01-May-2013 09:59 AM
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गर्मियों के मौसम में अंटार्कटिक में बर्फ का पिघलना 600 साल पहले की तुलना में अब दस गुना ज्यादा तेज हो गया है। एक नये अध्ययन में चेतावनी देते हुए कहा गया है कि मध्य 20वीं सदी के

बाद से बर्फ के पिघलने की गति इस समय सबसे तेज हो गई है।
नेचर जियोसाइंस पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार अंटार्कटिक में गर्मियों में बर्फ पिघलने की गति मध्य बीसवीं सदी के बाद से सबसे तेज है। गर्मियों में बर्फ के पिघलने से अंटार्कटिक में बर्फ की पट्टियों और ग्लेशियरों की स्थिरता प्रभावित होती है। वर्ष 2008 में ब्रिटेन-फ्रांस के एक संयुक्त वैज्ञानिक दल ने इलाके में पूर्व के तापमानों का पता लगाने के लिए अंटार्कटिक प्रायद्वीप के उत्तरी छोर के पास स्थित जेम्स रॉस द्वीप से एक 364 मीटर लंबी बर्फ की परत में छेद किया। वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि बर्फ की परत से इलाके में बर्फ के पिघलने को लेकर नए और अप्रत्याशित तथ्यों का भी पता लग सकता है। पिघली परतों के अध्ययन से वैज्ञानिक पिछले 1000 सालों में तापमान में हुए बदलावों की बर्फ के पिघलने के साथ तुलना करने में सक्षम हुए। ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी और ब्रिटिश अंटाकर्टिक सर्वेक्षण (बीएएस) के दल की मुख्य शोधकर्ता डॉक्टर नेरीली अब्रम ने कहा, हमें पता चला कि लगभग 600 साल पहले अंटार्कटिक प्रायद्वीप पर सबसे ठंडी दशाएं थीं और तब गर्मियों में सबसे कम बर्फ पिघली थी। अब्रम ने कहा कि अंटार्कटिक प्रायद्वीप अब ऐसे स्तर तक गर्म हो चुका है, जहां तापमान में हल्की सी भी बढ़त गर्मियों में बर्फ के पिघलने की रफ्तार को बहुत बढ़ा सकती है।
तेजी से पिघलते ग्लेशियर अब वापस बर्फ का रूप इसलिए भी नहीं ले पा रहे क्योंकि सबसे शीत प्रदेश कहे जाने वाले इस ध्रुवीय क्षेत्र में गर्मियों का मौसम लंबा होता जा रहा है। ग्लोबल वार्मिग के कारण इस स्थान का ना सिर्फ तापमान बढ़ा है बल्कि यहां के मौसम में भी उलट-फेर साफ देखा जा सकता है। अंटार्कटिक क्षेत्र में हुए ताजा शोध के अनुसार पिछले साठ सालों में यहा गर्मी का मौसम धीरे-धीरे बढ़ता गया है। पर्वतीय हिम क्षेत्र अंटार्कटिक क्षेत्र अब उलर की तरफ बढ़ता जा रहा है और ये दक्षिण अमेरिका महाद्वीप के और करीब आता जा रहा है। लिहाजा अंटार्कटिक का प्रायद्वीप शेष अंटार्कटिक से कहीं अधिक गर्म हो गया है। नतीजतन यहां स्थानीय पश्चिमी हवाओं ने जोर पकड़ लिया है। इससे यहां की हवा गर्म हो गई है। अंटार्कटिक प्रायद्वीप पर तापमान भी सन 1950 के बाद से तीन डिग्री सेल्सियस अधिक बढ़ गया है। ये बढ़ोत्तरी वैश्विक तापमान में बढ़त का भी तीन गुना अधिक है। प्रायद्वीप के विशाल टुकड़े पानी में तैरते देखे जा सकते हैं। पूरे ग्लेशियर पर बड़ी और गहरी दरारें हैं। बर्फ की परत भी पतली और कमजोर होती जा रही है। तेजी से पिघलने के बावजूद इनके वापस बर्फ का रूप नहीं ले पाने से अंटार्कटिक की बर्फ की ऊपरी सतह काफी कमजोर हो चुकी है। ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे में हिस्सा लेने वाले अनुसंधानकर्ता डॉ. निक बर्राड ने कहा कि इस प्रायद्वीप पर स्थित तीस मौसम केंद्रों से मिले आकड़ों का विश्लेषण करने पर पाया गया कि बर्फ पिघलाने वाला गर्मी का मौसम तेजी से लंबा होता गया है। इन सभी स्टेशनों पर सर्वाधिक देर तक अधिक तापमान दर्ज किया गया है। वर्ष 1948 में रहने वाला तापमान वर्ष 2011 में दोगुना हो चुका है।
