17-Dec-2016 06:04 AM
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लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि है। जिसने जनता को सत्ता का सहभागी बना लिया वह अजेय हो जाता है। मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ऐसे ही नेताओं में शुमार हैं जो जनता के मन की राजनीति करते हैं। अपनी इसी राजनीति के तहत वे एक बार फिर से जनता के बीच खड़े नजर आ रहे हैं साथ ही अपनी पूरी सरकार को खड़ा कर दिया है। दरअसल, मिशन 2018 और 2019 के लिए वे अपनी सरकार की गहराई नाप रहे हैं। चुनावी वादे, विकास के दावे और योजनाओं के क्रियान्वयन की हकीकत जानने के लिए सरकार विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से जनता के बीच सक्रिय है। पिछले 11 साल के दौरान मुख्यमंत्री के तौर पर शिवराज सिंह चौहान ने तो वादों की झड़ी सी लगा दी है। हर सभा में वे कोई न कोई वादा जरूर करते हैं। अब चुनावी दस्तक सुनाई देती है सरकार को जनता से किए वादों की सुध आने लगी है और वह जनता के मन को भांपने के लिए निकल पड़ी है।
जनता के बीच गहरी पैठ
सरकार और पार्टी की जनता के बीच पैठ को नापने के लिए शिवराज सिंह चौहान ने कार्यक्रमों की श्रृंखला बनानी शुरू कर दी है। इस कड़ी में सबसे पहले अपने ग्यारह साल पूरे होने पर उन्होंने राजधानी के जम्बूरी मैदान पर हितग्राही प्रशिक्षण सम्मेलन आयोजित कर जनता को प्रदेश सरकार की योजनाओं से अवगत कराया। इस सम्मेलन में प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से लोगों को बुलाया गया था। लोगों को सरकार द्वारा क्रियान्वित योजनाओं की जानकारी दी गई। वहीं सरकार के प्रति जनता के भाव को भी जानने की कोशिश की गई। इसके बाद प्रदेशभर में किसान सम्मेलन आयोजित किया। यह सम्मेलन सरकार की अपेक्षा के अनुरूप रहा। शिवराज सिंह चौहान सहित उनका पूरा मंत्रिमंडल प्रदेश के विभिन्न जिलों में किसान सम्मेलन में शामिल हुआ। और किसान सम्मेलन के बाद अब 118 दिन की नमामि देवी नर्मदे यात्रा शुरू हो गई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस यात्रा का नर्मदा के उद्गम स्थल अनूपपुर जिले के अमरकंटक से शुभारंभ किया। यह यात्रा 16 जिलों से होकर गुजरेगी। इस यात्रा में मुख्यमंत्री के अलावा मंत्री और भाजपा के पदाधिकारी भी शामिल होते रहेंगे। सरकार का यह उपक्रम अपने आपको जनता से जोडऩे वाला है। साथ ही अपने इस अभियान के साथ प्रदेश की एक सैकड़ा विधानसभा सीटों पर उनकी नजर है।
सत्ता हासिल होते ही राजनेता मद में चूर हो जाते हैं और जनता से उनका जुड़ाव कम हो जाता है। लेकिन शिवराज सिंह चौहान का चुनाव के बाद भी जनता से जुड़ाव निरंतर बना रहता है। लेकिन इन सबके बावजूद वे कभी भी गलतफहमी में नहीं रहते। यही कारण है कि वे जनता से जुड़े रहने के लिए कोई न कोई उपक्रम करते रहते हैं। इसी कड़ी में 16 दिसम्बर से भाजपा एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय को कथा रूप में पेश करने जा रही है। तीन दिनों तक चलने वाला यह आयोजन दीनदयाल शोध संस्थान का है, लेकिन इसके सारे आयोजन भाजपा कर रही है। मुख्यमंत्री इसमें यजमान होंगे। इस आयोजन से जनता को अधिक से अधिक जोडऩे का लक्ष्य रखा गया है। यह सारे उपक्रम इस बात का संकेत देते हैं कि शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार हर वक्त इस कोशिश में रहती है कि जनता के बीच अधिक से अधिक किस तरह रहा जाए।
हर कसौटी पर खरे
सही मायने में राजनीतिक कुशलता तो यही होती है कि व्यक्ति जनता के बीच लगातार लोकप्रियता के आयाम तय करता जाए। सफलता परिणाम पर निर्भर होती है। और लोकतंत्र में जो चुनाव जीत गया या चुनाव जिताकर अपनी सरकार बनाने में सफल हो गया, वही सफल राजनेता। राजनीति का अर्थ ही राज करने की नीति होता है और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हर कसौटी पर खरे उतरे हैं, हर परीक्षा में उत्तीर्ण होने वाले कुशलतम राजनेताओं में शामिल हैं। और इसी के चलते पिछले लोकसभा चुनावों में वह नरेंद्र मोदी के साथ बराबर के दावेदार भी रहे। सफलता के लिए इससे बड़ा पैमाना और क्या हो सकता है?
