कैशलेस भारत होगा कैसे...
17-Dec-2016 07:19 AM 1234835
नोटबंदी के बाद की बदहाली अभी खत्म ही नहीं हुई है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कैशलेस का राग अलाप दिया है। किसी को यह समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर मोदी को नोटबंदी और कैशलेस भारत के सपने कहां से आ रहे हैं। अभी तक नोटबंदी में पूरी तरह विफल रहे मोदी कह रहे हैं कि देश में 70 सालों से कतारें लग रही हैं। कभी चीनी के लिए, कभी मिट्टी तेल के लिए। तो इन कतारों को खत्म करने के लिए आखिरी बार कतार लगाई है। वैसे बहुत से लोगों के लिए तो यह सचमुच अंतिम कतार ही साबित हुई, क्योंकि वे तथाकथित सुनहरा भविष्य देखने के लिए जिंदा ही नहीं बचे। अब जो बचे हैं वे भ्रमित हैं कि अपना पैसा निकालने की कतार खत्म होगी, तो इसके बाद और किन चीजों के लिए इंतजार करना पड़ेगा। क्योंकि मोदी सरकार के फैसले लोगों पर भारी पडऩे लगे हैं। इनमें ताजा मामला कैशलेस इंडिया का है। क्या कैशलेस इंडिया होने से सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए कतार भी खत्म हो जाएगी या रोजगार दफ्तरों में अर्जियों की कतार खत्म होगी या अच्छी शिक्षा के लिए कतार में नहीं खड़ा होना पड़ेगा या रेलवे की टिकट खिड़कियों के आगे कतार नहीं लगेगी या महंगे होते खाद्यान्न की सूची छोटी होगी या आत्महत्या करते किसानों की संख्या काऊंटलेस होगी, अनंत होगी या अंत पर पहुंंचेगी? यह सवाल भले ही उठ रहे हैं, लेकिन सरकार जवाब देने की स्थिति में नहीं है। आखिर हो भी कैसे? देश की आबादी सवा सौ करोड़ के पार पहुंच गई है, लेकिन इस समय भारत में 46.2 करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं यानी आबादी का 34.9 प्रतिशत। इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार गांवों में मोबाइल इंटरनेट की पहुंच 9 प्रतिशत ही है। शहरों में अधिक है 53 प्रतिशत। ऐसे में कैशलेस इंडिया कैसे हो पाएंगी। सारे तथ्य सामने होने के बाद भी प्रधानमंत्री मोदी नकद लेन देन से देश को मुक्ति दिलाने की कोशिश कर रहे हैं और इसके लिए उनका सुझाव है कि मोबाइल के जरिए ही खरीद-फरोख्त की जाए। मानो मोबाइल का इस्तेमाल होगा तो देश में बेईमानी, भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा। क्या उनसे पूछने की गुस्ताखी की जा सकती है कि ई-वालेट या मोबाइल बटुए का संचालन ईमानदार लोगों के हाथ में है, यह उन्होंने किस तरह सुनिश्चित किया है? क्या सरकार इन पर निगरानी रखेगी और निगरानी करने वालों की ईमानदारी का पैमाना कौन तय करेगा? आज अगर दस कंपनियां ई-वालेट के व्यापार में हैं तो कल सौ खड़ी होंगी, उनके बीच व्यापारिक प्रतिद्वंद्विता बढ़ेगी और इसमें गलत तरीकों का इस्तेमाल नहीं होगा, इस बात की क्या गारंटी है। मान लिया कि सरकार डिजिटल इंडिया बनाने के लिए अधिक से अधिक लोगों तक इंटरनेट पहुंचाएगी, तो क्या अगला कदम सबको स्मार्टफोन रखने पर मजबूर करना होगा? अभी