पिघलती बर्फ से एंपरर पेंग्विन का अस्तित्व खतरे में पड़ता दिख रहा है। शोधकर्ताओं के मुताबिक अगर वैश्विक तापमान लगातार बढ़ता रहा तो यह प्रजाति विलुप्त हो सकती है। ये पेंग्विन अंटार्कटिक की जमी बर्फ पर ही अपने बच्चों को जन्म देते हैं और वहीं उनका पालन भी करते हैं। वूड्स होल ओशियनोग्राफिक इंस्टीट्यूशन के शोधकर्ताओं का कहना है कि यदि बर्फ टूट जाती है और प्रजनन के मौसम में गायब हो जाती है तो बड़े पैमाने पर प्रजनन विफल हो सकता है। प्रमुख शोधकर्ता स्टेफानी जेनोवरियर के अनुसार पिछले एक शताब्दी में वैश्विक तापमान की वजह से व्यापक बदलाव हुए हैं। पश्चिमी अंटार्कटिक प्रायद्वीप के पास डियोन इसलेट्स पेंग्विन का विलुप्त होना भी उसी बदलाव का परिणाम है। इस अध्ययन को ग्लोबल चेंज बायोलॉजी में प्रकाशित किया गया है। वैज्ञानिकों का कहना है समुद्र में खत्म हो रही बर्फ से पेंग्विन के आहार के स्रोत पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। आमतौर पर ये पक्षी जिन समुद्री जीवों को खाते हैं वे समुद्री बर्फ के किनारे ही पलते-बढ़ते हैं। जेनोवरियर ने बताया कि फिलहाल एंपरर पेंग्विनों के तीन हजार जोड़े है, लेकिन तापमान यूं ही बढ़ता रहा तो साल 2021 तक इनकी संख्या महज पांच सौ रह जाएगी। वैज्ञानिकों ने चेताया है कि समुद्री बर्फ का पिघलना महज पेंग्विन की एक प्रजाति के लिए ही नुकसानदेह नहीं है। इससे अन्य जीवों के अस्तित्व पर भी सवाल खड़े हो सकते हैं और मनुष्य भी इनसे अछूता नहीं है।
ईस्ट एंजेलिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक शोघ और ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे में इस बात का खुलासा किया गया है कि अंटार्कटिका महाद्वीप के वातावरण में भारी मात्रा में ऐसे रसायनों मौजूद हैं जो ओजोन परत का हृास कर रहे हैं। वातावरण रसायन वैज्ञानिकों ने लगातार 18 महीनों तक इसका अघ्ययन करने के बाद यह रिपोर्ट पेश की है। इस शोघ में जो बात सबसे महत्वपूर्ण है वो यह कि अंटार्कटिक क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में आयोडीन आक्साइड मौजूद है जो इससे पहले कभी यहाँ नहीं पाया गया था। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की वित्तीय मदद से तैयार की गई एक रिसर्च में पता चला है कि तेजी से पिघलती बर्फ की वजह से दुनिया भर के समुद्रों का स्तर बढऩे लगा है। रिपोर्ट में कहा गया है, अनुमानों से पहले ही बर्फ तेजी से पिघलने लगी है। समुद्रों का जलस्तर बढ़ाने में इसकी अहम भूमिका है। वैज्ञानिकों के मुताबिक बीते 20 साल के दौरान सैटेलाइटों से मिले आंकड़ों का अध्ययन करके यह बात सामने आई है।
श्याम सिंह सिकरवार