03-Jan-2017 06:44 AM
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अभी हाल ही में 24 दिसंबर को भिंड जिले में फूप कस्बे के अंत्योदय मेला में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने घोषणा की कि मप्र में जन्म लेने वाले हर बच्चे के नाम मकान बनाने के लिए जमीन दी जाएगी। यदि जमीन सरकारी नहीं है तो खरीद कर सरकार ही देगी। इसके लिए विधानसभा से कानून बनवाएंगे। वहीं दूसरी प्रदेश सरकार की महत्वकांक्षी मुख्यमंंत्री आवास योजना बैंकों व अफसरशाही की भेंट चढ़ गई है। आलम यह है कि हितग्राही बैंकों और अफसरों के चक्कर लगाकर थक गए हैं, लेकिन सरकारी योजना का लाभ उन्हें नहीं मिल पा रहा है।
ज्ञातव्य है कि राज्य शासन ने ग्रामीणों को आवास मुहैया कराने के लिए मुख्यमंत्री ग्रामीण आवास मिशन लागू किया है, लेकिन बैंकों के असहयोग के कारण यह मिशन आगे नहीं बढ़ पा रहा है। इसके तहत हजारों लोगों ने आवास बनाने की इच्छा जाहिर की, लेकिन बैंकों द्वारा उन्हें लोन देने से इंकार किया जा रहा है। बैंकों के अडिय़ल रुख के कारण मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मंशा पर पानी फिर रहा है। बैंकों सहित ग्रामीण और सहकारी बैंकों के असहयोगात्मक रवैए के कारण अभियान ठप होता जा रहा है। केवल राजगढ़ जिले को छोड़कर अन्य जिलों में वर्ष 2014-15 एवं वर्ष 2015-16 में सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, सेन्ट्रल मध्यप्रदेश ग्रामीण बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, इलाहाबाद बैंक, जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित द्वारा तय लक्ष्य के अनुरूप न तो आवास ऋण प्रकरण स्वीकृत किए गए और न ही किसी ने इन प्रकरणों के निराकरण में दिलचस्पी दिखाई।
यह स्थिति तब है, जब राज्य शासन इन बैंकों को बार-बार सहयोग करने के लिए पत्र लिख रहा है। बैंकों का तर्क है कि मिशन के तहत स्वीकृत आवासीय लोन प्रकरणों में हितग्राहियों द्वारा किस्तों का समय पर भुगतान नहीं करना है। पुराने कर्ज प्रकरणों में रिकवरी न होने को आधार बनाकर इस मिशन के हितग्राहियों को लोन देने से इंकार किया जा रहा है। अक्टूबर 2016 तक भोपाल संभाग में 11 हजार, जबलपुर संभाग में करीब 15 हजार प्रकरण आवास ऋण के लंबित पड़े हैं। इन्हें मंजूरी मिलने के फिलहाल कोई आसार नहीं हैं।
सरकार ने जिला पंचायतों को लक्ष्य तो आवंटित कर दिया, लेकिन बैंकों से लोन नहीं मिलने के कारण लक्ष्य की पूर्ति नहीं हो पाई। एक वित्तीय वर्ष में जिन प्रकरणों में लोन मंजूर नहीं हो पाते हैं, उन्हें अगले वित्तीय वर्ष में कैरी-फॉरवर्ड कर दिया जाता है। इसके चलते प्रकरणों की फेहरिस्त लंबी होती जा रही है। वहीं प्रदेश में कई जगह मुख्यमंत्री आवास योजना में बड़े घोटाले सामने आ रहे हैं। ताजा मामला इटारसी में आया है। यहां तीन पंचायतों की शुरुआती जांच में ही यह मामला उजागर होने लगा है कि आवास स्वीकृत करने से लेकर निर्माण तक पैसों का लेनदेन हुआ है। जिन गरीबों को यह आवास स्वीकृत हुए हैं उन्हें पूरी राशि नहीं मिली है और कुछ तो ऐसे भी है जो काफी संपन्न हैं, लेकिन उन्होंने इस योजना का लाभ लिया है। योजना में हुई अनियमितता की जांच केसला ब्लॉक की सोनतलाई, गजपुर और बेलावाड़ा पंचायत में की गई। सोनतलाई में ऐसे हितग्राही सामने आए जिनका आवास स्वीकृत हुआ, लेकिन राशि नहीं मिली। इसमें जमनाबाई पत्नी जागेश और हीरालाल पुत्र गरीबदास झिप्पी शामिल हंै। कुछ ने राशि ले ली है लेकिन आवास नहीं बनाए। गजपुर में तो हितग्राहियों ने बताया कि उन्हें स्वीकृत आवास की राशि प्राप्त करने के लिए बैंक मैनेजर, पंचायत के एडीपीओ को रिश्वत देनी पड़ी थी। इस मामले में प्रदेश के ग्रामीण विकास एवं पंचायत मंत्री गोपाल भार्गव का कहना है कि शासन स्तर पर अगर शिकायत पहुंचती है तो उसकी जांच कराई जाती है। इटारसी में अधिकारियों ने जांचकर पात्र लोगों को आवास आवंटित कराए हैं।
इंदिरा आवास योजना में भी बड़ी गड़बड़ी
मध्य प्रदेश में इंदिरा आवास योजना में भी बड़े पैमाने पर गड़बडिय़ां सामने आ रही हैं। कई हितग्राहियों ने एक ही फोटो से कई-कई भुगतान पा लिया है। इस बात का खुलासा खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की समीक्षा बैठक में किया था। दरअसल प्रदेश में आवासीय योजनाएं दलालों के हाथ में चली गई है। आवास स्वीकृति से लेकर लोन दिलाने तक दलालों की भूमिका है। इसके लिए 10 हजार से लेकर 25 हजार रुपए तक की राशि ली जाती है। यह भी शिकायत सामने आई है कि जिन हितग्राहियों के आवास स्वीकृत हुए है उनकी सूची में मकान का काम पूरा बताया गया है। लेकिन मकानों के काम या तो अधूरे है या फिर शुरू ही नहीं हुए हैं। इस तरह से सरकारी अधिकारियों ने भी खानापूर्ति कर ली है।
-विकास दुबे