17-Dec-2016 07:09 AM
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पिछले तेरह साल में कांग्रेस में एक ही सवाल उठ रहा है कि प्रदेश में पार्टी की बर्बादी के लिए असली विलेन कौन हैं? लेकिन इस सवाल का जवाब कोई नहीं दे पा रहा था। लेकिन विवादों में फंसी इंदौर की जिला शहर कांग्रेस कमेटी के भंग होने के बाद पार्टी में चोरी छुपे ही लेकिन यह बात चर्चा में आ गई है कि दिग्विजय सिंह ही पार्टी को इस मुकाम तक पहुंचाने वाले किरदार हैं। दरअसल 1500 पदाधिकारियों वाली इंदौर जिला कांग्रेस कमेटी में दिग्विजय सिंह और उनके विधायक पुत्र जयवर्धन सिंह की अनुशंसा पर हुई कुछ नियुक्तियों के कारण विवाद इतना बढ़ गया कि पीसीसी को जिला कार्यकारिणी भंग करनी पड़ी।
कांग्रेस के बड़े नेता कांग्रेस के आम कार्यकर्ता को तो अनुशासन की घुट्टी खूब पिलाते हैं, लेकिन जब खुद की बारी आती है तो सब भूल जाते हैं। दिग्विजय सिंह पर तो कांग्रेसी खुलेआम आरोप लगा रहे हैं कि वे केवल कांग्रेस के बागियों की ही मदद करने में रुचि लेते हैं। पहले उन्होंने इंदौर के एक नंबर विधानसभा क्षेत्र के कार्यकर्ताओं को भड़का दिया। जब कांग्रेस प्रत्याशी के खिलाफ बगावत कर चुनाव लडऩे वाले और कांग्रेस से निष्कासित कमलेश खंडेलवाल को दिग्विजय सिंह ने अपनी राज्यसभा निधि से बोरिंग के लिए 10 लाख रुपए दे दिए। एक नंबर में इस जानकारी के बाद से ही घमासान मच गया। कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव लडऩे वाले दीपू यादव ने विरोध का झंडा उठा लिया और तय हुआ कि जब तक दिग्विजय सिंह यह राशि वापस नहीं लेते, एक नंबर का कांग्रेसी शहर कांग्रेस के कार्यक्रम में ही नहीं जाएगा, लेकिन बाद में जैसे-तैसे एक नंबर के कांग्रेसी माने, लेकिन दिग्विजय सिंह ने वह राशि वापस नहीं ली।
इसके पहले भी नगर निगम चुनाव जब हुए थे तो उन्होंने खजराना के एक वार्ड को तोड़कर बनाए गए दो वार्डों में से एक वार्ड में अपनी पसंद के प्रत्याशी मोहम्मद गौरी को टिकट दिलवा दिया, जबकि वहां कई स्वाभाविक दावेदार थे। बाद में दिग्विजय सिंह ने तर्क दिया कि व्यापमं घोटाले में बहुत मदद करने वाले एक शख्स के कहने पर उन्होंने गौरी को टिकट दिया था। गौरी परिवार के आयोजन में भी वे आते रहे और गौरी को उन्होंने हाल ही में अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ का जिम्मा भी दिलवा दिया। यह तो बात हुई दिग्विजय सिंह की। अब उनके विधायक पुत्र जयवर्धन सिंह भी पिता के ही रास्ते पर चल पड़े हैं। जयवर्धन सिंह ने हाल ही में शहर कांग्रेस में एक विवादास्पद नियुक्ति करवा दी। खजराना क्षेत्र से कांग्रेस से बगावत कर दूसरी बार इकबाल खान चुनाव जीते हैं। कहा जा रहा है कि उनका पूरा परिवार कांग्रेस से निष्कासित है, लेकिन जयवर्धन सिंह ने इकबाल खान के बेटे शाहनवाज को शहर कांग्रेस अध्यक्ष प्रमोद टंडन पर दबाव डालकर शहर कांग्रेस का महामंत्री बनवा दिया। टंडन ने जैसे ही नियुक्ति की, सोशल मीडिया पर शाहनवाज को बधाइयां शुरू हुईं। खजराना क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े सैयद वाहिद अली सक्रिय हो गए। उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व को टंडन के इस कदम की शिकायत की और कहा कि जिन्होंने कांग्रेस की पीठ में छुरा घोंपा है उन्हें कांग्रेस में नियुक्ति कैसे दी जा रही है? वाहिद अली की शिकायत का असर हुआ और ताबड़तोड़ शाहनवाज की नियुक्ति रद्द हो गई। इसी तरह कई अन्य नियुक्तियां बिना पीसीसी की अनुमति के की गई। जिसके कारण कार्यकारणी को भंग करना पड़ा।
सीधी नियुक्ति का अधिकार नहीं
प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी महामंत्री चंद्रिका द्विवेदी कहते हैं कि प्रमोद टंडन ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की सहमति और जानकारी के बगैर नियुक्तियां की थीं, इस कारण जिला कार्यकारिणी भंग करनी पड़ी। वह कहते हैं कि कांग्रेस में सीधी नियुक्ति का अधिकार किसी को नहीं है। उधर प्रमोद टंडन का कहना है कि पार्टी लंबे समय से ही विपक्ष में है। हमारे पास नेताओं को देने के लिए कुछ नहीं है। हम सक्रियता बनाए रखने के लिए दमदार कांग्रेसियों को केवल मान-सम्मान के रूप में नियुक्ति का एक कागज दे सकते हैं और वही काम मैंने किया। वहीं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव का कहना है कि जल्द ही इंदौर शहर जिला कार्यकारिणी का गठन कर लिया जाएगा। लेकिन यह आसान नहीं होगा। क्योंकि कांग्रेस में हमेशा से स्थानीय स्तर पर तीन गुट रहे हैं और यह गुट प्रदेश में भी तीन खेमों में बंट जाते हैं। लंबे समय से शहर में दिग्गी, सिंधिया और कमलनाथ इन तीनों खेमों के झंडाबरदार रहे हैं। पिछले तीस साल की राजनीति पर गौर करें तो सेठी के जाने के बाद से अर्जुनसिंह खेमा सबसे ज्यादा ताकत में रहा है। आज जो भी दिग्विजय सिंह के साथ हैं वे सब पहले अर्जुन सिंह के साथ हुआ करते थे।
-भोपाल से अरविंद नारद