17-Dec-2016 05:54 AM
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सियासत में कब कौन किधर पलट जाए कोई आंकलन नहीं किया जा सकता। इसी आधार पर इन दिनों देश की राजनीति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के संबंधों की प्रगाढ़ता चर्चा में है।
नीतीश और भाजपा के नेपथ्य के धुंध में बदलते-बढ़ते रिश्ते के बावत पूरे प्रदेश में सियासी माहौल गरमाने लगा है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री और लालू प्रसाद की पत्नी राबड़ी देवी ने अपनी ठेठ गंवई अंदाज में अभद्र टिप्पणी की भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी नीतीश कुमार को अपने घर ले जाएं और अपनी बहन से शादी कर दें। यह बयान जदयू-राजद गठबंधन में पड़ती दारार और भाजपा के प्रति नीतीश के रिश्ते में उपजे डर का नतीजा है। बहुत संभव है कि पिछले बिहार विधानसभा चुनाव के वक्त से ही सहसा गंभीर और धैर्यवान हो गए लालू प्रसाद ने ही अपनी पत्नी को ऐसा कहने को उकसाया हो। क्योंकि जो राबड़ी ने बोला वह लालू शैली है। राबड़ी के बयान आने के बाद से ही बिहार की राजनीति में अचानक उबाल आ गया है। इस बयान पर भाजपा के साथ-साथ जदयू ने भी घोर आपत्ति दर्ज की। इसके पहले सुशील कुमार मोदी के बयान ने भी भाजपा-नीतीश के बदलते रिश्ते को हवा दी।
सुशील मोदी कहते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को राजद और कांग्रेस के साथ संबंध पर पुनर्विचार करना चाहिए। राजद की भ्रष्टाचार में डूबी पार्टी की छवि रही है। राजद को नैतिकता से कोई लेना-देना नहीं है। उसके शासनकाल में चारा घोटाला समेत कई बड़े घोटाले हुए। इससे भी बढ़कर सुशील मोदी खुला न्योता देने वाले अंदाज में कहते हैं कि नीतीश कुमार यदि भाजपा से समर्थन मांगते है तो हम तैयार हैं अगर नीतीश ज्यादा समय तक लालू प्रसाद के साथ रहेंगे तो उनकी राजनीतिक हत्या हो जाएगी। राजद-नीतीश कुमार के रिश्ते में उस वक्त टेर्निंग प्वाइंट आया जब राजद के पुराने दबंग नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन जेल से बाहर आए।
शहाबुद्दीन का जेल में रहना बिहार से नीतीश के स्वच्छ प्रशासन का एक रूप था। जेल से बाहर आते ही शहाबुद्दीन ने पहला बयान नीतीश कुमार के खिलाफ दिया कि अब नीतीश बाबू का खेल खत्म। नीतीश कुमार परिस्थिति जन्य मुख्यमंत्री हैं। इस बयान का संकेत साफ था कि जिस गठबंधन की सरकार में लालू प्रसाद को सबसे अधिक सीट है, उसमें नीतीश कैसे मुख्यमंत्री रह सकते हैं। शहाबुद्दीन के इस बयान को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गंभीरता से लिया और येन-केन प्रकारेण वे उसे फिर से जेल भिजवाने में कामयाब रहे जो नीतीश की छवि और उनकी राजनीति के लिए बेहद जरूरी था।
गौरतलब है कि नीतीश कुमार ने सत्ता संभालते ही बिहार को अपराध मुक्त बनाने का अपना संकल्प पूरा किया। उन्होंने पुलिस को शक्ति दी। फास्ट ट्रेक के जरिए दबंग राजनेताओं को जेल में डलवाया। इन्हीं में से एक मो. शहाबुद्दीन भी थे। जिनकी सिवान समेत पूरे राज्य में तूती बोलती थी और डीएम तक को थप्पड़ रसीद करने में जरा हिचका नहीं रखता था। सरकारी आंकड़े के अनुसार अपने पहले शासन में नीतीश ने करीब 55 हजार अपराधियों से बिहार को मुक्त कराया था। यह 2008 का वह दौर था जब बिहार की जनता ने लालू के जंगल राज से मुक्ति पाने के लिए नीतीश कुमार को भारी समर्थन दिए। शहाबुद्दीन फैक्टर ही नीतीश कुमार के मन में राजा के प्रति खटास और भाजपा के प्रति रुख करने को प्रेरित करता है, ऐसा राजनीतिक जानकार कहते हैं। अगर सूत्रों की माने तो कुछ हफ्ते पहले दिल्ली से सटे गुडग़ांव में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की गुपचुप भेंट भी हुई है। हालांकि अब नीतीश इस मुताल्लिक इंकार करते हैं।
बहरहाल, नीतीश जो भी सफाई दे प्रदेश समेत देश की जनता के मन में इस बात का बीजारोपण हो गया है कि नीतीश कुमार एक बार फिर से भाजपा के साथ जा सकते हैं। मोदी की तरह नीतीश भी खुद को चेक करते हैं और इस क्रम में वे राजद को छोड़कर भाजपा के साथ आते हैं, तो कोई हैरानी नहीं।
ममता को रोकने मोहरा बने सकते हैं नीतीश
देश की राजनीति में जिस तरह ममता बनर्जी आगे बढ़ रही हैं और उनको अन्य दलों का समर्थन मिल रहा है। उससे घबराकर भाजपा नीतिश को करीब लाने की कवायद में जुटी हुई है। इन दोनों की नजदीकी ने यह तो साबित कर दिया है कि सियासत में कोई भी संबंध स्थायी नहीं होता और अक्सर राजनेताओं की ना का अर्थ हां होता है। यह एक ऐसा कथ्य-सत्य है जो राजनीति नाम के जिस्म में सदियों से डीएनए की तरह मौजूद है जो सतही तौर पर आंखों को दिखाई तो नहीं देती मगर वह अनिवार्य रूप से होता है। इस संदर्भ को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भाजपा के साथ बदलते रिश्ते को देखा जा सकता है जहां बदलाव अभी तक सिर्फ सरगोशियों और नेपथ्य के कोहरे में है। सरगोशियों का संकेत था कि नीतीश कुमार फिर से भाजपा की ओर रूख कर रहे हैं। अब सरगोशियों की सतह पर आते है।
-कुमार विनोद