20-Jan-2017 10:32 AM
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प्रख्यात समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया कहा करते थे कि जिन्दा कौमें 5 साल तक इंतजार नहीं करती हैं। लेकिन, देश के सबसे बड़े सूबे में समाजवादी सरकार के मुखिया अखिलेश यादव 5 साल के बाद भी यूपी की जनता को परिवर्तन की आहट ही सुना पा रहे हैं। इसी परिवर्तन की आहट के जरिए वे उत्तर प्रदेश की जनता को संदेश देना चाह रहे हैं कि प्रदेश के लोगों की भलाई दोबारा समाजवादी पार्टी की सरकार लाने में ही है।
दरअसल, विदेश में शिक्षित अखिलेश उत्तरप्रदेश के समाजवादी फंदे से बाहर निकलना चाहते हैं। उनकी छटपटाहट का ही कारण है कि देश के सबसे बड़े राजनीतिक कुनबे में इन दिनों घमासान मचा हुआ है। अखिलेश ने पार्टी के मुखिया और संस्थापक मुलायम सिंह यादव को ही किनारे लगा दिया है। ताकि समाजवादी पार्टी पर वंशवाद की जो काली छाया है उससे मुक्ति मिल सके। कमाल की बात ये है कि आमतौर पर परिवर्तन की बात विपक्ष सत्ता हासिल करने के लिए करता है। लेकिन, उत्तर प्रदेश एक ऐसा राज्य बनने जा रहा है, जहां चुनावी लड़ाई परिवर्तन के इर्द गिर्द ही रही है। फिर चाहे वो सत्ता पक्ष हो या विपक्ष। सरकार में आने के लिए विपक्ष सत्ता परिवर्तन की लड़ाई लड़ता है।
इस वजह से भाजपा का परिवर्तन पर खास जोर देना आश्चर्यजनक नहीं लगता। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष खासकर परिवर्तन पर जोर देते हैं। भाजपा की पूरी चुनावी रणनीति इसी एक शब्द के इर्द-गिर्द बुनी हुई दिखती है। परिवर्तन रथयात्रा और परिवर्तन महारैली ये भाजपा के दो सबसे बड़े चुनावी अस्त्र नजर आ रहे हैं। भाजपा अपनी यात्रा और रैली के जरिए यह बताने की कोशिश कर रही है कि उत्तर प्रदेश की जनता को अगर देश के सबसे बड़े सूबे का खोया हुआ सम्मान हासिल करना है, तो उसे परिवर्तन करना होगा। और यह परिवर्तन भाजपा की सरकार के आने से होगा। भाजपा राजनीतिक तौर पर उत्तर प्रदेश सरकार की नाकामियों, कानून व्यवस्था और पारिवारिक झगड़े को मुद्दा बनाए हुए है। साथ ही केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की उन योजनाओं का भी जिक्र परिवर्तन के साथ किया जा रहा है जिससे देश के साथ उत्तर प्रदेश के लोगों को भी सीधे लाभ मिलता दिखे। इस वजह से अमित शाह हों या भाजपा की परिवर्तन रथयात्रा के नेता, मोदी सरकार की हर योजना को एक सांस में लोगों को बताना नहीं भूलते। राजनीतिक लड़ाई के साथ बौद्धिक लड़ाई में भी भाजपा अब परिवर्तन की ही बात कर रही है।
उधर अखिलेश के दांव से पस्त मुलायम ने एक और दांव खेला है। कहते है आखिरी चंद लम्हे किसी भी खेल का वो वक्त होता है जब कोई भी बाजी पलटी जा सकती है और आखिरी दौर जीतने वाला ही बाजीगर होता है। मुलायम सिंह भारतीय राजनीति के वो बाजीगर कहे जाते है जिनकी अगली चाल को बड़े-बड़े सियासत दां भी नहीं भांप पाते, अपनी इसी खास पहचान को इस बार मुलायम सिंह ने अपने बेटे अखिलेश पर आजमाया है। सियासी लड़ाई में पिछडऩे के बाद मुलायम हर हाल में भावनाओं की जंग जीतना चाहते हैं। इसके लिए मुलायम ने ऐलान किया कि अखिलेश ही पार्टी की तरफ से अगले मुख्यमंत्री के उम्मीदवार होंगे। याद कीजिये, मुलायम ही वो शख्स है जिन्होंने अब तक अखिलेश यादव को अगला सीएम प्रोजेक्ट करने से सार्वजनिक तौर पर इंकार करते रहे हैं, लेकिन ऐसा क्या हुआ कि दिल्ली से लौटते ही पिता के सुर बेटे के लिए बदल गए। ऐसे में सवाल उठ रहे है की सत्ता में परिवर्तन के लिए प्रयास कर रहे अखिलेश ने पहली बाजी मार ली है या फिर मुलायम ने चारा डाल कर अखिलेश के लिए जाल बिछाया है। कुछ भी हो आने वाला कुछ समय उत्तर प्रदेश की राजनीति में कई भूचाल लाएंगे।
अखिलेश यादव दे रहे हैं परिवर्तन की आहट
भाजपा परिवर्तन की ओर ले जाने की बात कर रही है, तो एसपी या कहें कि अखिलेश यादव प्रदेश की जनता को परिवर्तन की आहट सुनाना चाह रहे हैं। अखिलेश प्रदेश की जनता को ये समझाना चाह रहे हैं कि परिवर्तन की आहट पिछले 5 सालों में सुनाई देने लगी है। लेकिन, परिवर्तन के लिए जनता को उन्हें एक मौका और देना चाहिए। उत्तर प्रदेश की सियासत में इस वक्त वो दौर चल रहा है जिसमें बेटा सियासी गणित में पिता को पछाड़ चुका है, पिता मुलायम, बेटे अखिलेश को सियासी हीरो तो देखना चाहते हैं लेकिन इमोशन की लड़ाई के इस आखिरी दौर को हर हाल में जीतना चाहते हैं। यही वजह है कि चुनाव आयोग में हलफनामे और काउंटर हलफनामे के बाद अब ये लड़ाई भावनाओं की जंग में तब्दील हो गई है। अब तक ये मानकर चला जा रहा था कि मुलायम के भीतर किंग या किंगमेकर बनने की ख्वाहिश बची हुई है, लेकिन अब जबकि बेटे के हाथ सब जा चुका है तब मुलायम ने बेटे को सीएम प्रोजेक्ट कर वो चाल चली है जो उन्हें फिर से उस दर्जे पर ले आएगी जहां अब लोग अखिलेश यादव पर इस बात को मानने का दबाव बनाएंगे कि इस उम्र में तो उनसे अध्यक्ष पद छीनने की जिद छोड़ दें।
-मधु आलोक निगम