03-Jan-2017 07:00 AM
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31 दिसम्बर की रात घड़ी की सुइयां जब 23 बजकर 59 मिनट और 59 सेकेंड के आगे बढ़ीं, कैलेंडर बदल गया, और गुजरती सांसों की तरह एक और वर्ष बीत गया। वर्ष 2016 को कल बनाकर एक नया साल 2017 नई उम्मीदें, नई उमंगों के साथ अस्तित्व में आ गया है। लेकिन जिन चुनौतियों के साथ नया वर्ष शुरू हुआ है उससे पूरे विश्व सहित भारत में अस्थिरता की स्थिति रहेगी। यह संकेत भारत में नोटबंदी के बाद बदली परिस्थितियों और ज्योतिषीय गणना ने दे दिया है। नए साल का आगाज बुद्धादित्य नामक राजयोग के साये में हुआ है। इस दौरान ग्रहों की जो स्थिति बन-बिगड़ रही है उससे निश्चित रूप से सकारात्मक स्थिति नहीं बनेगी। यानी वर्ष 2017 में राजा और प्रजा के लिए चुनौतियां अपार रहेंगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नव वर्ष की पूर्व संध्या पर कुछ लोक लुभावन घोषणाएं कर अपनी चुनौतियां और बढ़ा ली हैं। नोटबंदी के बाद गांव व शहर में गरीबों तथा बेघरों के लिए आवास की सौगात देते हुए प्रधानमंत्री ने होम लोन पर ब्याज में भारी भरकम छूट का एलान किया है। वर्ष 2017 में गांव में मकान बनाने के लिए दो लाख रुपये तक के लोन पर ब्याज में तीन फीसदी की सब्सिडी मिलेगी। शहरी गरीबों, निम्न मध्य वर्ग व मध्य वर्ग के लोगों को मकान के लिए नौ लाख रुपये तक के लोन पर चार प्रतिशत और 12 लाख तक के लोन पर ब्याज में चार प्रतिशत की छूट मिलेगी। फिलहाल होम लोन पर ब्याज की दर तकरीबन 9.5 प्रतिशत है। ऐसे में मोदी सरकार की इस योजना के तहत जो मकान के लिए कर्ज लेंगे, उन्हें महज 5.5 से लेकर 6.5 प्रतिशत तक का ही ब्याज देना पड़ेगा। सरकार की ये घोषणाएं निश्चित रूप से सराहनीय है कि क्या हमारी बैंकिंग व्यवस्था इसके लिए तैयार है। आज देश में आम आदमी को लोन मिलना नए जन्म लेने जैसा है। आलम यह है कि बिना दलाल के बैंकों से लोन मिलना मुश्किल है। ऐसे में सरकार ने लोन की जो सब्सिडी दी है उसे तो बैंक कर्मी और दलाल ही चट कर जाएंगे। बैंकों से लोन लेने वाले किसानों के 60 दिन का ब्याज सरकार देगी यह अच्छी बात है। लेकिन इसका फायदा कितने किसानों को मिलेगा। कुल मिलाकर नव वर्ष की पूर्व संध्या पर मोदी ने जो घोषणाएं की है वे चुनावी हैं। अगर सरकार उनका क्रियान्वयन करती है तो उसके सामने मुश्किलों का पहाड़ खड़ा हो जाएगा। क्योंकि नोटबंदी ने सारी व्यवस्था को चरमरा दिया है।
साल 2017 में देश की दशा-दिशा कुछ सवालों के जवाब तय करेंगे। मसलन, प्रधानमंत्री मोदी की नीति, खासकर नोटबंदी का कितना असर है? क्या आर्थिक मंदी आएगी? क्या रोजगार के अवसर कम होंगे? यदि ऐसा हुआ, तो क्या लोगों में आक्रोश बढ़ेगा? क्या लोकलुभावन घोषणाओं से सरकार इस गुस्से पर काबू पा सकेगी? विधानसभा चुनावों के नतीजे क्या होंगे? ये तमाम बातें 2017 में नीतियां गढऩे में उल्लेखनीय भूमिका निभाएंगी। इसका असर विपक्ष के नेतृत्व और उसकी एकता पर भी पड़ेगा। जमीनी हकीकत नए साल में काफी कुछ तय करेगी।
