एजेंडा भारी, मुद्दे पर हारी
03-Jan-2017 07:19 AM 1234764
मप्र में कांग्रेस का एकमात्र एजेंडा है भाजपा को किसी भी तरह सत्ता से बेदखल करना। लेकिन पार्टी के पास भाजपा को घेरने के लिए कोई ऐसा दमदार मुद्दा नहीं है जिसको लेकर वह जनता के बीच जाए। ऐसे में कांग्रेस अनाप-शनाप मुद्दे उठाकर अपनी किरकिरी कराती रही है। हालांकि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अरूण यादव इसे नकारते हुए कहते हैं कि हमारे पास सरकार को घेरने के लिए मुद्दों की भरमार है। बस मौके का इंतजार है। देखा जाए तो पिछले 13 से कांग्रेस की कथनी कुछ और करनी कुछ और है। इस कारण पार्टी कोई दमदार ऐसा चेहरा नहीं बना पाई है जो जनता के बीच कांग्रेस की धाक जमा सके। यानी पार्टी में जितने नेता उतने गुट है। यही कारण है की कांग्रेस नेता और उनके स्वर में एकता नजर नहीं आ रही है। हर नेता का अपना मुद्दा है। और पार्टी में अभी सबसे बड़ा मुद्दा यह है की मप्र में 2018 के चुनाव में कांग्रेस की ओर से वह चेहरा कौन होगा जिसको आगे करके चुनाव लड़ा जाएगा। सीएम के तौर पर नेता प्रोजेक्ट किए जाने के सवाल पर यादव कहते हैं कि कांग्रेस में भावी सीएम पेश करने की परंपरा नहीं है। अभी पार्टी और सभी नेता इसी पर काम कर रहे हैं कि 2018 के चुनाव में भाजपा सरकार को कैसे हटाया जाए। अरूण यादव के दावे के संदर्भ में देखा जाए तो मध्यप्रदेश में विपक्ष के रूप में कांग्रेस की भूमिका कहीं नजर नहीं आ रही! कुपोषण और व्यापमं जैसे बड़े मुद्दों को अनदेखा करके कांग्रेस आलू, प्याज की राजनीति में उलझ गई! लेकिन, जनता ने जिस विपक्ष को चुना था, वो कहां गया? ये सिर्फ इंदौर की बात नहीं, पूरे प्रदेश में यही हालत है। कांग्रेस के गिने-चुने विधायक या तो सुप्त अवस्था में कहीं दुबके पड़े हैं या उन छोटे मुद्दों को राजनीतिक रंग दे रहे हैं, जिनका कोई भविष्य नहीं है। पिछले तीन सालों में विपक्ष के रूप में कांग्रेस ने ऐसा कुछ नहीं किया, जिसके लिए उसकी पीठ थपथपाई जाए। सरकार का विरोध करके नकारात्मक राजनीति के सहारे खुद को मीडिया में जिंदा रखने वाले कांग्रेसी नेता अभी तक आम लोगों को प्रभावित करने में असमर्थ रहे हैं, उन्हें इसका मौका भी मिला तो वे खामोश रहे। मध्यप्रदेश कांग्रेस के पास मुद्दों की कमी नहीं है। बीते तीन सालों में प्रदेश सरकार ने ऐसी कई गलतियां की है, जो उन्हें कटघरे में खड़ा करने के लिए काफी थी। लेकिन, कांग्रेस के नाकारा नेताओं ने कोई पहल नहीं की न तो विधानसभा में सरकार को घेरने की कोशिश की और न सड़क पर। व्यापमं के भर्ती कांड के बाद बाल कुपोषण ऐसा ज्वलंत मुद्दा है, जो सरकार को परेशान कर सकता था। किन्तु, विपक्ष के रूप में कांग्रेस की अनदेखी से सरकार की हिम्मत बढ़ गई। सरकार की इतनी हिम्मत इसलिए बढ़ी कि उसकी निगरानी करने और उसे कटघरे में खड़ा करने वाला विपक्ष कोने में कहीं दुबका पड़ा है! वास्तव में कुपोषण को लेकर कांग्रेस ने कभी होमवर्क तक नहीं किया। मध्यान्ह भोजन और आंगनवाडिय़ां झांकने तक की जहमत नहीं उठाई कि वहां क्या चल रहा है? आरोप तो यहां तक हैं कि कांग्रेस को जो मुद्दे बिना किसी मेहनत के बाहर से मिलते हैं, उनको लेकर भी कांग्रेस का रवैया ढीलपोल वाला रहा! नोटबंदी के मुद्दे पर कांग्रेस किस तरह राजनीति चमकाने की कोशिश में लगी है, इसका सबूत कुछ दिन पहले इंदौर में दिखाई दिया। इंदौर के इकलौते कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी ने अपने कुछ समर्थकों के साथ कलेक्टर ऑफिस के बाहर सड़क पर आलू फेंके! प्रचारित किया गया कि ये आंदोलन उन आलू उत्पादक किसानों के लिए किया गया, जिन्हें आलू के कारण भारी नुकसान उठाना पड़ा। आरोप था कि नोटबंदी के कारण किसानों का आलू थोक में एक से दो रुपए किलो बिक रहा है। इससे किसान परेशान हैं और उनके पास आत्महत्या करने के अलावा कोई चारा नहीं। ये तो वो नकली सच था, जो इस प्रदर्शन के लिए दिखाया गया। इसी तरह कांग्रेसी पिछले 13 सालों से बेवजह के मुद्दों को लेकर सदन से सड़क तक हंगामा करते हैं जिसका फायदा किसी को नहीं होता। सिंधिया बनें अध्यक्ष, तभी मध्यप्रदेश में बहुरेंगे कांग्रेस के दिन कांग्रेस के लगातार लचर प्रदर्शन के चलते मध्यप्रदेश कांग्रेस की कमान किसी और को सौंपे जाने की मांग लगातार जोर पकड़ रही है। पिछले एक साल से किसी न किसी बहाने ये मांग जोर पकड़ रही है। कभी कमलनाथ समर्थक उनको कमान सौंपने की मांग उठाते हैं तो कभी ज्योतिरादित्य सिंधिया को कमान सौंपे जाने की बात उठती है। हांलाकि इन दोनों के अलावा दिग्विजय सिंह, सुरेश पचौरी और दूसरे नेताओं के नाम कम सामने आ रहे हैं। लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ के बीच मुकाबला कड़ा होता जा रहा है। राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह के पुत्र व विधायक जयवर्धन सिंह के अनुसार ज्योतिरादित्य सिंधिया बड़े नेता हैं और जनता के बीच उनका प्रभाव भी अच्छा है। बाकी प्रदेश में मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर कौन होगा, ये निर्णय पार्टी का नेतृत्व ही करेगा। -भोपाल से अरविंद नारद
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