चीन को चौतरफा घेरने की जरूरत
17-Dec-2016 07:21 AM 1234755
हार्ट ऑफ एशिया सम्मेलन में पाकिस्तान को अलग-थलग करने के बाद मोदी सरकार को अब अपनी ऊर्जा चीन को यह बात समझाने में खर्च करनी चाहिए कि यदि पाकिस्तान आतंकवाद के संबंध में अपनी नीति यूं ही जारी रखता है तो दीर्घकाल में चीन के हित भी प्रभावित होंगे। आतंकवाद और अतिवाद एक ऐसा क्षेत्र है, जहां चीन और भारत एक साथ मिलकर काम कर सकते हैं। इसलिए भारत को इस मौके का फायदा उठाना चाहिए। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कूटनीति के साथ ही एक बेहतर रणनीति बनाकर काम करने की जरूरत है। उल्लेखनीय है कि चीन 46 अरब डॉलर लागत वाले अपने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के तहत निर्मित ग्वादर बंदरगाह और कारोबारी मार्ग की सुरक्षा के लिए पाकिस्तान की नौसेना के साथ मिलकर अरब सागर में नौसैनिक जहाज उतारने की तैयारी कर रहा है। यदि यह कार्यक्रम तय योजना के तहत आगे बढ़ा तो पाकिस्तान में चीन की दीर्घकालिक उपस्थिति सुनिश्चित हो जाएगी। इससे चीनी नौसेना को पहली बार हिंद महासागर और अरब सागर में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने का मौका मिल जाएगा। चीन एक सोची-समझी रणनीति के तहत क्षेत्र में अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा है। वहीं पाकिस्तान भी भारत की बढ़ती नौसैनिक ताकत को संतुलित करने के लिए प्रयासरत है। चीन की हमेशा से मंशा थी कि वह अरब सागर में एक सामरिक धुरी कायम करे और ग्वादर ने उसे यह आकर्षक विकल्प मुहैया कराया है। हालांकि कहा जा रहा है कि बलूचिस्तान में बढ़ती मुश्किलों और नई दिल्ली तथा वाशिंगटन के संभावित विरोध के चलते ग्वादर में चीन की भूमिका हमेशा सीमित रहेगी। इसके बावजूद चीन ग्वादर में अपनी धमक दर्ज कराने को तैयार है। ग्वादर बंदरगाह पाकिस्तान की अक्षमता के कारण सालों से बंद पड़ा था। यह उसकी वाणिज्यिक विफलता का जीता-जागता सबूत था, लेकिन चीन की मदद से इसे 2007 में खोला गया था। इसके लिए चीन ने शुरू में 20 करोड़ डॉलर फंड मुहैया कराया था। हालांकि पूर्व में चीन ने ग्वादर बंदरगाह में अपनी भूमिका के बारे में खुलकर बात नहीं की, लेकिन पाकिस्तान के सत्ता प्रतिष्ठान के कई लोगों ने चीन को वहां सैन्य अड्डा बनाने के लिए खुला आमंत्रण दिया। चीन अपनी तेल संबंधी जरूरतों के लिए भी निश्चिंत होना चाहता है। उसके 80 प्रतिशत तेल का आयात होर्मुज जलडमरू के रास्ते से होता है। वह नहीं चाहता है कि ऊर्जा तक अबाधित पहुंच के लिए उसे अमेरिकी नौसैनिक ताकत पर निर्भर रहना पड़े। इसी वजह से चीन फारस की खाड़ी से लेकर दक्षिण चीन सागर तक समुद्री रास्ते के मुख्य बिंदु पर नौसैनिक अड्डा बनाना चाह रहा है। इस लक्ष्य को हासिल करने हेतु ग्वादर पोर्ट उसके लिए सबसे मुफीद है। अरब सागर के शीर्ष पर होर्मुज के जलडमरू से 400 किमी की दूरी पर स्थित यह बंदरगाह चीन के लिए बड़ी ताकत बन सकता है। वहीं चीन व पाक ग्वादर पोर्ट से चीन के शिनजियांग प्रांत तक 3000 किमी लंबा आर्थिक गलियारा बनाने में व्यस्त हैं। इसके बन जाने के बाद चीन की सामरिक स्थिति और मजबूत हो जाएगी। भारतीय कूटनीति के लिए पाकिस्तान को चीन से अलग करना एक चुनौतीपूर्ण काम होगा, क्योंकि दोनों की मंशा एकजुट होकर भारत को कई मोर्चों पर असफल करना है। आतंकवाद और अतिवाद एक ऐसा ही क्षेत्र है, जहां चीन व भारत एक साथ मिलकर काम कर सकते हैं। 40 देशों वाले हॉर्ट ऑफ एशिया सम्मेलन में पाक को अलग-थलग करने के बाद मोदी सरकार को अब अपनी ऊर्जा चीन को यह बात समझाने में खर्च करनी चाहिए कि यदि पाक आतंकवाद के संबंध में अपनी नीति यूं ही जारी रखता है तो दीर्घकाल में चीन के हित भी प्रभावित होंगे। अफगानिस्तान ने पाकिस्तान को दिया करारा जवाब भारत एक और अंतरराष्ट्रीय मंच पर (इस बार अमृतसर में हॉर्ट ऑफ एशिया सम्मेलन में) पाकिस्तान को अलग-थलग करने में कामयाब रहा। इस दो दिवसीय सम्मेलन में एक संयुक्त घोषणापत्र भी जारी हुआ जिसमें आतंकवाद के खात्मे, क्षेत्र में आतंकी संगठनों और इनके सुरक्षित ठिकानों को नेस्तनाबूद करने तथा आतंकी जमातों को मिलने वाली वित्तीय, रणनीतिक और साजोसामान संबंधी सहायता को छिन्न-भिन्न करने के लिए क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की अपील की गई। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने सीधे-सीधे पाकिस्तान और दुनिया को कड़ा संदेश भी दिया कि जब तक क्षेत्र में शांति नहीं होती हम 500 मिलियन डॉलर की पाकिस्तानी सहायता से अफगानिस्तान के विकास की उम्मीद नहीं कर सकते। अफगानिस्तान जिस आतंकवाद से तबाह हुआ है उसे पाकिस्तान पोषित कर रहा है। -माया राठी
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