राजनीतिक तौर पर साल 2016 का अंत जिन बहस, विवादों और आश्वासनों से हुआ है, उसमें आने वाले साल की रोचकता बढ़ जाती है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा नोटबंदी के फैसले को लेकर एक बात स्पष्ट है कि यह बेहद जोखिम भरा निर्णय साबित हुआ है, जिससे फौरी तौर पर अर्थव्यवस्था और आम जनता पर नकारात्मक असर दिख रहा है। लेकिन गंभीर सवाल तो कालेधन से लेकर आतंकवाद तक पडऩे वाले स्पष्टÓ प्रभाव को लेकर होंगे, और यह भी कि 1 जनवरी 2017 से विमुद्रीकरण को लेकर आम जनता अपने संयम और समझ को किस रूप में जाहिर करेगी। देश के हर सौ रुपए में दो पैसा, रुपया नहीं पैसा, नकली हो तो उस दो पैसे को बाहर लाने के लिए पूरे सौ रुपए को खूंटी पर टांग देने का साहस मोदी के लिए घातक न बन जाए। क्योंकि नोटबंदी का प्रभाव छोटे उद्योगों पर पड़ा है और वे बंद होने की कगार पर पहुंच गए हैं। यह साल मीडिया के लिए भी चुनौतीपूर्ण है। क्योंकि प्रधानमंत्री मीडिया की भी हदबंदी करने जा रहे हैं। उनकी इस हदबंदी से छोटे-छोटे मीडिया घरों की जगह घरानों पर दबदबा बढ़ेगा। यानी पत्रकारिता भी व्यावसायिक घरानों की चेरी बनने जा रही है। जिसके पास संसाधन होगा वह मीडिया हाउस चला सकेगा। यानी कालाबाजारियों को अब और पनाह मिलेगी।
सबसे चुनौतीपूर्ण दौर
दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी अपने राजनीतिक कैरियर के सबसे चुनौतीपूर्ण दौर में प्रवेश करने वाले हैं, जिसमें विमुद्रीकरण के बाद अर्थव्यवस्था के प्रबंधन की चुनौती असामान्य भले न हो, लेकिन असाधारण जरूर है। उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनावों से शुरू हो रहे साल 2017 का अंत गुजरात में विधानसभा चुनावों से होना है और यह प्रधानमंत्री मोदी, भाजपा और विपक्ष के राजनीतिक भविष्य और संभावनाओं की रूपरेखा निर्धारित करने में सक्षम होगा। विमुद्रीकरण के तहत नए नोटों की खेप पहुंचाने की लागत, अर्थव्यवस्था में आए व्यवधान और लगभग पंद्रह लाख करोड़ रुपये से अधिक की नकदी वाली भारतीय अर्थव्यवस्था में लगभग 13 लाख करोड़ रुपये वापस बैंकिंग में आ जाने की संभावना के आधार पर इस पूरे अभियान के औचित्य को निरर्थक बताना अधूरा विश्लेषण ही है। यकीनन, विमुद्रीकरण भारतीय अर्थव्यवस्था एक नए बेंचमार्क पर ठीक उसी तरह स्थापित होगी, जिस प्रकार जीडीपी आदि गणनाओं के लिए आधारवर्ष का बदलाव हुआ करता है।
कालेधन की नीति समझ से परे
रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा व चिकित्सा की न्यूनतम व्यवस्था करने वाली सरकार ही देशभक्त सरकार हो सकती है। किंतु फिलहाल सरकार कालेधन और भ्रष्टाचार को इससे बड़ा मुद्दा मानकर उसके विरुद्ध पिल पड़ी है। इरादा तो बहुत नेक है लेकिन, वह इस चक्रव्यूह में फंस गई है। नोटबंदी के कारण हमारे हजारों बैंक, करोड़ों जन-धन खाते वाले, आयकर अधिकारी, राजनीतिक कार्यकर्ता और साधारण लोग भी अपने जीवन में पहली बार भ्रष्टाचार करने के लिए मजबूर हो गए हैं। भ्रष्टाचार अब राष्ट्रीय शिष्टाचार बन गया है। सरकार की शक्ति अब इन नए भ्रष्टाचारियों को पकडऩे में नष्ट हो रही है। विपक्ष और कई विश्लेषक विमुद्रीकरण के कारण कालेधन के आकार-प्रकार पर सवाल पूछ रहे हैं, लेकिन इस सवाल का उत्तर अभी देना संभव नहीं है। देशभर में आयकर के ताबड़तोड़ छापों को लेकर चिंतित दिख रहे राजनीतिक बयानों की अपनी मजबूरियां हो सकती हैं, लेकिन, ऐसे छापों में बरामद हो रही घोषित-अघोषित नई-पुरानी करेंसी के साथ-साथ भारी मात्रा में सोने आदि की बरामदगी तो पहला चरण है, जिसमें केंद्र सरकार, राजनीतिक और आर्थिक, दोनों संदर्भों में यह संदेश दे रही है कि कालेधन पर कार्रवाई हो रही है और ऐसे लोग बच नहीं सकते।
