली पार्टियां गठजोड़ करने जा रही हैं। यह गठजोड़ कारगर होगा कि नहीं यह तो भविष्य बताएगा, लेकिन तैयारी शुरू हो गई है।
राष्ट्रीय जनता दल के मुखिया लालू यादव कहते हैं कि देश में अभी महागठबंधन जन्म ले रहा है ये मजबूरी से ज्यादा जरूरी है। इससे देश बचे या न बचे लोकतंत्र जरूर बचेगा। आने वाले लोकसभा चुनाव में सारी विपक्षी पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ेंगी ताकि देश को फिर से पुराने ढर्रे पर लौटाया जा सके और सबको कुछ भी करने की आजादी मिल सके। आपातकाल से सबको छुटकारा मिल सके। इन सबका इलाज अब सिर्फ महागठबंधन में ही है। सारी पार्टियां एकजुट होकर महागठबंधन बना रही हैं। महागठबंधन किस तरह काम करेगा इसको लेकर रणनीतिकार रणनीति बना रहे हैं। महागठबंधन के लिए तर्क ये दिया जा रहा है कि वर्षो से लंबित सपने को पूरा करने वालों की जमात को एक साथ आने का ये माकूल समय है। महागठबंधन में सभी दलों के आने से मोदी को हराने में सहूलियत होगी और सभी लंबित नेता जो अब तक प्रधानमंत्री नहीं बन पाए हैं वो सभी बन सकते है। हर दल से 6-6 महीने के लिए लोग प्रधानमंत्री का पद संभाल सकते हैं और इतिहास में अपना नाम दर्ज करा सकते हैं। इसमें राहुल को पहला और आखरी टर्म के लिए प्रधानमंत्री बनाए जाने की कांग्रेस मांग कर रही है, जो कि इसमें हर पार्टी की सहमति बनते दिख रही है।
जहां ओवैसी भी इस कतार में खड़े नजर आ रहे हैं, वहीं आजम खान भी इसके लिए अपने दावे मजबूत कर रहे हैं। इससे सपा में एक बार और दरार पडऩे की संभावना दिख रही है। जहां तक आप पार्टी की बात है तो पार्टी नाखुश है, क्योंकि केजरीवाल पहला और आखरी टर्म अपने लिए मांग रहे हैं। उनका कहना है कि बीच में किसी को भी भर दो, ओपनिंग और लास्ट हम ही करेंगे। लेकिन बाकी पार्टियों को डर है कि शुरुआत में ही केजरीवाल छीछालेदर न कर दें। उनको डर है कि केजरीवाल यूटर्न ले सकते हैं। और एक बार प्रधानमंत्री बन गए तो फिर कुर्सी छोड़ेंगे नहीं। लेकिन अभी तक टर्म को लेकर जो बातें आ रही हैं, उसमें पहला टर्म मुलायम का होगा उसके बाद लालू को दिया जायेगा, फिर नीतीश आएंगे, उसके बाद मायावती और फिर ममता। लेकिन ममता और मायावती भी इससे राजी हों ये मुश्किल लगता है क्योंकि वो लेडीज फस्र्ट में विश्वास रखती हैं और इसके लिए ममता अपनी मुहीम तेज कर चुकी हैं, नोटबंदी के मुद्दे को लेकर देश में दौरे भी कर रही हैं।
जो भी हो, अगर यह संभव हुआ तो देश के लिए ये अच्छा ही साबित होगा। क्योंकि इससे लोकतंत्र और मजबूत होगा। पांच साल तक किसी एक आदमी का एक बड़े पद पे कब्जा होना चिंता की विषय है। कई प्रधानमंत्रियों से कई नीतियां सामने आएंगी जो देश को कई रास्ते दे सकती हैं। देश एक के बदले अनेक रास्तों पे चल सकता है। इसका अंदेशा भाजपा को भी है इसलिए वो इसके काट की तैयारियों में जुटी है। भाजपा ने भ्रष्टाचार और कालाधन पर हमला तेज कर दिया है। और आने वाले भविष्य में और भी कड़े फैसले लेगी ताकि लोगों में उसकी पैठ बने। भाजपा वाले आरोप लगा रहे हैं कि इनके आने से भ्रष्टाचार फिर से जड़ जमायेगा जो देश के लिए नुकसानदेह हो सकता है। फिर से घोटालों का दौर चालू होगा जिससे फिर से देश कंगाल हो सकता है। इस आरोप पे महागठबंधन की वकालत करने वाले लोग ये कह रहे हैं कि भाजपा देश को तोडऩा बांटना चाह रही है, वो नहीं चाहती कि देश के लोग एक साथ आएं और मिलकर सरकार चलाएं और आपातकाल को दूर भगाए।