17-Dec-2016 07:25 AM
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लगभग एक साल की उहापोह के बाद आखिरकार 10 दिसंबर को राजस्थान में मंत्रिमंडल का विस्तार व फेरबदल हो ही गया। छह नए मंत्री बनाए गए हैं जबकि दो राज्य मंत्रियों का प्रमोशन कर उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। इस फेरबदल से इस सियासी अटकल पर भी विराम लग गया है कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कामकाज से नाखुश है और उन्होंने सत्ता की सूरत बदलने के निर्देश दिए हैं। जो छह नए मंत्री बनाए गए हैं और जिन दो मंत्रियों का प्रमोशन हुआ है, सभी वसुंधरा खेमे के ही हैं। यानी इन्हें मुख्यमंत्री ने अपनी मर्जी से मंत्री बनाया है न कि केंद्रीय नेतृत्व अथवा संघ के कहने से।
सबसे पहले मंत्रिमंडल में प्रमोशन पाने वाले मंत्रियों की बात करें तो अजय सिंह किलक और बाबू लाल वर्मा, दोनों को ही वसुंधरा का वरदहस्त प्राप्त है। राज्य मंत्री के तौर पर किलक के पास सहकारिता विभाग का स्वतंत्र प्रभार था। अब उन्हें इसी विभाग में कैबिनेट मंत्री बनाया है। मंत्रिमंडल में प्रमोशन पाने वाले दूसरे मंत्री बाबू लाल वर्मा हैं। वे भी वसुंधरा खेमे के ही हैं। विधानसभा चुनाव में राजे ने जो प्रदेशव्यापी सुराज संकल्प यात्रा निकाली थी उसका रूट मेप बनाने की जिम्मेदारी वर्मा के पास ही थी। नए मंत्रियों में निंबाहेड़ा (चित्तौडगढ़) से विधायक श्रीचंद कृपलानी को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया है। वे तीसरी बार विधायक बने हैं और दो बार सांसद और एक बार जिला प्रमुख भी रहे हैं। माना जा रहा था मुख्यमंत्री पहली बार में ही उन्हें अपनी टीम में शामिल करेंगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इसके बाद से ही वे नाराज चल रहे थे। कृपलानी को संतुष्ट करने के लिए इसी साल जनवरी में नगर विकास न्यास चित्तौडगढ़ का अध्यक्ष मनोनीत किया था, लेकिन उन्होंने इस पद को प्रतिष्ठा के अनुरूप नहीं होने का हवाला देकर ठुकरा दिया। यही नहीं, उन्होंने सार्वजनिक रूप से नाराजगी जाहिर करते हुए कई बार दोहराया कि राजनीति से उनका मन भर गया है और वे अगला चुनाव नहीं लड़ेंगे। सूत्रों के अनुसार राजे उन्हें पहले ही मंत्री बनाना चाहती थीं, लेकिन संघ की ओर से अजमेर उत्तर विधायक वासुदेव देवनानी का नाम आने के कारण यह संभव नहीं हो पाया।
कृपलानी और देवनानी, दोनों ही सिंधी समुदाय से हैं। राजस्थान के राजनैतिक इतिहास में संभवत: ऐसा पहली बार हुआ है जब मंत्रिमंडल में दो सिंधी मंत्री हैं। पहले यह कयास लगाया जा रहा था कि देवनानी को मंत्रिमंडल से बाहर किया जाएगा और उनकी जगह कृपलानी को मिलेगी, लेकिन संघ के विरोध से बचने के लिए ऐसा नहीं किया गया। देवनानी न सिर्फ संघनिष्ठ हैं बल्कि स्कूली शिक्षा जैसा अहम मंत्रालय भी उनके पास है, जिसमें संघ की विशेष रूचि है। बहरोड़ (अलवर) विधायक डॉ. जसवंत यादव को भी राजस्थान कैबिनेट में जगह दी गई है। तीसरी बार विधायक बने यादव मूल रूप से कांग्रेसी हैं। वे कांग्रेस के टिकट पर अलवर से लोकसभा का चुनाव भी जीत चुके हैं। वसुंधरा राजे ही उन्हें भाजपा में लेकर आई थीं। पिछले लोकसभा चुनाव में उन्होंने अलवर से भाजपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन वे कांग्रेस की चंद्रेश कुमार से हार गए थे। विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें बहरोड़ से उम्मीदवार बनाया जहां से वे जीतने में सफल रहे। मंत्रिमंडल विस्तार में उनका नाम तय माना जा रहा था, क्योंकि यादव समाज का एक भी विधायक मंत्रिमंडल में शामिल नहीं था। राज्य के जयपुर, अजमेर, बीकानेर, कोटा व भरतपुर संभाग यादव बाहुल्य क्षेत्र हैं।
राज्य मंत्रियों की बात करें तो बंशीधर बाजिया, कमसा मेघवाल, धन सिंह रावत व सुशील कटारा को वसुंधरा खेमे का ही माना जाता है। बाजिया को जाट समाज को साधने के लिए मंत्री बनाया है जबकि मेघवाल, रावत व कटारा को दलित-आदिवासी समीकरणों को दुरुस्त करने के लिए मंत्रिमंडल में शामिल किया है। उल्लेखनीय है कि खंडेला (सीकर) विधायक बंशीधर बाजिया की शेखावाटी के जाटों में, भोपालगढ़ (जोधपुर) विधायक कमसा मेघवाल की मारवाड़ के मेघवाल समाज में, बांसवाड़ा विधायक धन सिंह रावत व चैरासी (डूंगरपुर) विधायक सुशील कटारा की वागड़ के आदिवासी समाज में अच्छी पकड़ मानी जाती है।
सत्ता पर मुख्यमंत्री का पूर्ण नियंत्रण
मंत्रिमंडल विस्तार व फेरबदल में शामिल नामों के विश्लेषण से यही साबित होता है कि राजस्थान की सत्ता पर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का पूर्ण नियंत्रण है। केंद्रीय नेतृत्व और संघ का इसमें कोई दखल नहीं है। गौरतलब है कि मंत्रिमंडल में जो मंत्री पहले से शामिल हैं उनमें से सिर्फ गुलाब चंद कटारिया, कालीचरण सराफ और वासुदेव देवनानी ही संघनिष्ठ हैं। इनमें से कटारिया विधानसभा चुनाव से पहले ही वसुंधरा विरोधी खेमे को छोड़ सार्वजनिक रूप से उनके समर्थन में आ गए थे। जबकि सराफ राजस्थान में राजे के आगमन के समय ही उनके खेमे में शामिल हो गए थे। यानी पूर्णत: संघ कोटे से सिवाय वासुदेव देवनानी के एक भी मंत्री नहीं है। यदि मंत्रिमंडल विस्तार व फेरबदल में केंद्रीय नेतृत्व या संघ का दखल होता तो घनश्याम तिवाड़ी, नरपत सिंह राजवी, राव राजेंद्र सिंह, रामहेत यादव, फूल चंद भिंडा व बनवारी लाल सिंघल सरीखे वरिष्ठ विधायक निश्चित रूप से मंत्रिमंडल का हिस्सा होते। रही बात संगठन की तो उसकी कमान तो पहले से ही राजे के हाथों में है। प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी न सिर्फ उनकी पसंद के हैं, बल्कि उनकी मर्जी के बिना एक कदम आगे-पीछे तक नहीं होते हैं। यानी राजस्थान भाजपा में बिना वसुंधरा की मर्जी के पत्ता भी नहीं हिलता।
-जयपुर से आर.के. बिन्नानी