वर्ष 2016 में तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी के जरिए देश के आन्तरिक कालेधन पर तो चोट कर दी है। लेकिन वर्ष 2017 में विदेशों में जमा कालेधन को लाना नरेंद्र मोदी के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है। क्योंकि नरेंद्र मोदी ने अपने प्रधानमंत्री बनने से पहले अपने चुनावी घोषणापत्र में विदेश में जमा कालेधन को वापस लाने की बात कही थी। राजनीतिक दलों और एनजीओ के काला धन पर पर रोक लगाना भी प्रधानमंत्री के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है। देश में सबसे ज्यादा कालाधन राजनीतिक दलों और एनजीओ में चंदे के रूप में खपाया जाता है। देश में हजारों राजनीतिक दल हैं। लेकिन उनमें से नाम मात्र के कुछ बड़े दल चुनाव लड़ते हैं। कहा जाए तो अधिकतर पार्टियां तो कालेधन को सफेद करने के काम तक ही सीमित हैं। कहा जाए तो अधिकतर पार्टियां चुनाव भी कालेधन के बूते ही लड़ती हैं। आज के समय में राजनीतिक पार्टियों के खाते में ही अधिकतर कालाधन है। यह कालाधन पार्टियों की सांठ-गांठ से बड़े-बड़े कॉर्पोरेट घरानों, प्रॉपर्टी डीलरों और बड़े-बड़े अधिकारियों से मिलता है। जो कि वो अनुचित रूप से कमाते हैं। यही हाल देश में लाखों की संख्या में कुकुरमुत्तों की तरह खुले पड़े गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) का है। अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्ष 2017 में राजनीतिक दलों और एनजीओ को मिलने वाले चंदे की पारदर्शिता के लिए कोई बड़ा कदम उठाते है तो यह बहुत बड़ी बात होगी। इसके बारे में मोदी खुद बोल भी चुके हैं।
वर्ष 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बेनामी संपत्तियां पर कार्यवाही सबसे बड़ी चुनौती है। नोटबंदी के बाद से लगातार नरेंद्र मोदी बेनामी संपत्तियां पर कार्यवाही की बात कर रहे हैं। अगर बेनामी सम्पत्तियों पर कार्यवाही होती है तो नरेंद्र मोदी का सबको छत देने का सपना पूरा हो सकता है। बेनामी सम्पत्तियों पर कार्यवाही का कदम बदनाम प्रॉपर्टी सेक्टर में पारदर्शिता लाने में और बेतहाशा बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने में कारगर साबित हो सकता है, बशर्ते नए कानून को ठीक ढंग से लागू किया जाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हुंकार देखकर तो लगता है वर्ष 2017 में मोदी बेनामी सम्पत्तियों को लेकर कोई बड़ा फैसला कर सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो देश की अर्थव्यवस्था में से अधिकतर कालाधन समाप्त हो जाएगा और प्रधानमंत्री मोदी के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।