मौके को भुनाने में माहिर
सियासी सूझबूझ और वक्त की नजाकत भांपने के हुनर में माहिर हैं शिवराज सिंह चौहान। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने सेना की सर्जिकल स्ट्राइक से देश में बने माहौल के बीच चौदह अक्टूबर को प्रधानमंत्री को भोपाल बुला लिया। आजादी के बाद देश की सुरक्षा में शहीद हुए सैनिकों की याद में बनाए शौर्य स्मारक के लोकार्पण के निमित्त। गजब की सियासी टाइमिंग दिखाई। बेशक देश में ऐसे चार स्मारक पहले ही बन चुके हैं। पर इस स्मारक से भोपाल को तो नई पहचान मिलेगी ही। प्रधानमंत्री के नाते आठवीं यात्रा थी यह मोदी की। पर इस बार शिवराज ने प्रभावित कर दिखाया प्रधानमंत्री को। अहसास करा दिया कि वे करामाती भी हैं और करिश्माई भी। करिश्माई हैं तभी तो उनकी अगुवाई में दो विधानसभा चुनाव जीत चुकी है भाजपा। लोकसभा में भी उनके मुख्यमंत्री रहते अब तक का सबसे अच्छा परिणाम रहा। यानी शिवराज सिंह चौहान ने भाजपा आलाकमान को यह दर्शा दिया है कि वे जीत के असली शिल्पकार हैं।
यही नहीं देश की राजनीति में तो उन्हें चुनावी बाजीगर कहा जाने लगा है। आखिर कहा भी क्यों न जाए। पिछले 11 साल में 2 विधानसभा और 2 लोकसभा के साथ ही दो दर्जन से अधिक उपचुनावों में मध्यप्रदेश में भाजपा की जीत के शिल्पकार वही रहे। जिस तरह से प्रदेश में कुछ माह पर लगातार चुनाव होते रहे हैं उससे तो शिवराज को चुनावी मशीन भी कहा जाने लगा है। लेकिन निरंतर चुनावी व्यस्तता के बाद भी उनके माथे पर कभी शिकन नहीं दिखी है। राजनीतिक विश्लेषक तो अब यह कहने लगे हैं कि शिवराज सिंह चौहान जनता के दर पर जाने के लिए अब तो बहाने भी ढूंढने लगे हैं। काश ऐसे बहाने अन्य राजनेता भी ढूंढते।
जनता के बीच अपनी तथा अपनी सरकार की पैठ को नापने के लिए शिवराज सरकार ने भारत की पांच बड़ी नदियों में शामिल नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक से जो नमामि देवी नर्मदे यात्रा शुरू की है वह काफी मायने रखता है। जिस नर्मदा के दर्शन मात्र से पापियों के पाप नाश हो जाते हैं यदि वह प्रदूषण की शिकार है तो फिर इसकी वजह और उन कारणों की तह तक ही नहीं जाना होगा, बल्कि उसका समाधान भी हर हाल में वह भी समय रहते निकालना होगा। इसकी जिम्मेदारी यदि मुख्यमंत्री के तौर पर शिवराज जिन्हें नर्मदा पुत्र कहा जाता है, देर से ही सही खुद उठाई है तो फिर उम्मीद की जाना चाहिए कि परिणाम सकारात्मक ही सामने आएंगे चाहे फिर वो अवैध उत्खनन या प्रदूषण मुफ्त करने से ही क्यों ना जुड़े हो।
लोगों की नब्ज के डॉक्टर
शिवराज सिंह चौहान ने अपने लंबे सियासी सफर में खास तौर से बतौर मुख्यमंत्री 11 साल पूरा करने के बीच जो उतार-चढ़ाव देखे और खास होकर ठेठ गांव के किसान की अपनी इमेज बनाई उसके कई पहलू हंै। चाहे फिर वो युवाओं के बीच या फिर किसानों और गरीब-बेसहारा लोगों के बीच लोकप्रियता, सामाजिक सरोकार से जुड़े उनके अनछुए पहलू में नर्मदा से लगाव, नर्मदा के प्रति समर्पण भी उन्हें अलग पहचान दिलाता रहा है। चाहे फिर वो धार्मिक, पौराणिक महत्व से जुड़ा हो या फिर वह यादें जिसकी गवाह स्वयं मां नर्मदा बनी चाहे वह बचपन के दिन हों या फिर मौज-मस्ती के और शांति-सुकून की खोज के साथ कुछ नया सोचने और करने के लिए नर्मदा किनारे चिंतन और मंथन। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी जब शिवराज का मूड हुआ तो वह नर्मदा में जाकर छलांग लगाते खूब देखे गए। उन्होंने जो भावनात्मक रिश्ता नर्मदा से बनाया है उसने अब शायद यह सोचने को मजबूर कर दिया है कि उन्हें मां नर्मदा के प्रति अपने दायित्व, कर्तव्य से आगे बढ़कर उस कर्ज को उतारना ही होगा जिसने उन्हें न सिर्फ पहचान दी बल्कि प्रेरणा के साथ एक ऐसा रास्ता भी दिखाया जो समाज के लिए कुछ करने को मजबूर हुआ। भारत में शिव मंदिरों में नर्मदा से लाए हुए शिवलिंग ही स्थापित होते हैं इसलिए भी नर्मदा का अपना धार्मिक, पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व है लेकिन इन दिनों नर्मदा संरक्षण व संवर्धन की कार्ययोजना की मांग के कारण सियासतदानों के आरोप-प्रत्यारोप के कारण भी सुर्खियों में है। नर्मदा को लेकर सत्याग्रह या फिर परिक्रमावासियों की चिंता उसे प्रदूषणमुक्त करने के साथ सहायक नदियों के विलुप्त नहीं होने देने की मांग जोर पकड़ चुकी है। इस बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नर्मदा के दोनों तट पर वृक्षारोपण, नर्मदा में मलजल नहीं जाने देने, पूजन कुंड और विश्राम घाट निर्माण के लिए नए सिरे से प्रयास का संकल्प लिया वो गौर करने लायक है। दरअसल शिवराज जनता की नब्ज को सबसे बेहतर समझते हैं। इसलिए उन्हें जनता की नब्ज का डॉक्टर भी कहा जाता है।
स्वच्छ भारत को लूट लिया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान के तहत अपने आपको जन-जन के बीच स्थापित किया है, लेकिन मप्र में शिवराज सिंह चौहान ने नमामि देवी नर्मदे यात्रा के माध्यम से अपने आपको फिर से प्रतिष्ठत कर लिया है। नमामि देवी नर्मदे यात्रा सामाजिक और धार्मिक तो हैं ही लेकिन इसका राजनीतिक लाभ भी होने वाला है। क्योंकि नर्मदा से प्रदेश के करोड़ों लोगों का भावात्मक रिश्ता है। जब नर्मदा की सेवा के लिए खुद सरकार तत्पर रहेगी तो जनता के मन में उसके प्रति अच्छे भाव आएंगे ही। इसका परिणाम 2018 के विधानसभा चुनाव में देखने को मिलेगा। अपने इन उपक्रमों के
साथ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 2018 विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी हैं।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जब मध्यप्रदेश की सत्ता संभाली, तब उनके लिए राजनीति का पाठ नया नहीं था। मगर उन्होंने इन 11 सालों में सियासत का नया पाठ सीखा। साल दर साल वो खुद को बदलते चले गए और पहले से ज्यादा परिपक्व सियासतदां में बदल गए। मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार के 11 साल एक इतिहास की कहानी कहते नजर आते हैं। 