03-Jan-2017 06:49 AM
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मप्र में लाखों लोग वित्तीय अपराध के शिकार हुए हैं, लेकिन इन अपराधों की तहकीकात करने और अपराधियों को पकडऩे के लिए कोई एक एजेंसी नियत नहीं होने के कारण अपराधी बेखौफ हैं। लेकिन अब वित्तीय अपरोध करने वालों की खैर नहीं है। क्योंकि सरकार इस दिशा में सख्त कदम उठाने की तैयारी में जुटी हुई है। इसी कड़ी में गत दिनों गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव केके सिंह ने अधिकारियों के साथ बैठक कर योजना बनाई है।
दरअसल प्रदेश में वित्तीय अपराधों को रोकने के लिए अभी तक कोई ठोस नीति नहीं है। इस कारण फर्जी कंपनियां और उनके मालिक लोगों से करीब पंद्रह हजार करोड़ रूपए की ठगी कर फरार हो गए हैं। ठगों के खिलाफ दर्ज मामलों की समीक्षा के लिए अपर मुख्य सचिव गृह केके सिंह ने गत दिनों भारतीय रिजर्व बैंक, रजिस्ट्रार फर्म सोसायटी, सीआईडी, ईओडब्ल्यू सहित तमाम जिम्मेदार विभागों के अफसर के साथ बैठक की। इस अवसर पर सभी ने वित्तीय अपराध रोकने के लिए सुझाव दिए। बैठक में यह बात सामने आई कि फर्जी कंपनियां खोलने वाले आरोपी लोगों को बैंक से दोगुना ब्याज देने का लालच देते हैं। यदि बैंक से दस फीसदी ब्याज रकम जमा करने पर मिलती है तो आरोपी उसे बीस फीसदी बताते हैं। लोगों को लगता है कि जल्दी राशि दोगुनी हो जाएगी। वे झांसे में आ जाते हैं। प्रदेश के कुल सत्तर प्रकरण दर्ज हैं। इनमें से दो मामले भोपाल के एमपीनगर और कोहेफिजा थाने में भी दर्ज हैं। लेकिन ऐसी कंपनियों को लोगों को ठगने का अधिकार कैसे मिल जाता है। जबकि नियम यह है कि कोई भी वित्तीय लेन-देन आरबीआई की अनुमति के बिना नहीं होगा। कंपनियां किसी से व्यावसायिक प्रयोजन के लिए राशि जमा नहीं करा सकती है, जब तक उनके पास आरबीआई का लाइसेंस नहीं है।
वित्तीय मामलों के जानकार बताते हैं कि कंपनियां रजिस्ट्रार आफ कंपनीज (आरओसी) से रजिस्ट्रेशन कराकर काम शुरू कर देती है। सामान्य लोग कानून के प्रति उतने जानकार नहीं होते हैं। लिहाजा कंपनियां रजिस्ट्रेशन नंबर दिखाकर लोगों से ठगी कर लेती है, जबकि उनके पास आरबीआई का लाइसेंस नहीं होता है। फर्जी कंपनियां एक कमरे के किराए के मकान का पता देते हैं और उस पते पर बैंक में खाता खुलवा लेती है। आधार कार्ड से लेकर तमाम खानापूर्ति भी उसी पते से कर लेती है। रजिस्ट्रेशन के समय उनके नाम पते अथवा स्थाई पते की तस्दीक नहीं होती है। इसलिए उनका काम आसान हो जाता है। लोगों को ठगने के लिए कंपनियां स्थानीय एजेंट बनाती है। एजेंट के स्थानीय होने के कारण लोग गुमराह हो जाते हैं। कंपनियों के झांसे में आकर वे मोटी रकम दो गुना होने की लालच में जमा कर देते हैं। पैसा जमा होने के बाद असली आरोपी फरार हो जाते हैं। पुलिस भी लोगों के कहने पर स्थानीय एजेंट को गिरफ्तार कर पाती है। असली आरोपी पुलिस की पकड़ से दूर रहते हैं। अदालत से वारंट जारी होने पर पुलिस उसे अपने पास रखकर बैठी रहती है। ऐसे में गुनाहगार आजाद रहते हैं। अपर मुख्य सचिव गृह की अध्यक्षता में हुई बैठक में असली गुनाहगार तक पहुंचने के तरीकों पर चर्चा हुई है। तय यह किया गया है कि इन प्रकरणों की जांच एसटीएफ को सौंप दी जाए। साथ ही वित्तीय अपराधों के मामलों के लिए अलग से थाना और एसपी की व्यवस्था की जाए। गृह विभाग के अधिकारियों का कहना है कि वित्तीय अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए हर बड़े जिले में एक थाना इससे संबंधित अपराधों के लिए होना चाहिए। वित्तीय अपराध इंटर स्टेट होते हैं। इसलिए इसकी जांच का अधिकार किसी वरिष्ठ अधिकारी के पास होना चाहिए। ताकि वह दूसरे राज्यों के वरिष्ठ अधिकारियों और सेबी से बातचीत करके नकेल कस सके। अब देखना यह है कि वित्तीय अपराध रोकने की सरकार की पहल क्या रंग लाती है।
सड़कों पर कैसे रुकेगा मौत का मंजर
मप्र में सड़क दुर्घटनाएं व इनमें होने वाली मौत तथा घायलों का आंकड़ा हर वर्ष बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2015 में तो मप्र देश के 13 प्रांतों में दुर्घटनाओं में तीसरे स्थान पर है। केंद्रीय परिवहन मंत्रालय की ताजा रिपोर्ट के अनुसार देश में सबसे ज्यादा 69659 दुर्घटनाएं तमिलनाडु में और इसके बाद 63805 दुर्घटनाएं महाराष्ट्र में हुई। तीसरे क्रम पर मध्यप्रदेश की 54947 दुर्घटनाएं हुई हंै। इसको लेकर गृह विभाग चिंतित है। विभाग के अपर मुख्य सचिव सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए ट्रेफिक और रोड सेफ्टी पर जोर दे रहे हैं। इसके लिए उन्होंने एक एडीजी ट्रेफिक व रोड सेफ्टी बनाने की तैयारी की है। ताकि इनकी ठीक से मॉनीटरिंग हो सके। जानकारों का कहना है कि देश को हर साल सड़क दुर्घटनाओं से तीन-चार फीसदी जीडीपी का लॉस हो रहा है। प्रदेश में सड़क दुर्घटनाओं के लिए रोड इंजीनियरिंग भी जिम्मेदार हैं। प्रदेश में वर्तमान में 463 ब्लेक स्पॉट है। जिससे दुर्घटनाए बढ़ रही हैं। इनका करेक्शन करना जरूरी है।
मंत्री नहीं इन्हें तो अफसर होना चाहिए
एक तरफ अधिकारी सड़क दुर्घटनाओं को लेकर चिंतित हैं वहीं गृह एवं परिवहन मंत्री भूपेन्द्र सिंह के बोल अफसरों जैसे हैं। सड़क दुर्घटनाओं के संदर्भ में उनका कहना है कि नए साल के पहले पखवाड़े में गृह और परिवहन विभाग संयुक्त अभियान चलाकर लोगों को जागरुक करेंगे ताकि दुर्घटनाओं को रोका जा सके।
-कुमार राजेंद्र