दरअसल, लाखों की संख्या में खोले गए नए और जनधन खातों समेत भारी-भरकम ट्रांसफर्स यानी अंतरणों और सोने के अवैध कारोबार के जरिए की गई वित्तीय हेराफेरी को लेकर वित्तीय एजेंसियां सक्रिय हैं, और इस संदर्भ में उपलब्ध आंकड़ों के मार्च 2017 से शुरू हो सकने वाले अभियान के बाद नई जानकारियां हमारे सामने होंगी। यकीनन, इसका प्रभाव बैंकिंग सिस्टम में आरबीआई से लेकर सार्वजनिक-निजी बैंकों और सर्राफा से लेकर रियल स्टेट तक होगा, जो ईमानदारी की भी व्याख्या करेगा। मोदी सरकार के लिए न केवल राजनीतिक बल्कि आर्थिक तौर पर यह संदेश देना लाभकारी ही होगा, जिसमें कम आय वाले ईमानदार लोगों को बेईमानों पर की गई कार्रवाई से संतुष्टि का एहसास भी हो।
कैशलेश अर्थव्यवस्था चुनौती
प्रधानमंत्री मोदी यदि भारत के कैशलेस इकॉनॉमी में रूपांतरण को लेकर रोमानी हैं, तो उन्हें थोड़ा बड़ा सपना और साहस बुनना होगा। भले ही राहुल गांधी द्वारा तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री रहे मोदी समेत अनेक मुख्यमंत्रियों को उद्यमी घरानों से हासिल हुए कथित और अघोषित चंदों का जो प्रकरण उजागर किया गया हो, और वह भूकंपÓ हो-न हो, लेकिन इस बहाने प्रधानमंत्री मोदी के पास अवसर हैं कि वे अपनी ही पार्टी, भाजपा को मिलने वाले राजनीतिक चंदे की ज्यामिति को डिजिटल और 100 प्रतिशत अकाउंटेड करने का ऐलान करें।
वर्ष 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए देश को कैशलेश (नकदी हीन) अर्थव्यवस्था की तरफ ले जाना भी एक चुनौती होगी। जिस देश में 90 प्रतिशत से ज्यादा लेन-देन कैश से होता हो उस देश को कैशलेश (नकदी हीन) व्यवस्था की और ले जाना भी अग्नि परीक्षा से कम नहीं है। एकदम से देश को कैशलेश (नकदी हीन) अर्थव्यवस्था की तरफ ले जाना भी एक कठिन और साहसिक कदम है। ये सच है कि कोई भी अर्थव्यवस्था पूरी तरह से कैशलेस नहीं हो सकती है। और न ही डिजिटल लेनदेन असल में नकदी लेनदेन का विकल्प है। बल्कि एक समानान्तर व्यवस्था है। लेकिन नरेंद्र मोदी जिस तरह से लोगों को कैशलेश के प्रति लोगों को जागरूक करने में लगे हुए हैं, उससे लगता है कि इसके परिणाम सुखद होंगे। अगर किसी देश की 50 प्रतिशत अर्थव्यवस्था भी कैशलेस होती है, तो वहां भ्रष्टाचार होने के चांस बहुत कम होते हैं। अगर आने वाले साल में प्रधानमंत्री देश की 25 प्रतिशत अर्थव्यवस्था को भी कैशलेस करा पाए तो यह मोदी सरकार के साथ-साथ खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।
विश्व की सबसे विकसित अर्थव्यवस्था वाले मुल्कों में भी नकदी से ही ज्यादा काम होता है। उदाहरण के लिए अमेरिका में 46 प्रतिशत कैश, 27 प्रतिशत डेबिट कार्ड और 19 प्रतिशत क्रेडिट कार्ड से भुगतान किया जाता है। ऑस्ट्रेलिया में 65 प्रतिशत नकद, तो बाकी कार्डों के जरिए काम होता है। जर्मनी में तो 80 प्रतिशत नकदी का प्रचलन है। वहीं कनाडा में 52 प्रतिशत नकद, तो बाकी 48 फीसद कार्डों के जरिए भुगतान होता है। ऐसे में यह सोचने वाली बात है जिस मुल्क में भारी निरक्षर हों, जहां नकदी अर्थव्यवस्था की रीढ़ हो, वहां कैसे आप कैशलेस इकोनॉमी की सोच सकते हैं। यह सही है कि इस दिशा में सुधार बहुत जरूरी है लेकिन इस सच से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि एक दिन में यदि आप सारी व्यवस्था बदलने का प्रयास करेंगे तो अराजकता के सिवा कुछ हासिल होने वाला नहीं
