17-Dec-2016 07:38 AM
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मध्य प्रदेश में अब पंचवर्षीय सिस्टम पर आधारित योजनाएं नहीं बनाई जाएंगी। 31 मार्च 2017 को पंचवर्षीय सिस्टम को बंद कर दिया जाएगा और इसके स्थान पर 15, 7 और 3 साल की योजनाओं का एक मास्टर प्लान तैयार किया जाएगा। यह प्लान जिला और राज्य मिलकर तैयार करेंगे। मप्र राज्य योजना आयोग जिला स्तर पर कलेक्टरों को मदद करेगा। यह परिवर्तन भारत सरकार के नीति आयोग की सिफारिशों के क्रम में किए जा रहे हैं। मप्र राज्य योजना आयोग ने भी नीति आयोग के अनुसार 31 मार्च से हर विभाग को अपना-अपना 15 वर्षीय पर्सपेक्टिव, 7 वर्षीय स्ट्रेटेजिक और 3 वर्षीय एक्शन प्लान तैयार करने के निर्देश दिए हैं। यानी जो काम सबसे जरूरी होगा उसे 3 वर्षीय एक्शन प्लान में पूरा करने के लिए समय सीमा निर्धारित की गई है। इसके अलावा वे महत्वपूर्ण काम जिन्हें पूरा होने में तीन साल से अधिक समय लगने की संभावना हो, उसे 7 वर्षीय स्ट्रेटेजिक प्लान और सबसे लंबी अवधि में पूर्ण होने वाले कार्यों को 15 साल के पर्सपेक्टिव प्लान में रखा जाएगा। पर्सपेक्टिव प्लान में रखे गए बिंदुओं के अनुसार राज्य में 15 साल में होने वाले कार्यों को शामिल किया जाएगा।
राज्य योजना आयोग के उपाध्यक्ष चैतन्य कश्यप ने कुछ जिलों में बैठकें करके अधिकारियों को इस संदर्भ आवश्यक निर्देश भी दिए है। साथ ही आयोग द्वारा सभी विभागों से वन-टू-वन चर्चा की जा रही है। एक फॉरमेट तैयार कर सभी विभागों को भेजा गया है, इससे विभागों को प्लान तैयार करने में मदद मिलेगी। राज्य योजना आयोग ने तीन स्तरीय प्लान तैयार करने के लिए 13 ग्रुप बनाए हैं। राज्य योजना आयोग ने सभी विभागों को एक प्रारूप दिया है, उसमें विभाग की वर्तमान स्थिति जैसे आधारभूत सर्वेक्षण का डाटा-मूल्यांकन, आधारभूत जरूरतों, कानून व्यवस्था, सुरक्षा मशीनरी, मानव संसाधन, वित्तीय प्रबंधन, आपदा प्रबंधन, ई-गवर्नेंस, नवाचार, पूर्व पंचवर्षीय योजनाओं के लंबित काम, अनुपयोगी खर्चों में कटौती, राजस्व व्यय, पूंजीगत व्यय आदि को शामिल किया गया है। सभी विभागों को अपनी-अपनी आवश्यकताओं और कार्यक्षमताओं के आधार पर ऐसे प्लान तैयार करना है जो प्राथमिकता के हिसाब से जरूरी हों और कम समय में पूरे किए जा सकें। केन्द्र में अभी तक जो 170 योजनाएं चल रही थीं उनमें से केवल अब 28 ही रहेंगी।
15 साल के मास्टर प्लान में तीन-तीन साल के वित्तीय बजट एलॉटमेंट को लेकर फाइनेंशियल प्रोजेक्शन तैयार किए जाएंगे। चूंकि प्लानिंग 15 साल के लिए होगी, लेकिन यह ठीक तरीके से काम कर रही है या नहीं, इसकी जांच के लिए सात साल बाद रिव्यू किया जाएगा। अब हर योजना की समीक्षा थर्ड पार्टी से कराई जाएगी। राज्य योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष बाबूलाल जैन कहते हैं कि पंचवर्षीय योजनाओं के दिन लद गए। पहले समस्याएं गंभीर थी। अब सब कुछ बदल रहा है। अर्थव्यवस्था मजबूत हुई है। इसलिए लंबी और बड़ी सोच की जरूरत है। सुझाव तो 30 साल की योजना बनाने का भी आया था। लेकिन अभी वह मुनासिब नहीं होगा। इसलिए पंचवर्षीय की जगह 15 साल की हर गांव, शहर और जिले की प्लानिंग पर अमल शुरू हुआ है। इस प्लानिंग पर सात साल में अमल किया जाएगा। इसके लिए तीन साल की बजट कार्ययोजना भी तैयार होगी।
टालमटोल का रवैया होगा खत्म
चैतन्य कश्यप कहते हैं कि विभिन्न विभागों के बीच योजनाओं के अमल को लेकर कोई तालमेल नहीं होता है। हर विभाग टालमटोल का रवैया अपनाता है। इस कारण कई महत्वपूर्ण योजनाएं जमीनी स्तर पर फेल हो जाती हैं। इसलिए अब जिला स्तर पर प्लान बनेंगे। कलेक्टर इन प्लान को राज्य योजना आयोग तक पहुंंचाएंगे। राज्य योजना आयोग प्लानिंग के लिए अब एक प्लेटफॉर्म की तरह काम करेगा। आयोग के अनुसार, जिला स्तर पर बेहतर प्लानिंग के लिए कलेक्टरों की मदद करने 31 कंसल्टेंट नियुक्त किए हैं। वे कलेक्टरों को योजनाएं बनाने के लिए सर्वे करने, प्रजेंटेशन तैयार करने आदि के लिए मदद करेंगे। इसके लिए राज्यों को हर साल देने वाले बजट में भी वृद्धि की है। पहले केन्द्र सरकार से राज्यों को 35 प्रतिशत बजट योजनाओं को बनाने और क्रियान्वयन के लिए मिलता था, जो अब बढ़कर 42 प्रतिशत हो गया है। शेष बजट विभागीय योजनाओं के माध्यम से अलग-अलग विभागों को पहले की तरह मिलता रहेगा।
-श्यामसिंह सिकरवार