17-Dec-2016 07:00 AM
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एक दौर था देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का महाराष्ट्र के शहरी और ग्रामीण वोटरों पर वर्चस्व था, मगर हाल के नगर निगम और नगर पंचायत के चुनावों के नतीजों से लग रहा है कि महाराष्ट्र उनके हाथ से निकल रहा है। जिस कांग्रेस की कभी राज्य में सभी स्तर पर सत्ता रही है, आज उसकी पोजिशन भाजपा और शिवसेना के बाद तीसरे पायदान पर है। स्थानीय निकाय चुनावों में पार्टी की इस हार से कई समस्याएं उठी हैं। सबसे पहली तो यह कि कांग्रेस के भीतर भारी टूटन है, जबकि महाराष्ट्र के राज्य बनने के समय से ही वह वहां ज्यादातर समय सत्ता में रही है।
यही हाल राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का है, जिसका निर्माण शरद पवार ने कांग्रेस से अलग होने पर किया था। वे कांग्रेस से सोनिया गांधी के विदेशी मूल की होने के मुद्दे पर अलग हुए थे, जब सोनिया ने प्रधानमंत्री बनने की इच्छा जाहिर की थी। मगर अब एनसीपी के भीतर भी असंतोष पनपने लगा है, नेताओं के आपसी मतभेद खुल कर सामने आ रहे हैं। दो दिन पहले चेंबूर में कार्यकर्ताओं की एक बैठक के दौरान पार्टी के प्रवक्ता और उसके सहयोगियों पर एक पूर्व सांसद खुल कर बरसे थे।
राधाकृष्ण विखे पाटिल जैसे कई कांग्रेसी दिग्गजों को अपने इलाके में हार देखनी पड़ी। नारायण राणे और बालासाहेब थोरट जैसे कुछ नेता अपनी पकड़ बनाए रखने में कामयाब हुए, पर पार्टी के ज्यादातर नेताओं की जबरदस्त हार हुई है। हार से पार्टी के कई असंतुष्टों को अपनी जुबान खोलने का मौका मिल गया। अपने इलाके में जीत के बावजूद राणे ने अपनी पार्टी के नेताओं को भला-बुरा कहा, जबकि थोरट और पाटिल ने पार्टी के प्रति निष्ठा को लेकर एक-दूसरे पर सवाल उठाए। नेताओं की अपमानजनक हार ने अपने-अपने क्षेत्र के महारथियों को सत्ता से बाहर कर दिया है। यह इस बात की दलील है कि कांग्रेस के भीतर एका नहीं है। पार्टी नेतृत्व और कार्यकर्ताओं में असंतोष बना हुआ है, जो चिंता की गंभीर वजह है। राणे ने कहा, मेरे उम्मीदवार निर्वाचन क्षेत्र में अपनी मेहनत से जीते। मेरे जिले में जीत के लिए पार्टी नेतृत्व की कोई भूमिका नहीं रही। नेतृत्व अपना काम और मुहिम समय पर पूरी सामथ्र्य के साथ करने में विफल रहा, इस वजह से हम राज्य में नंबर वन पोजिशन पर नहीं रह सके।Ó पर केवल ये लोग ही पार्टी के नेतृत्व से नाराज नहीं थे। उनके साथी और महाराष्ट्र के पूर्व राजस्व मंत्री बालासाहेब थोरट भी राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता और पार्टी के वरिष्ठ नेता राधाकृष्ण विखे पाटिल से भिड़ गए। थोरट और विखे पाटिल दोनों अहमदनगर से हैं। थोरट ने संगमनेर तालुका पर अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखी, जबकि विखे पाटिल जिले के अपने शिरड़ी तालुका में धराशयी हो गए।
नतीजों की घोषणा के बाद जब स्थिति साफ हुई, राणे की तरह थोरट भी विखे पाटिल पर खराब परफॉर्मेंस के लिए बरस पड़े, जिनकी वजह से पार्टी को भारी नुकसान हुआ था। थोरट ने कहा, सभी जानते हैं कि विखे के भाजपा नेताओं के साथ अच्छे संबंध रहे हैं। और इसकी वजह से वह सही ढंग से नहीं लड़े और अपना निर्वाचन क्षेत्र भाजपा को दे दिया।Ó अब समय आ गया है कि विखे पाटिल पार्टी को लेकर अपनी निष्ठा के बारे में सोचें। नाम नहीं छापने की शर्त पर एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने भी पार्टी के एक उम्मीदवार पर आरोप लगाया। डेढ़ साल पहले जब अशोक चाव्हाण को राज्य की इकाई का प्रमुख बनाया गया था, हमने सोचा था कि वे अपनी आक्रामक छवि से पार्टी को उबारेंगे, पर आदर्श कोओपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी के घपले में धोखाधड़ी के बाद वे अचानक नरम हो गए।Ó इन सबके बावजूद पार्टी के प्रवक्ता सचिन सावंत कहते हैं कि पार्टी में किसी तरह का असंतोष और अशांति नहीं है। पार्टी में डेमोक्रेसी है, सभी नेता अपनी-अपनी बात रख रहे हैं।
झटके पर झटका
कांग्रेस की तरह एनसीपी को भी नगर निगम और नगर पंचायत के चुनावों में जबरदस्त झटका लगा है। जो मराठी समुदाय उनका मजबूत आधार था, उसी की वजह से वे हारे क्योंकि उसने उसे वोट नहीं दिए। हार के बाद एनसीपी नेता कांग्रेस के साथ गठबंधन करने पर विचार कर रहे हैं। 2014 में लोकसभा चुनाव तक राज्य में दोनों पार्टियां साथ थीं। पर उसके बाद से दोनों अलग हो गईं और स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ रही हैं। गठबंधन किया जाए या नहीं, इस पर भी एनसीपी नेता एकमत नहीं हैं। पश्चिम महाराष्ट्र में भाजपा की मजबूत स्थिति होने से एनसीपी की जबरदस्त हार हुई है। जब-जब भाजपा के खिलाफ कोई ठोस कदम लेने की बात आई, एनसीपी नेतृत्व एक निर्णय नहीं ले सका। एक वरिष्ठ एनसीपी नेता ने कहा, 2014 में महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर जब शिवसेना और भाजपा के बीच विरोध चल रहा था, हमने भाजपा को खुशी से समर्थन दिया, और सरकार बनने के तुरंत बाद ही एनसीपी उनकी आलोचना करने लगी। इस तरह अपनी राय को बार-बार बदलने से पार्टी के कार्यकर्ता भ्रमित हैं। पार्टी नेतृत्व के रुख में बार-बार परिवर्तन से उन्हें समझ नहीं आ रहा कि वे किसी मुद्दे पर किस तरह की प्रतिक्रिया करें।Ó पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार ने पार्टी की स्थिति को फिर से सुधारने के लिए अपने कार्यकर्ताओं को मध्यावधि चुनावों की तैयारी करने को कहा है, पर कुछ ही घंटों बाद वे इसे भूल जाते हैं। उन वरिष्ठ नेता ने कहा, यह अनिश्चितता पार्टी के कार्यकर्ताओं की नैतिकता के लिए खतरनाक सिद्ध हो रही है। इस पर नेताओं ने दबी आवाज में चर्चा भी की है।Ó पवार की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नजदीकी भी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं की चिंता की गंभीर वजह बनी हुई है। इस वजह से कांग्रेस भी उनके साथ गठबंधन करने में हिचकिचा रही है।
-मुंबई से बिन्दु माथुर