डिस्पोजेबल से स्वस्थ्य ही नहीं पर्यावरण को भी खतरा
16-Apr-2013 09:31 AM 1234888

चिकित्सकीय उपयोग में लाई जाने वाली सुइयों से लेकर भोजन, पानी के लिए प्रचलन में आये प्लास्टिक के सामान तक हर चीज जिसे फेंका जा रहा है पर्यावरण के लिए घातक हैं, संयुक्त राष्ट्र संघ ने चिकित्सकीय उपयोग में लाई जाने वाली सुइयों से लेकर अन्य संक्रमित वस्तुओं के सहीं निपटन का कहा है किन्तु यह शायद ही आम जनता को पता है कि जमीन में दब जाने के बाद प्लास्टिक जमीन की कितनी दुर्गति कर सकता है। लोग इसका उपयोग करने के बाद पॉलीथिन में बेकार वस्तु या खाद्य पदार्थ डालकर नदी-नाले में फेंक देते हैं। प्रतिदिन निकलने वाले प्लास्टिक व पॉलीथिन के कचरे से पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। अगर यही स्थिति रही तो आने वाले दस वर्षों में विकराल समस्या का सामना करना पड़ सकता है। पॉलीथिन पर रोक लगाने के लिए समय-समय पर कुछ सामाजिक संस्थाओं की ओर से पहल की जाती है, लेकिन सरकार का रवैया उदासीन है। यदि सरकार पॉलीथिन व प्लास्टिक पर रोक लगाती है, तो अगले 10 वर्षों में स्थिति में सुधार हो सकती है।
इससे पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा मिल सकता है। ऐसे में जरूरी है कि लोग बाजार जाते वक्त थैला लेकर निकले। प्लास्टिक पूरी तरह से न तो जलता है और न ही गलता है। साथ ही इसके जलने पर कार्बन मोनो ऑक्साइड, कार्बन डाई ऑक्साइड और बेंजिन जैसी खतरनाक गैस निकलती है। यह पर्यावरण को प्रदूषित करने के साथ मानव जीवन के लिए घातक होता है।
यही कारण है कि अनेक राज्यों में इसके उपयोग, स्टोर व उत्पादन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। जानकारी के अनुसार, शहर से रोजाना सौ टन से भी च्यादा कचरा निकल रहा है। इसमें 70 फीसदी हिस्सा प्लास्टिक व पॉलीथिन कचरे के रूप में होता है। प्लास्टिक जमीन की उर्वरा शक्ति को नष्ट करती है। ऐसे में समस्या से निजात दिलाने के लिए पॉलिथीन के उपयोग को तत्काल बंद करने की जरूरत है। प्लास्टिक की चीजों को नष्ट करना आसान नहीं है। मगर इन सिरिंजों का भी पुन:चक्रण किया जाता है। कबांडियों के भंडार से प्लास्टिक, लोहा, कांच, कागज आदि वस्तुएं विभिन्न कारखानों में पहुंच जाती हैं, जहां उनका पुन:चक्रण किया जाता है। लोहा आदि धातुओं को तो फिर से उच ताप पर पिघलाकर पुन: उपयोग किया जाता है, जिससे इनमें विषाणु के रहने की आशंका नगण्य ही होती है। लेकिन प्लास्टिक कूडे क़ो अल्प ताप पर पिघलाकर पुन: उपयोगी बनाया जाता है, जिसमें जीवाणुओं के मौजूद रहने का खतरा भरपूर रहता है। इससे अधिक ताप पर प्लास्टिक जल जाता है। जलकर प्लास्टिक भयंकर विषैली गैस में बदलता है जो वातावरण के लिए अत्यंत हानिकारक है। गुटखे से लेकर पानी के पाउच और अन्य उत्पादों के चमकीले रैपर पर्यावरण के लिए खतरा बन गए हैं। शादी-समारोह में डिस्पोजेबल आइटम्स का बढ़ता चलन भी खतरे की घंटी बजा रहा है। पॉलिथीन के मामले में समझदारी बताने वाले लोग भी प्रदूषण के इस दूसरे रूप का हाथ थामे हैं। फिलहाल शादियों का सीजन नजदीक और इन डिस्पोजेबल बर्तनों की डिमांड काफी बढ़ गई है। इनकी बढ़ी डिमांड पर्यावरण के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकती है। प्लास्टिक मूल रूप से विषैला या हानिप्रद नहीं होता। परन्तु प्लास्टिक के थैले रंग और रंजक, धातुओं और अन्य तमाम प्रकार के अकार्बनिक रसायनों को मिलाकर बनाए जाते हैं। रंग और रंजक एक प्रकार के औद्योगिक उत्पाद होते हैं जिनका इस्तेमाल प्लास्टिक थैलों को चमकीला रंग देने के लिये किया जाता है। इनमें से कुछ कैंसर को जन्म देने की संभावना से युक्त हैं तो कुछ खाद्य पदार्थों को विषैला बनाने में सक्षम होते हैं। रंजक पदार्थों में कैडमियम जैसी जो भरी धातुएं होती हैं वे फैलकर स्वास्थ्य के लिये खतरा साबित हो सकती हैं।
प्लास्टिसाइजर अल्प अस्थिर प्रकृति का जैविक (कार्बनिक) एस्सटर (अम्ल और अल्कोहल से बना घोल) होता है। वे द्रवों की भांति निथार कर खाद्य पदार्थों में घुस सकते हैं। ये कैंसर पैदा करने की संभावना से युक्त होते हैं। एंटी आक्सीडेंट और स्टैबिलाइजर अकार्बनिक और कार्बनिक रसायन होते हैं जो निर्माण प्रक्रिया के दौरान तापीय विघटन से रक्षा करते हैं। कैडमियम और जस्ता जैसी विषैली धातुओं का इस्तेमाल जब प्लास्टिक थैलों के निर्माण में किया जाता है, वे निथार कर खाद्य पदार्थों को विषाक्त बना देती हैं। थोड़ी-थोड़ी मात्रा में कैडमियम के इस्तेमाल से उल्टियां हो सकती हैं और हृदय का आकार बढ सक़ता है। लम्बे समय तक जस्ता के इस्तेमाल से मस्तिष्क के ऊतकों का क्षरण होकर नुकसान पहुंचता है।
शोभन बनर्जी

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