अग्नि परीक्षाओं का दौर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते वर्ष में जिस प्रकार से अनेक चुनौतियों का सामना किया, उसी प्रकार भावी वर्ष में भी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। कहा जाए तो साल 2017 में नरेंद्र मोदी को अनेक अग्नि परीक्षाओं से गुजरना पड़ेगा। सबसे पहली अग्नि परीक्षा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए नोटबंदी के बाद 5 राज्यों (उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर) में विधानसभा चुनाव होगा। इन पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा की सफलता और असफलता सीधे-सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शाख को प्रभावित करेगी। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में जीत का सेहरा भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सिर पर सजेगा और हार का ठीकरा भी मोदी के मत्थे मढ़ा जाएगा। इन पांच राज्यों में से गोवा में भाजपा की सरकार है। पंजाब में भाजपा और शिरोमणि अकाली दल की गठबंधन सरकार है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार है। और उत्तराखंड और मणिपुर में कांग्रेस पार्टी की सरकारें हैं। गोवा और पंजाब में भाजपा के लिए सरकार बचाने की चुनौती होगी। और उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, और मणिपुर में सरकार बनाने की चुनौती होगी। इन चुनावों के नतीजों का सीधा-सीधा असर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर पड़ेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सबसे ज्यादा साख उत्तर प्रदेश के चुनावों में लगी है। मोदी उत्तरप्रदेश के बनारस से सांसद हैं। उत्तरप्रदेश का चुनाव भाजपा और मोदी के लिए अग्नि परीक्षा से कम नहीं है।
जीएसटी बनेगा जंजाल
वर्ष 2017 में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को देश में लागू करा पाना भी मोदी सरकार के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) भारत की सबसे महत्वपूर्ण अप्रत्यक्ष कर सुधार योजना है। जिसका उद्देश्य राज्यों के बीच वित्तीय बाधाओं को दूर करके एक समान बाजार को बांध कर रखना है। इसके माध्यम से सम्पूर्ण देश में वस्तुओं और सेवाओं पर एक समान कर लगाया जाएगा। यदि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को मोदी देश में 2017 में लागू करा पाए तो जीएसटी विसंगतियों को दूर करके कर प्रशासन को अत्यंत सरल बना देगा। केंद्र और राज्य सेवाओं और वस्तुओं पर समान दरों पर कर लगाएंगे। उदाहरण के लिए यदि किसी वस्तु पर 30 प्रतिशत कर लगाया जाता है तो केंद्र और राज्य दोनों 15-15 प्रतिशत कर संग्रहित करेंगे। अगर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) 2017 में देश में लागू होता है तो यह मोदी सरकार के लिए बड़ी उपलब्धि होगी। कहा जाए तो खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बड़ी सफलता होगी।
साल के आखिर में फिर घिरेंगे नरेंद्र मोदी