11 साल पहले जबर्दस्त राजनीतिक भूचाल के बीच शिवराज की मुख्यमंत्री के रूप में ताजपोशी हुई थी। उस वक्त उमाभारती राष्ट्रीय राजनीति का चमकता हुआ चेहरा थीं। बाबूलाल गौर भी प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं में शुमार थे। जिनके बाद ये जिम्मेदारी शिवराज सिंह चौहान को सौंपी गई। आलाकमान ने जो जिम्मेदारी सौंपी थी, उसे निभाने के लिए वो पूरी तरह तैयार थे। पार्टी में विद्रोह की चिंगारी के बीच उन्होंने बड़ी खामोशी से जिम्मेदारी संभाली। जिम्मेदारी बड़ी थी, और भाजपा की डोलती नैय्या को उन्होंने ही पार लगाना था। आवाम के मन में यकीन भी जगाना था कि बिजली-पानी और सड़क के जिन मुद्दों पर उन्होंने भाजपा को चुना है, वो उन्हें स्थाई सरकार दे सकती है। कई सवाल और चुनौतियों के बीच शिवराज आगे बढ़े। शिवराज समझ चुके थे कि ये वक्त जवाब देने और बड़ी-बड़ी बातें करने का नहीं है, सो एक्शन स्पीक्स लाउडर देन वर्ड्स का सिद्धांत अपनाया। उनके इस फलसफे का नतीजा क्या हुआ, ये किसी से छिपा नहीं है।
शिवराज लो प्रोफाइल नेता से फ्रंटलाइन लीडर के रूप में तब्दील हुए और उनका नाम राष्ट्रीय स्तर के कई बड़े नेताओं के साथ लिया जाने लगा। शिवराज अपने तयशुदा फलसफे पर आगे बढ़ रहे थे। आज मध्यप्रदेश भले ही बीमारू राज्यों की श्रेणी से निकलकर विकसित राज्य बन गया है। लेकिन शिवराज सिंह चौहान संतुष्ट नहीं हैं और वे प्रदेश को अभी और आगे ले जाने के प्रयास में लगे हुए हैं। लाड़ली लक्ष्मी योजना, मुख्यमंत्री कन्यादान योजना, तीर्थ दर्शन योजना कुछ ऐसी योजनाएं हैं। जिसने न सिर्फ प्रदेश की अवाम का दिल जीता। बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी इनमें से कुछ योजनाओं को तवज्जो मिली। शिवराज के पॉलीटिकल करियर के लिए ये योजनाएं माइल स्टोन बनीं और गेम चेंजर भी। अब उनकी नमामि देवी नर्मदे यात्रा भी मील का पत्थर साबित होने वाली है। इस यात्रा में जिस तरह जनसमुदाय उमड़ रहा है उससे तो यह साफ हो गया है कि इसका बड़ा राजनैतिक फायदा भाजपा को आगामी दिनों में मिलने वाला है।
मिशन 2018 के लिए शिवराज ले रहे हैं फीडबैक
विधानसभा चुनाव को ढाई साल का समय है, लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश में चौथी बार सत्ता पर काबिज होने के लिए कवायद शुरू कर दी है। वे अपने स्तर पर विधायकों के कामकाज से लेकर विस स्तर तक का खाका तैयार कर रहे हैं। इसी रोडमैप के जरिए मिशन 2018 के लिए सरकार तैयारी के साथ उतरेगी। सीएम ने हाल में पार्टी विधायकों से वन-टू-वन चर्चा कर विधानसभा में विकास के कार्यों, अधूरे कामों, स्थानीय समस्याओं, प्रशासकीय अफसरों की कार्यशैली की पूरी जानकारी जुटाई है। मुख्यमंत्री चर्चा में न सिर्फ विधायकों के कार्य की क्षमता का आंकलन कर रहे हैं, बल्कि विधानसभा क्षेत्र में किए जा रहे नवाचारों पर भी फोकस कर रहे हैं। सीएम ने मिशन 2018 का रोडमैप बनाने में शासन स्तर पर जिलों से आए प्रस्तावों के अटकने और फाइलों की धीमी गति की भी जानकारी ली है। यही नहीं वे अफसरशाही पर भी नकेल कसे हुए हैं। इसके साथ ही पार्टी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं पर भी उनकी नजर रहती है। इसके इतर कांग्रेस को अभी तक कोई सुध ही नहीं है। पार्टी किसके नेतृत्व में आगामी चुनाव लड़ेगी अभी यह भी तय नहीं हो पाया है जहां तक जमीनी हकीकत की बात है तो पार्टी ही इससे अनभिज्ञ है। स्थिति यह है कि कांग्रेस के नेता ऐन चुनाव के मौके पर ही बाहर निकलते हैं ऐसे में कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा के मुकाबले कैसे खड़ी रह पाएंगी यह भी चिंतनीय विषय है।