स्मार्टफोन केवल 17 प्रतिशत भारतीयों के पास हैं, इसमें कम आय वाले सात प्रतिशत लोग हैं तथा अमीरों में 22 प्रतिशत लोगों के पास है। मोबाइल इंटरनेट की धीमी गति भी एक बड़ी समस्या है। भारत में पेज लोड होने का औसत समय 5.5 सेकेंड है, जो श्रीलंका और बांग्लादेश में क्रमश: 4.5 और 4.9 सेकेंड है। इन तकनीकी समस्याओं का हल निकल भी आएगा, लेकिन साइबर क्राइम जैसी बड़ी परेशानी से निपटने सरकार की क्या तैयारियां हैं? कुछ दिनों पहले महाराष्ट्र में इंटरनेट फर्जीवाड़े का बड़ा मामला सामने आया था, जिसमें विदेश में बसे भारतीयों से ठगी की गई थी। हैकिंग का खतरा इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों पर हमेशा ही मंडराता है। मोबाइल पर होने वाले साइबर अपराध की तादाद लगातार बढ़ रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि कंप्यूटर पर होने वाले अपराध मोबाइल पर और आसानी से किए जा सकते हैं।  मोबाइल फोन बहुत अधिक सुरक्षित नहीं है, हैकर्स इसकी सुरक्षा में आसानी से सेंध लगा सकते हैं। मोबाइल वॉलेट से भी पॉकेटमारी हो सकती है। कई ऐप आपकी जानकारी या इजाजत के बिना आपका डाटा बाहर भेजते रहते हैं। आपकी लोकेशन को कैप्चर करते हैं। हैकर्स ग्राहकों के तमाम कोड, पास वर्ड, बैंक के विवरण दूसरों को दे सकते हैं, यह आशंका बनी रहती है। मोबाइल पर जाने अनजाने लोगों के संदेश या ईमेल आते रहते हैं, जिनमें वायरस भी हो सकते हैं। साइबर अपराधी जानते हैं कि मोबाइल में वायरस घुसाना आसान है। पर क्या साइबर अपराध रोकने की सरकारी मशीनरी जानती है कि देश के 125 करोड़ लोग जब केवल मोबाइल के जरिए लेन-देन करेंगे तो इतने बड़े पैमाने पर सुरक्षा किस तरह उपलब्ध कराई जाएगी?  मोदीजी के पास, भाजपा के पास बड़ी भारी साइबर टीम हो सकती है, पर क्या देश का आम आदमी भी इतना सुविधा संपन्न होने का आनंद उठा पाएगा? अभी हाल में राहुल गांधी और उसके बाद कांग्रेस का ट्विटर एकाउंट हैक हुआ। ऐसे में आम आदमी अपनी इंटरनेट सुरक्षा के लिए किस तरह आश्वस्त होगा? अभी तो वह अपने पैसे की सुरक्षा को लेकर ही घबराया हुआ है। नरेन्द्र मोदी ने बड़ी आसानी से जनधन खाताधारकों से कह दिया कि जितने पैसे उनके खाते में आए हैं, कोई कितना भी दबाव डाले, उसे नहीं निकाले। क्या इस तरह से वे गरीबों को गलत तरीके से रखा धन रखने के लिए उकसा नहीं रहे हैं और क्या गरीब सचमुच इतना ताकतवर है कि वह किसी के दबाव में नहीं आएगा। जब 13 हजार करोड़ रुपए रखने वाले महेश शाह कह रहे हैं कि यह धन नेताओं, बाबुओं और बिल्डर्स का है और शायद किसी दबाव के कारण ही वे फरार रहे तो जनधन खाता खोलने वाले गरीब की क्या बिसात? ऑनलाइन भुगतान को धोखाधड़ी से बचाने के लिए किए गए सभी सुरक्षा उपायों को तोडऩे में सफलता हासिल करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि महज छह सेकेंड में कोई हैकर आपके क्रेडिट और डेबिट कार्ड की संख्या, उसकी मान्यता समाप्त होने की जानकारी और सुरक्षा कोड का