आपकी जेब पर भारी पड़ेगी मेट्रो
03-Jan-2017 07:17 AM 1234809
आखिरकार आठ साल कागजी दौड़ के बाद कैबिनेट ने 14500 करोड़ रुपए की भोपाल, इंदौर मेट्रो रेल को हरी झंडी दे दी है। अभी तक डीपीआर तक पहुंची ट्रेन में सफर करने के लिए लोगों का अब भी पांच साल का वक्त और लगेगा। भले ही राज्य सरकार ने अपने बजट से 20 प्रतिशत रकम की व्यवस्था कर दी है, लेकिन अभी भी टेंडर और अन्य प्रक्रियाएं पूरी करने में एक साल लगेगा। यानी 2018 में जमीन पर काम शुरू हो पाएगा। जबकि पहले रूट का काम 2022 तक खत्म होगा। लेकिन इससे पहले लोगों को इस बात का डर सताने लगा है कि कहीं मेट्रो की मार उन पर न पड़ जाए। दरअसल, जानकार बताते हैं कि भोपाल और इंदौर में जैसे-जैसे मेट्रो ट्रेन प्रोजेक्ट आगे बढ़ेगा नगर निगम प्रोपर्टी टैक्स बढ़ाता जाएगा। इससे भोपाल और इंदौर के लोगों पर टैक्स की मार पडऩी तय है। यानी भोपाल और इंदौर में रहने वाले लोग मेट्रो ट्रेन का सफर करें या न करें उन्हें इस शहर में रहने का दंड भुगतना पड़ेगा। हालांकि महापौर आलोक शर्मा का कहना है कि मेट्रो ट्रेन को केंद्र बिन्दु करके टैक्स बढ़ाने की संभावना फिलहाल नहीं है। लेकिन जानकारों का कहना है कि नगर विकास को देखते हुए अधिकारियों ने इसकी तैयारी करनी शुरू कर दी है। दरअसल देरी से चल रही मेट्रो रेल को पटरी पर लाने की कवायद प्रदेश सरकार को काफी महंगी पडऩे वाली है। एमपी मेट्रो रेल कार्पोरेशन ने प्रोजेक्ट कॉस्ट का जो गणित सरकार को दिखाया है वो वर्ष 2014 की पुरानी महंगाई और ब्याज दर पर आधारित है। इसके तहत भोपाल के पहले फेज की लागत 6962.92 और इंदौर में 7100.50 करोड़ रुपए दर्शाई गई है। प्रोजेक्ट की लागत 2014 की महंगाई दर और जाइका से मिलने वाले 0.3 प्रतिशत ब्याज दर के आधार पर तय हुई थी। लेकिन अब तस्वीर बदल चुकी है। जाइका ने लोन देने से इंकार कर दिया है और महंगाई औसत रूप से प्रतिवर्ष 10 फीसदी तक बढ़ती जा रही है। कर्ज के लिए एकमात्र सहारा एशियन डेवलपमेंट बैंक ने अब तक प्रदेश की जितनी भी परियोजनाओं में कर्ज दिया है उस पर 12 प्रतिशत तक ब्याज वसूला है। साफ है वर्ष 2017 तक महंगाई दर 40 प्रतिशत और कर्ज पर महंगी ब्याज दर मिलाकर प्रोजेक्ट लगभग 52 प्रतिशत तक महंगा हो जाएगा। पहले फेज की नई लागत 14063.42 करोड़ रुपए की बजाए 21095.13 करोड़ रुपए होना तय है। उधर भोपाल में निवासरत लोग मेट्रो प्रोजेक्ट के औचित्य पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं।  दरअसल भोपाल में बीआरटीएस की विफलता के बाद लोगों को मेट्रो रेल प्रोजेक्ट की सफलता पर भी संदेह होने लगा है। इसके पीछे वजह यह है कि भोपाल की संरचना ही कुछ ऐसी है। जिन रूट पर मेट्रो चलाना है वहां के स्टेशनों पर उतरने के बाद लोगों को अपने गंतव्य तक जाने के लिए अन्य वाहनों का सहारा लेना पड़ेगा। ऐसे में लोग इस सेवा का उपयोग करेंगे कि नहीं इस पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। इस सवाल को और पुख्ता कर रही है जयपुर मेट्रो की स्थिति। दरअसल जयपुर में मेट्रो ट्रेनें खाली चल रही हैं। जयपुर जैसे विकसित और पर्यटन केंद्रों की भरमार वाले शहर में जब मेट्रो ट्रेन को सवारी नहीं मिल पा रही है तो भोपाल में कैसे मिल पाएगी। उधर केंद्र सरकार की नई नीति के मुताबिक, नए मेट्रो की मंजूरी देने से पहले शहरी विकास मंत्रालय परियोजना की आर्थिक व्यवहार्यता और परिवहन के अन्य विकल्पों की उपलब्धता पर विचार करता है। इन दोनों ही कसौटियों पर इंदौर-भोपाल मेट्रो मुश्किल में पड़ सकती है। प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए अभी मप्र मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन कंपनी को जनरल कंसल्टेंट की नियुक्ति करना है। यह कंसल्टेंट प्रोजेक्ट का टेंडर दस्तावेज बनाने से लेकर निगरानी तक काम करेगा। इसकी नियुक्त में ही तीन महीने लग जाएंगे। इसके बाद टेंडर दस्तावेज बनाने में छह महीने और फिर साइट क्लीरिंग व अन्य अनुमतियां लेने में छह महीने और लगेंगे। यानी मार्च 2018 से पहले काम शुरू करना मुश्किल है। मप्र मेट्रो रेल कार्पोरेशन के ईएनसी जितेंद्र दुबे कहते हैं कि  अभी जनरल कंस्लटेंट फाइनल कर टेंडर दस्तावेज बनाएंगे। 2017-18 में काम शुरू करने का लक्ष्य है। 2021-22 तक पहले रूट का काम पूरा करने की कोशिश होगी। भोपाल में ऐसी होगी ट्रेन राजधानी में मेट्रो रेल का सपना सबसे पहले करोंद से एम्स वाले हिस्से में पूरा होगा। करीब 14.99 किमी लंबे इस एलीवेटेड रूट पर मेट्रो ट्रेन करीब 28.22 मिनट में 12 स्टेशन क्रॉस करेगी। भोपाल में ऐसे कुल सात रूट तैयार किए जाने हैं, लेकिन जमीन की आसान उपलब्धता के चलते पहले इस हिस्से पर काम शुरू होने की संभावना है। -नवीन रघुवंशी
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