शिवराज आज भी कॉमन मैन
सत्ता साकेत में पहुंचकर शौक और ठसक की गिरफ्त में आते तो कई नेताओं को देखा है, लेकिन कुछ ऐसे भी नेता हैं जिन्हें सत्ता का अहंकार छू तक नहीं पाया। ऐसे ही नेताओं में शुमार हैं मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान। शिवराज सिंह आज भी वैसे ही हैं जैसे अपना राजनीतिक सफर शुरू करते वक्त थे। अपने छोटे से गांव जैत में वे जिन परंपराओं का निर्वहन करते थे, उन संस्कृतियों को उन्होंने राजधानी आकर मुख्यमंत्री निवास में भी स्थापित किया। छोटे-छोटे पारंपरिक तीज त्योहारों में शिवराज न केवल शामिल होते हैं बल्कि उसी उमंग के साथ मनाते हैं जिस तरह गांव में उत्साही युवा शिवराज मनाते थे। होली, गणेश उत्सव, नवरात्रि पर कन्या पूजन, दीवाली आदि उत्सवों में उनकी संलिप्ता में कहीं भी शासकीय पुट नहीं मिलता। उन्होंने अपना राजनीतिक सफर शुरू करने के साथ गरीब बच्चियों का विवाह कराने की जो शुरुआत अपने गांव से की थी, उसे मुख्यमंत्री बनने के बाद सरकारी स्तर पर लागू किया और अपने व्यस्त कार्यक्रमों से समय बचाकर वे निरंतर वर-वधु को को आशीर्वाद देने के लिए सामूहिक विवाहों में आज भी शामिल होते हैं। किसानी पारिवारिक पृष्ठिभूमि के कारण किसानों के प्रति उनका लगाव उनके निर्णयों में साफ झलकता है। मुख्यमंत्री के रूप में दस साल का सफर पूरा करने वाले शिवराज सिंह चौहान कई मामलों में आज भी कॉमन मैन हैं। मुख्यमंत्री का पद और सत्ता का नशा उनके व्यक्तित्व पर कभी हावी नहीं हुआ। पहनावे में सादगीपन और बोलचाल में अहंकार से मुक्त सीएम शिवराज इसीलिए जब भी जनता के बीच पहुंचते हैं तो लोग उन्हें मुख्यमंत्री नहीं अपने भाई, अपने करीबी की तरह हाथों-हाथ लेते हैं। इसके साथ ही शिवराज का कॉमन मैन इसलिए भी दिखता है कि व्यस्तता और मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी के बाद भी वे कोई भी त्यौहार मनाना नहीं भूलते। हर त्यौहार को वे उसी तरह मनाते हैं जैसे कॉमन मैन मनाता है।
कांग्रेस सबक ले
देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस आज सिमटती जा रही है। मध्यप्रदेश में 13 साल पहले तक कांग्रेस मजबूत थी। लेकिन धीरे-धीरे कांग्रेस क्षेत्रीय पार्टी जैसी लगने लगी है। दरअसल कांग्रेसियों को शिवराज सिंह चौहान और उनकी कार्यशैली से सबक लेना चाहिए। प्रदेश में जब भी उपचुनाव होता है कांग्रेसी एक-दूसरे का मुंह ताकते हैं जबकि इसके उलट सत्ता में होने के बावजूद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी। दौरे-रैलियां करते हैं। केवल शिवराज सिंह चौहान ही क्यूं पूरा मंत्रिमण्डल चुनाव में डट जाता है। भाजपा को लगातार जीत अपने मजबूत संगठन और कुशल नेतृत्व के दम पर मिलती है। और उन कार्यकर्ताओं के भरोसे जो इम्तेहान के सिर पर आ जाने की प्रतीक्षा नहीं करते। वो छुट्टी के दिनों में भी परीक्षा की तैयारी करते रहते हैं। कांग्रेस 13 साल से ज्यादा समय तक विपक्ष में रहने के बावजूद सियासत में बेहद जरूरी जमीन से जुड़ाव की अहमियत नहीं समझ पाई।