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि मोदी को घेरना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है! पूरा विपक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर यही सोचता रहा होगा। क्योंकि लोगों ने विपक्ष का मुंह ऐसे बंद किया कि न तो उनके जबान पर मौत का सौदागर आता है न दिमाग में कहीं 2002 का जिक्र। बीच-बीच में सूट-बूट की सरकार और फेयर एंड लवली स्कीम या खून की दलाली जैसी बातें टीवी स्क्रीन पर ब्लैक-व्हाइट होती हैं लेकिन कुछ ही देर में बेदम भी साबित हो जाती हैं। पहले राहुल गांधी ने कहा कि वो बोलेंगे तो भूकंप आ जाएगा। मोदी सरकार पर राहुल ने इल्जाम लगाया कि यही वजह है कि वो उन्हें संसद में बोलने नहीं देते। लेकिन जब बोलने की बारी आई तो वे कुछ नहीं बोल पाए।
इसी तरह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का भी प्रधानमंत्री का विरोध विफल रहा है। दरअसल विरोध दमदार न हो तो मुंह की खानी पड़ती है। पूरा विपक्ष प्रधानमंत्री को दमदारी से घेरने में विफल रहा है। ऐसे में महागठबंधन 2019 में कोई कमाल दिखा पाएगा। उत्तरप्रदेश चुनाव से पूर्व ही महागठबंधन की चाल डगमगा रही है। ऐसे में 2019 में महागठबंधन में शामिल पार्टियां एक रह पाएंगी यह कुछ हद तक असंभव लगता है। लेकिन राजनीति में सब संभव है।
यूपी चुनाव बनेगा आइना
महागठबंधन आगे कैसे काम करेगा यह 2017 में होने वाले उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव के परिणाम से तय होगा। अगर यूपी चुनाव में समाजवादी पार्टी को सफलता मिलती है तो निश्चित रूप से महागठबंधन की चाल भी बदल जाएगी। अभी तक नीतीश और लालू महागठबंधन में दमदार दिख रहे हैं, लेकिन बदली परिस्थितियों में मुलायम सिंह यादव इनको
पटखनी देने से चूकेंगे नहीं।
नीतीश अब हार्दिक के साथ करेंगे मोदी से दो दो हाथ
बनारस के बाद नीतीश कुमार गुजरात जाने वाले हैं। 2019 की रेस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ दो-दो हाथ करने के लिए नीतीश को मिला ये बेहतरीन मौका है। बनारस में भी नीतीश ने वही इलाका चुना था जहां उनके कुर्मी समुदाय के लोग बहुतायत में हैं - और अब तो सौराष्ट्र के लिए बुलावा लेकर खुद हार्दिक पटेल ही पहुंचे थे। 17 जनवरी को हार्दिक पटेल का कानूनी वनवास खत्म हो रहा है। हाई कोर्ट के आदेश पर 17 जुलाई को हार्दिक उदयपुर चले गए थे क्योंकि अदालत ने उन्हें छह महीने गुजरात से बाहर रहने का हुक्म दिया था। जनवरी में गुजरात लौट रहे हार्दिक का कहना है कि वो बड़ा धमाका करेंगे। हार्दिक की इस धमाकेदार वापसी के मौके पर सौराष्ट्र में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी पहुंचेंगे। नोटबंदी पर नीतीश के समर्थन वाले बयान से भाजपा के साथ उनकी नजदीकियों की चर्चा होने लगी थी। हार्दिक का न्योता स्वीकार कर नीतीश ने ऐसी बातों को बैरंग लौटा दिया है। बता भी दिया है कि हर बात का वो मतलब नहीं होता जो तत्काल नजर आता है बल्कि उसके पीछे दूरगामी सोच होती है। इसलिए माना जा सकता है कि नोटबंदी पर भी नीतीश की वही सोच है जो शराबबंदी को लेकर है। यूपी चुनाव में नीतीश अपनी ओर से कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं लेकिन अब तक उन्हें कोई खास कामयाबी नहीं मिल पाई है। हां, इतना जरूर है कि यूपी को लेकर भी नीतीश की गतिविधियां चर्चा में जरूर बनी रहती हैं। गुजरात से नीतीश को ज्यादा फायदा मिल सकता है।
-मधु आलोक निगम