जया की विरासत पर भाजपा की टकटकी!
17-Dec-2016 07:37 AM 1234819
संसद के इतिहास में ये मौका कम ही आया है जब किसी राज्य के मुख्यमंत्री के निधन पर श्रद्धांजलि के बाद कार्रवाई को स्थगित कर दिया गया, लेकिन अम्मा यानी एआइएडीएमके प्रमुख जयललिता के लिए परम्परा से हटकर शोक जताया गया। ये हुआ भी केंद्र सरकार की सिफारिश पर। कुछ सांसद दबी जुबान से एक दूसरे से पूछ बैठे कि जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी चीफ मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन पर ऐसा क्यों नहीं हुआ। इन सवालों का जवाब सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री ने दिया ये कहकर कि अम्मा का कद बहुत ऊंचा था ये सम्मान उसी कद को है। पीडीपी जो कि सरकार की सहयोगी है और एआइएडीएमके सिर्फ एक ऐसी पार्टी जिसके साथ नरेंद्र मोदी के साथ रिश्ते अच्छे हैं। लेकिन फर्क भविष्य की राजनीति के गर्त में छिपा है जहां भाजपा खुद को देखना चाहती है और उस भूमिका तक पहुचने में पार्टी को उम्मीद है तो सिर्फ एआइएडीएमके से। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जयललिता के पार्थिव शरीर के पास उनकी खास सहयोगी शशिकला के सर पर हाथ रखकर ढांढस बढ़ाना कई संकेत देता है। ये बात साफ  है कि आने वाले दिनों में शशिकला एआइएडीएमके में सबसे अहम किरदार निभाने वाली हैं। ये बात किसी से छिपी नहीं की अस्पताल में जब जया जिन्दगी और मौत से जूझ रही थीं और चर्चा इस बात पर जारी थी कि आखिर उनकी विरासत को आगे किसके हाथों में सौंपा जाए तो पार्टी और काडर की जुबां पर एक ही नाम था शशिकला। खुद पर चल रहे अदालती मुकदमों को देखते हुए केंद्र सरकार से फिलहाल अच्छे संबंध रखना शशिकला की भी जरूरत है और राज्य से लेकर राष्ट्रीय राजनीति में एआइएडीएमके का साथ भाजपा की अपनी जरूरत है। अम्मा के साथ उमड़े जनसमर्थन को भांपते हुए केंद्र सरकार ने हॉस्पिटल से लेकर अंतिम संस्कार तक पूरा रोल निभाया। केंद्र का नुमाइंदा बनाकर केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू को चेन्नई भेजा और वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री राज्य में उपजने वाले संवैधानिक संकट के बारे में जयललिता के सहयोगियों को सलाह देते रहे। राष्ट्रीय शोक का ऐलान हुआ और तमाम मंत्री अम्मा और मोदी के सौहार्दपूर्ण रिश्तों का बखान करने लगे। अब भाजपा को ना सिर्फ अगले साल होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए एआइएडीएमके के समर्थन की जरूरत है बल्कि कांग्रेस और ममता बनर्जी समर्थित विपक्ष के खिलाफ भी, इसलिए आने वाले समय में पार्टी के रणनीतिकार इस कोशिश में रहेंगे की किसी भी तरह अम्मा के जाने से एआइएडीएमके टूट के कगार पर पहुंचकर विपक्ष को फायदा ना पहुंचाए। भाजपा को फायदा इस बात का है कि विचारों के मामले पर दो ध्रुवों में बटी तमिलनाडु की राजनीति में दक्षिणपंथी विचारों पर वो एआइएडीएमके के साथ खड़ी है। हालांकि, उसके पास ना तो राज्य में अम्मा या एमजीआर जैसा कोई चमकता सितारा है और ना ही डीएमके जैसा कास्ट कॉम्बिनेशन। इस खालीपन को भरना ही पार्टी के लिए चुनौती है। ये वही भाजपा है जिसके नेता कभी शंकराचार्य की गिरफ्तारी से आहत होकर जयललिता के खिलाफ धरने पर बैठे और ये अम्मा की वही पार्टी है जिसने अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिरने पर सोनिया गांधी से नजदीकी साधी थी। लेकिन गेम बदला नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने पर जिनके रिश्ते अम्मा के साथ राजनितिक तौर पर मधुर रहे। सत्ता में आते ही मोदी ने सहयोगी ना होने के बावजूद एआइएडीएमके के नेता को लोकसभा में उप सभापति बनवाया तो जया ने विरोध के बावजूद जीएसटी बिल पर सरकार को असमंजस में ना डालते हुए वाकआउट कर बिल पास करवा दिया। फिलहाल राज्य के नए मुख्यमंत्री पनीरसेल्वम को पार्टी पर अपनी पकड़ बनानी है और शशिकला को अम्मा की गैरमौजूदगी में खुद को साबित करना है। इन दोनों के बीच की प्रतिस्पर्धा ही भाजपा को आने वाले दिनों में राजनितिक फायदा पहुंचाएगी। जाहिर है उसकी कोशिश किसी ना किसी तरह दोनों के साथ मधुरता बनाने की होगी तभी अम्मा के लिए पनपी सहानुभूती की नमी पर वो अपनी सियासी फसल खड़ी कर पाएगी। ऐसी अम्मा दोबारा नहीं आएगी अगर आप लोगों से पूछें कि अम्मा को किसलिए सबसे ज्यादा याद रखा जाएगा, तो उनके पास कोई एक जवाब नहीं है। जहां आमजन की जिंदगी उन्होंने आसान बनाई, वहीं जब उन पर हमला हुआ तो घायल शेरनी की तरह लड़ीं और जीतीं। भीतर से नरम और बाहर से सख्त शख्सियत के पीछे एक औरत थी। एक ऐसी औरत, जिन्हें दृढ़ इच्छाशक्ति के लिए याद किया जाएगा उनमें मनचाहा बनने की दृढ़ता थी। 68 साल के जीवन में उन्होंने कई उतार-चढ़ाव देखे, बचपन एकाकी बीता, मां की ममता के लिए तरसती रहीं, इसके बावजूद पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहीं। पर उन्हें अपनी अकादमिक छात्रवृति छोड़कर घर चलाने के लिए एक्टिंग का कॅरियर अपनाना पड़ा। ग्रेवाल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, मैं एक बार कुछ करने की ठान लेती हूं, तो वह काम मुझे पसंद हो या नहीं, उसमें मुझे श्रेष्ठ ही रहना है और सबसे बढिय़ा करना है।Ó -धर्मेन्द्र सिंह कथूरिया
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