अनुमान लगा सकता है। स्वचालित रूप से और प्रणाली के जरिये कार्ड की सुरक्षा से जुड़ी विभिन्न तरह की जानकारी इकट्ठा करके और विभिन्न वेबसाइटों पर इन जानकारियों को डालकर कुछ सेकेंड के भीतर ही हैकर सुरक्षा संबंधी सभी आवश्यक आंकड़े जुटा सकते हैं। अनुसंधानकर्ताओं का मानना है कि अनुमान लगाकर हमला करने के इस तरीके का उपयोग हाल ही के टेस्को साइबर हमले में किया गया। न्यूकासल की टीम का मानना है कि अगर आपके पास एक लैपटॉप और इंटरनेट कनेक्शन है तो यह काम बहुत ही आसान है। न्यूकासल विश्वविद्यालय के पीएचडी के छात्र मोहम्मद अली ने कहा, इस तरह के हमले से दो कमजोरियों का पता लगता है जो अपने आप में बहुत गंभीर नहीं हैं, लेकिन दोनों का इस्तेमाल अगर एक साथ किया जाए तो वे पूरे भुगतान प्रणाली के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं। अली ने कहा, वर्तमान भुगतान प्रणाली विभिन्न वेबसाइटों के जरिये किए जाने वाले भुगतान के कई अमान्य अनुरोधों का पता नहीं लगा पाती है।   ऐसे में मोदी सरकार का कैशलेस का एजेंडा आम आदमी पर भारी न पड़ जाए। वैसे भी भारत में साइबर क्राइम दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। 24 घंटे नोट छपाई फिर भी टारगेट से दूर मोदी 50 दिन में लोगों को नोटबंदी की समस्या से निजात दिलाने की बात कर रहे हैं, लेकिन देवास नोट प्रेस में 24 घंटे नोट छपाई के बाद भी रोजाना 10-12 मिलियन पांच सौ के नोट छप रहे हैं। जबकि 36 सौ मिलियन नोट छापने की जरूरत है। अनुमान लगाया जा रहा है कि इस गति से 31 दिसंबर तक देवास नोट प्रेस में 1 हजार मिलियन नोट ही छप पाएंगे। ऐसे में सरकार जनता को राहत कैसे दे पाएंगी। यहां 500 रुपए का नया नोट के साथ ही अब 100 रुपए का नोट भी चौथी मशीन पर छपना शुरू हो गया है। नोट प्रेस की चारों मशीनें अब 24 घंटे नए नोटों की छपाई में जुट गई हैं। कई सेवानिवृत्त कर्मचारियों के अलावा सेना के जवानों ने भी काम शुरू कर दिया है। 15 लाख करोड़ रुपए मूल्य के 500 और 1000 के नोटों को चलन से बाहर करने के बाद एकाएक नकदी का संकट खड़ा हो गया, जिसके चलते अब कैशलेस का राग अलापा जा रहा है। 500 और 2000 के नए नोट के अलावा 50 और 100 रुपए के नोटों की भी जरूरत इसलिए अधिक पड़ रही है, क्योंकि बड़े नोटों के छुट्टे की दिक्कत है। अभी देशभर में जो 500 के नोट दिए जा रहे हैं उनकी पूरी छपाई देवास नोट प्रेस में ही हो रही है और वायुसेना के विमानों द्वारा इन नोटों को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के 4000 से ज्यादा करंसी चेस्ट सेंटरों में भिजवाई जाती है, जहां से ये बैंकों और डाकघरों को बांटे जाते हैं। प्रेस में कार्यरत 1175 कर्मचारी तो ओवरटाइम में भी काम कर रहे हैं।  वर्तमान में जो लक्ष्य है उसके मुताबिक अगले 3-4 महीने तक इसी रफ्तार से देवास नोट प्रेस को 500 और 100 के नोट छापना पड़ेंगे। -इन्द्रकुमार बिन्नानी
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