ज्योतिषीय आंकलन के अनुसार विकसित राष्ट्रों के मध्य भारत का दबदबा बढ़ेगा। वहीं विश्व पटल पर पाकिस्तान की स्थिति कुछ कमजोर होगी। नए वर्ष में भारत की चिन्ता का सबब पाकिस्तान की खुराफात से ज्यादा चीन के तेवर होंगे। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शानदार और असहज दोनों स्थिति का सामना करना पड़ेगा। देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नोटबंदी के कुप्रभाव का सामना भी करना पड़ेगा। नोटबंदी के बाद आम लोगों को कई तरह की दिक्कतों का भी सामना करना पड़ा। 26 जनवरी, 2017 को जब शनिदेव अपने बासठ चन्द्रमाओं के साथ अपना घर बदलेंगे, कई सकारात्मक परिणाम प्राप्त होंगे। नोटबंदी से उपजी दिक्कतें 26 जनवरी के बाद धीरे-धीरे कम होने लगेंगी। टैक्स का स्वामी मंगल होने से हुक्मरान जनता को टैक्स के साथ अन्य प्रकार से क्षणिक राहत प्रदान करेंगे।
बाजार पर हावी होगी अफसरशाही
2017 बाजार के लिये नए लाभ और नई चुनौतियां लेकर आ रहा है। बाजार और कारोबार नये नजारे और नई चुनौतियों से रूबरू होगा। सरकार की नेक मंशा समेटे विमुद्रीकरण की शल्यक्रिया से कराहते आमजन को नये साल में कई मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा। आगामी दिनों में सरकार जीएसटी सहित कई और अन्य टैक्स बाजार पर लादने जा रही है। नये टैक्स सुधारों की नई आधारशिला से अस्थिरता बनी रहेगी। क्योंकि इससे इंस्पेक्टर राज लागू होगा। यानी टैक्स वसूलने के नाम पर घूसखोरी को बढ़ावा मिलेगा। विमुद्रीकरण का सीधा लाभ अर्थव्यवस्था पर कम से कम इस वर्ष तो नजर नहीं आयेगा। व्यापारी कानून के फंदे में छटपटायेंगे और जेल जायेंगे। नवम्बर तक बाजार और अर्थव्यवस्था की गति मंद रहने की संभावना है। सोने पर लेवलिंग से उसकी चमक कम होगी। सोने के व्यापारी कानूनी पचड़ों में फंस कर दिशाहीन नजर आयेंगे। खासकर महिलाओं के लिए परेशानी होगी। ज्योतिषियों की माने तो कॉरपोरेट और बैंकों के नये घोटाले प्रकट होंगे। पॉवर और एनर्जी के क्षेत्र में अपार संभावना पैदा होगी। इस क्षेत्र में इस साल से लेकर अगले कई वर्षों तक तेजी का योग है।
निर्यात के मोर्चे पर हो सकता है ठोस बदलाव
पिछले लगातार दो साल तक निर्यात के मोर्चे पर कमजोर प्रदर्शन के बावजूद सरकार हतोत्साहित नहीं है। सरकार को विश्वास है कि 2017 के साल में निर्यात के मामले में एक सकारात्मक और ठोस बदलाव देखने को मिलेगा। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री निर्मला सीतारमण का कहना है कि मैं नए साल की ओर देख रही हूं। नए साल में निर्यात के मोर्चे पर निश्चित रूप से सकारात्मक और मजबूत अंतर देखने को मिलेगा। पिछला साल वास्तव में काफी सुस्त रहा। मुझे उम्मीद है कि नए बाजार सामने आएंगे।Ó पिछले तीन माह के दौरान निर्यात में सकारात्मक वृद्धि दर्ज हुई है जिसकी वजह से मंत्री ने यह उम्मीद जताई है। दिसंबर, 2014 से लगातार 18 महीने यानी मई, 2016 तक निर्यात नीचे आया। कमजोर वैश्विक मांग तथा तेल कीमतों में गिरावट से निर्यात घटा। इस साल जून से निर्यात में फिर बढ़ोतरी देखने को मिली। जुलाई और अगस्त में यह फिर घट गया। हालांकि, सितंबर, अक्टूबर और नवंबर में निर्यात फिर बढ़ा। वाणिज्य मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के अनुसार नवंबर में निर्यात 2.29 प्रतिशत बढ़कर 20 अरब डॉलर रहा है। निर्यातकों ने भी नए साल को लेकर उम्मीद जताई है। निर्यातकों के प्रमुख संगठन फियो के अनुसार कुल 30 महत्वपूर्ण उत्पादों में से 20 में पिछले कुछ माह से सकारात्मक रुख दिखाई दे रहा है। नए साल में भारत आयात पर अधिक जोर देगा, क्योंकि भारत कई मामलों में अभी पिछड़ा हुआ है।