माया ने निकाला सबका दम
03-Jan-2017 07:38 AM 1234790
उत्तरप्रदेश में आगामी विधानसभा का बिगुल भले ही नहीं बजा है, लेकिन सभी पार्टियां पिछले एक साल से तैयारी कर रही हैं। नए साल में चुनावी घमासान अपने चरम पर रहेगा। अभी तक मैदानी मोर्चे पर भाजपा सबसे अधिक सक्रिय नजर आ रही है, लेकिन बसपा ने सबको हैरत में डाल के रखा है। दरअसल प्रदेश में समाजवादी पार्टी के अंतर्कलह का बहिर्लाभ बहुजन समाज पार्टी उठाने जा रही है। मायावती की पूरी कवायद सपा के वोट बैंक में सेंध लगाने की है। समाजवादी पार्टी के मुस्लिम वोट बैंक में संशय की स्थिति है। यह संशय पार्टी की एकजुटता से लेकर टिकट बंटवारे के विरोधाभास तक है। सवा सौ टिकट मुसलमानों को देने के बसपाई ऐलान से मुसलमान खुश हैं और मायावती के पक्ष में वोट डालने का मूड बना रहे हैं। दलित-मुस्लिम एकता के बसपाई एजेंडे को ठोस शक्ल देने की कोशिशें तेज होती जा रही हैं। मुस्लिमों के बीच बांटी जा रही एक बुकलेट मुसलमानों में काफी चर्चा में है। आठ पन्नों की इस किताब का नाम दिया गया है, मुस्लिम समाज का सच्चा हितैषी कौन? फैसला आप करें।Ó उल्लेखनीय है कि विधानसभा चुनाव में 128 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देने की घोषणा मायावती पहले ही कर चुकी हैं। मुसलमानों में बंट रही किताब के कवर पर मायावती की फोटो है और हिंदी व उर्दू भाषा में मायावती ने मुसलमान मतदाताओं के बीच से उठ रहे विभिन्न सवालों पर सफाई पेश की है। इनमें कई सवाल भाजपा-बसपा गठबंधन को लेकर हैं। यह किताब खास तौर पर पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में तेजी से वितरित की जा रही है। भाजपा के साथ तीन बार सरकार बनाने के बारे में मायावती ने अपनी सफाई देते हुए कहा है कि उन्होंने सिद्धांतों के साथ कभी समझौता नहीं किया और भाजपा को अपना एजेंडा लागू करने की इजाजत नहीं दी। बसपा सरकार के रहते अयोध्या, मथुरा और काशी में कोई धार्मिक सुगबुगाहट नहीं होने दी। मायावती ने दावा किया है कि समाजवादी पार्टी का उदय भाजपा की मदद से हुआ था। कहा गया है कि जनसंघ की मदद से सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने पहली बार 1967 में जसवंतनगर सीट पर विजय हासिल की थी और चुनाव जीतने के बाद 1977 में उन्होंने जनसंघ की सहायता से सरकार बनाई और मंत्री बने थे। वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव और विश्वनाथ प्रताप सिंह ने दो लोकसभा सीटें जीतकर भाजपा को नया जीवन दिया था। उस समय लोकसभा में भाजपा की संख्या बढ़कर 88 हो गई थी। आरोप है कि मुलायम सिंह यादव ने 1990 में सोमनाथ से अयोध्या रथयात्रा के दौरान लालकृष्ण आडवाणी को मदद दी थी। इसी तरह के तर्कों-कुतर्कों पर आधारित बसपा की किताब मुसलमानों के बीच काफी असर जमा रही है। समाजवादी पार्टी के ही मझोले दर्जे के एक मुस्लिम नेता कहते हैं कि इस बार मुसलमान सबसे अधिक अधर में हैं। वे पसोपेश में हैं कि वे किसके साथ जाएं। समाजवादी पार्टी का घरेलू कलह मुसलमानों को अधिक हताशा से भर रहा है, क्योंकि मुसलमान उसी दल को अपना समर्थन देंगे जो भाजपा से सीधा मुकाबला करता हुआ दिखेगा। उधर भाजपा को सपा से जोड़कर मायावती ने दोनों पार्टियों को जनविरोधी बताने का अभियान छेड़ रखा है। जहां तक कांग्रेस का सवाल है वह अभी मझधार में है। ऐसे में बसपा अपने आपको सुरक्षित मान रही है। सपा के माई फार्मूले में बहन जी ने लगाई सेंध उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी की मजबूती का मुख्य कारण है माई (मुसलमान यादव)  फार्मूला। इस बार मायावती ने इस फार्मूले में से मुसलमानों को अपने पक्ष में करने की भरपूर कोशिश की है। उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों की जनसंख्या 19 फीसदी के करीब है। तकरीबन 140 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम आबादी 10 से 20 फीसदी तक है। 70 सीटों पर 20 से 30 फीसदी और 73 सीटों पर 30 फीसदी से अधिक मुस्लिम आबादी है। स्पष्ट है कि मुस्लिम मतदाता 140 सीटों पर सीधा असर डालते हैं। यही कारण है कि चुनाव के समय सारे दल खास तौर पर मुस्लिम वोटरों को अपनी ओर खींचने में सक्रिय हो जाते हैं। बुद्धिजीवी डॉ. मुहम्मद सरफे आलम कहते हैं कि मुस्लिम मतदाताओं का मत-चरित्र विधानसभा चुनाव में कुछ और होता है और लोकसभा चुनाव में कुछ और। डॉ. आलम मानते हैं कि मुस्लिम समुदाय का वोट कभी-कभार बंट भी जाता है, लेकिन अधिकतर एकमुश्त एक ही दल को जाता है। उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में छोटे-छोटे मुस्लिम संगठनों के इत्तेहाद फ्रंट में डॉ. मोहम्मद अय्यूब की पीस पार्टी समेत कई मुस्लिम संगठन शामिल हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में चार सीटें जीतने वाले डॉ. अय्यूब इस बात की संभावना जताते हैं कि फ्रंट में अभी कई और पार्टियां जुड़ेंगी। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, एमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी और कांग्रेस से भी एक साथ आने की बात चल रही है। कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी इस दिशा में सक्रिय हैं। कांग्रेस ने मुस्लिमों को प्रभावित करने के लिए ही गुलाम नबी आजाद को यूपी का प्रभारी बनाया, लेकिन फिलहाल इसका कोई खास असर पड़ता नहीं दिख रहा है। -सिद्धार्थ पाण्डे
FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^