शतरंजी चालों के मोहरे
03-Jan-2017 07:25 AM 1234773
पाकिस्तान और भारत के बीच बंदरगाहों को लेकर शीतयुद्ध चल रहा है। पाकिस्तान ने भारत को घेरने की योजना के तहत चीन की मदद से ग्वादर बंदरगाह बनाया है। ग्वादर का जवाब भारत चाहबार के जरिए दे रहा है। भारत इस बंदरगाह में 50 करोड़ डॉलर का निवेश करने जा रहा है। दक्षिण ईरान के चाहबार बंदरगाह के जरिए भारत-पाकिस्तान को बाईपास कर मध्य एशिया तक पहुंच सकेगा। भारत के कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान जैसे देशों से मजबूत संबंध हैं। भारत व चीन  का युद्ध  खत्म हुए भले 55 साल हो गए मगर दोनों के बीच शीतयुद्ध अब भी जोरों पर है। चीन अपने साम्राज्यवादी मंसूबों को पूरा करने के लिए भारत को घेरने की रणनीति को अंजाम दे रहा है। इस घेराबंदी के लिए चीन भारत के दोनों तरफ उत्तरदक्षिण धुरी पर 2 सामरिक कॉरिडोर बना रहा है। एक है ट्रांस कराकोरम कॉरिडोर जो पश्चिमी चीन से पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक है। दूसरा है इरावाडडी कॉरिडोर जो चीन के यूनान प्रांत से म्यांमार के सड़क मार्ग, नदी मार्ग और रेल मार्ग से होते हुए खाड़ी तक जाता है। म्यांमार में चीन ने क्याउक्यापु और थिलावा ये 2 बंदरगाह बनाए हैं। तीसरा कॉरिडोर बना है पूर्वी पश्चिमी धुरी पर। गोरमु से ल्हासा तक बनी रेल चीन की भारत के खिलाफ आक्रामक क्षमता बढ़ाएगी। चीन तिब्बत की रेल को भारतीय सीमा पर चुंबा घाटी तक ले जाना चाहता है, जहां सिक्किम, भूटान और तिब्बत की सीमाएं मिलती हैं। वह काठमांडू को भी रेलमार्ग के जरिए जोडऩा चाहता है। पूर्व-पश्चिम कॉरिडोर के हिस्से के रूप में भारत चीन सीमा के समांतर सैनिक हवाई अड्डे बना रहा है। चीन हिंद महासागर में जो चौथा सामरिक कॉरिडोर बना रहा है उसे अंतर्राष्ट्रीय जगत में बहुत खूबसूरत नाम से पुकारा जा रहा है, वह है — स्ंिट्रग औफ पल्र्स यानी मणियों की माला। मगर यह माला भारत के लिए फंदा बन सकती है। भारत की घेराबंदी की इस योजना के तहत पाकिस्तान का ग्वादर पिछले कुछ वर्षों में एक महत्वपूर्ण भू-राजनैतिक केंद्र के रूप में उभरा है जो दक्षिण एशिया में आर्थिक, राजनीतिक और सामरिक व्यवस्था को प्रभावित करता है। चीन द्वारा यहां एक सामरिक बंदरगाह स्थापित किया जा रहा है जिसके कारण इस क्षेत्र में चीन की भविष्य में होने वाली भूमिकाओं और उसके होने वाले प्रभावों को लेकर संबद्ध देशों में संदेह व्याप्त है। ग्वादर बलूचिस्तान में अरब सागर के किनारे मकरान तट पर स्थित एक बंदरगाह शहर है। पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के तटीय कस्बे ग्वादर और इसके आसपास के इलाके को 1958 में पाकिस्तान सरकार ने ओमान से खरीदा था। ग्वादर को चीन ने पाकिस्तान से पट्टे पर ले लिया है और वह यहां एक सामरिक बंदरगाह विकसित कर रहा है। इससे उसका पहला उद्देश्य भारत को नौसैनिक अड्डों की एक श्रृंखला से घेरना पूरा होगा। दूसरा, चीन अपने पैट्रोलियम आयात के लिए ईरान समेत खाड़ी देशों पर निर्भर है जिसका परिवहन मार्ग होर्मुज की खाड़ी से होते हुए श्रीलंका के दक्षिण से गुजर कर मलक्का जलडमरू मध्य होते हुए चीन के पूर्वी तट पर स्थित शंघाई और तियानजिन बंदरगाह तक पहुंचता है। यह मार्ग अत्यधिक लंबा होने के साथ ही साथ सामरिक रूप से उपयुक्त नहीं कहा जा सकता। इसलिए पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह को एक टर्मिनल के रूप में प्रयोग कर यहां से थलमार्ग से चीन के काश्गर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। जहां एक ओर फारस की खाड़ी स्थित होर्मुज से बीजिंग पहुंचने के लिए 13 हजार किलोमीटर का फासला तय करना पड़ता है वहीं होर्मुज से ग्वादर होते हुए सड़क मार्ग से चीन के काश्गर की दूरी मात्र ढाई हजार किलोमीटर है। इसके बदले चीन पाकिस्तान को कुछ बड़ी रियायतें देने जा रहा है। दरअसल चीन की मंशा किसी भी हालत में भारत पर दबाव बनाना है। इसके लिए शतरंजी चाले चली जा रही हैं। ऐसे में भारत भी अपने हिसाब से चाल चल रहा है। आने वाले समय में भारत को और सतर्क रहने की जरूरत है। क्योंकि पाकिस्तान में भारत विरोध गतिविधियां बढऩे का अंदेशा है। चीन की तेल पर नजर चीन की योजना है ग्वादर से गिलगित तक दोतरफा राजमार्ग विकसित करके तेल और गैस की पाइप लाइनें तथा ऑप्टिकल फाइबर बिछाया जाए। पाकिस्तान और चीन के बीच तिब्बत से पटरी को बढ़ाते हुए एक रेलमार्ग बनाने की भी उसकी योजना है। ग्वादर पर तेल शोधन कारखाना स्थापित करने की भी योजना लंबित है क्योंकि यह उस होर्मुज स्ट्रेट के मुहाने पर स्थित है जहां से दुनिया का 40 प्रतिशत तेल गुजरता है। चीन की मदद से बना यह बंदरगाह पाकिस्तान में चीन की सबसे बड़ी ढांचागत परियोजना है। ग्वादर बंदरगाह पाकिस्तान का सबसे गहरा बंदरगाह है और भारी भरकम तेल पोतों को अपने किनारे तक ला सकता है। इस बंदरगाह की पूरी संभावनाओं का फायदा उठाने में एक बड़ी बाधा बलूचिस्तान विद्रोह है। बलूच लोग ग्वादर को अपनी धरती को उपनिवेश बनाने की इस्लामाबाद की चाल का एक औजार मानते हैं। उनको लगता है कि ग्वादर से जुड़े फैसले बलूचिस्तान के बाहर लिए जा रहे हैं। क्योंकि ग्वादर कराची से जुड़ा है, न की मुख्य बलूच भूमि से। इसलिए उन्हें इस इलाके में बड़ी तादाद में बाहरी लोगों के आ बसने का भी अंदेशा है। -राजेश बोरकर
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