2022 से पहले नहीं दौड़ेगी मेट्रो ट्रेन
17-Dec-2016 07:06 AM 1234843
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को बुलेट ट्रेन की सवारी करने का सपना दिखा रहे हैं, लेकिन मध्यप्रदेश में उनकी ही पार्टी की सरकार पिछले 8 साल में मेट्रो ट्रेन चलाने का खाका तैयार नहीं कर सकी। जबकि 2 साल 2 महीने के रेकॉर्ड समय में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मेट्रो ट्रायल के लिए ट्रैक पर आ गई, लेकिन भोपाल-इंदौर में मेट्रो रेल कब चलेगी यह सवाल बना हुआ है। यह सवाल इसलिए भी उठ रहा है कि मध्यप्रदेश में मेट्रो रेल प्रोजेक्ट पर काम उत्तरप्रदेश से कई वर्ष पहले शुरू हुआ था। लेकिन भोपाल और इंदौर की मेट्रो रेल तो अभी फाइलों से नीचे ही नहीं उतर पाई है। अब सरकार ने मान लिया है कि 2021 से पहले भोपाल में मेट्रो शुरू नहीं हो सकती। यानी 2022 में ही मेट्रो का सपना पूरा हो सकता है। ज्ञातव्य है कि उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मेट्रो ट्रेन का ट्रायल शुरू हो गया है।  लखनऊ से पहले देश के 7 अन्य शहरों (कोलकाता, दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, जयपुर, गुडग़ांव और चेन्नई) में मेट्रो सुविधा शुरू हो चुकी है। यही नहीं देशभर के कई अन्य शहरों में भी इस आधुनिक परिवहन सुविधा को शुरू करने की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। लेकिन भोपाल और इंदौर मेट्रो के लिए अभी कागजी कार्रवाई भी पूरी नहीं हो पाई है। सरकार की तरफ से फैसलों में देरी की वजह से बीते आठ साल से हमारी मेट्रो ट्रेन कागजों में ही रेंग रही है। अब तक 20 करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी सरकार महज 15 हजार पेजों का एक दस्तावेज तैयार कर पाई है। यह भी तब जब खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जुलाई 2015 में काम शुरू होने की डेडलाइन तय की थी। 30 नवंबर, 2015 को तत्कालीन मुख्य सचिव अंटोनी डिसा ने भी एक बैठक में यही बात दोहराई। फिर लक्ष्य बदलते हुए मार्च 2016 कर दिया गया और दावा किया कि साल 2018 में लाइट मेट्रो ट्रेन का पहला चरण पूरा कर लिया जाएगा। लेकिन इसके लिए जो टाइम लाइन फिक्स की गई, उसमें मास्टर प्लान में संशोधन, मेट्रोपॉलिटन एरिया का ऐलान, कसल्टेंट की नियुक्ति समेत कुछ भी नहीं हुआ। ज्ञातव्य है कि मुख्यमंत्री ने वर्ष 2013 में विधानसभा चुनाव में भोपाल और इंदौर में इस प्रोजेक्ट का वादा किया था। इसी वजह से इसे विजन 2018 में भी रखा गया। लेकिन अफसरों की लेटलतीफी के कारण योजना अधर में लटकी हुई है। यही नहीं मेट्रो के कारण विकास की कई योजनाएं लटकी हुई हैं। राजधानी भोपाल में सरकार ने लाइट मेट्रो के रूट वाले क्षेत्र फ्लाई ओवर, आरओबी, ग्रेड सेपरेटर, फुट ओवर ब्रिज समेत अन्य निर्माण कार्यों पर रोक लगाई हुई है। इसी वजह से निगम को 24 एफओबी और बीडीए को बोर्ड ऑफिस का ग्रेड सेपरेटर रद्द करना पड़ा है। यूपी और राजस्थान के मुकाबले मप्र मेट्रो रेल प्रोजेक्ट की प्लानिंग वर्ष 2009 से ही शुरू हो गई थी। करीब 7 साल बीतने के बाद भी राज्य की सरकार प्रोजेक्ट के लिए पैसे नहीं जुटा पाई है। जायका के इंकार के बाद सरकार ने एडीबी और यूरोपियन इंवेस्टमेंट बैंक से संपर्क साधा है, लेकिन ये दोनों संस्थाएं भी हमारे प्रोजेक्ट को गंभीरता से नहीं ले रही हैं। मेट्रो प्रोजेक्ट के कर्ज में राज्य अंशदान को शामिल करने पर केंद्र सरकार ने भी आपत्ति जताई है। इतने पेंच सामने आने के बाद एमपी मेट्रो रेल कार्पोरेशन ने प्रोजेक्ट का फंडिंग प्रपोजल दोबारा तैयार करने का फैसला लिया है। कैबिनेट अप्रूवल के बाद नया प्रस्ताव दोबारा केंद्रीय नगरीय प्रशासन मंत्रालय भेजा जाएगा। कागजी खानापूर्ति, जमीन के अधिग्रहण सहित दूसरे मुद्दों को सुलझाने में अगले पांच साल का वक्त आसानी से बीत जाएगा। उल्लेखनीय है कि 2007 में तत्कालीन नगरीय प्रशासन मंत्री बाबूलाल गौर ने भोपाल-इंदौर में मेट्रो का ऐलान किया था। पहले दिल्ली मेट्रो कारपोरेशन से डीपीआर बनवाई गई। फिर उसे रद्द करके जायका कंपनी को काम दिया गया। सरकार ने वर्ष-2018 में मेट्रो चलाने का ऐलान किया, फिर विधानसभा में जब पूर्व मंत्री बाबूलाल गौर ने मेट्रो की धीमी रफ्तार पर सरकार को घेरा तो नगरीय प्रशासन मंत्री माया सिंह ने वर्ष-2022 में मेट्रो चलाने का लक्ष्य बताया। जो इस बात का संकेत है कि सरकार जिन अफसरों के भरोशे मेट्रो चलाने की बात कह रही है वे अनाड़ी हैं। ज्ञातव्य है कि मेट्रो रेल कार्पोरेशन के एमडी गुलशन बामरा के तबादले के बाद आईएएस विवेक अग्रवाल एमडी बने। तब से ही प्राजेक्ट लडख़ड़ाने लगा। आलम यह है कि तभी से भोपाल और इंदौर में प्रस्तावित 15 हजार करोड़ की लागत वाले मेट्रो प्रोजेक्ट पर अफसर गफलत में हैं और सरकार सांसत में। किसी को भी नहीं सूझ रहा कि आखिर मेट्रो ट्रेन के लिए रकम कहां से जुगाड़ें? यही वजह है कि 8 दिसंबर को विधानसभा में सरकार इस मामले में घिरी नजर आई। पूर्व नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री बाबूलाल गौर ने अपनी ही सरकार को सवालों के कटघरे में खड़ा किया। दरअसल, अफसरों ने मेट्रो के लिए जापान की फंडिंग एजेंसी जायका द्वारा कर्ज देने से इंकार के बाद यूरोपियन इनवेस्टमेंट बैंक (ईआईबी) से कर्ज लेने का प्रस्ताव तैयार किया है, लेकिन कैबिनेट की अनुमति के इंतजार में फाइल अटकी हुई है। दरअसल, जायका से 0.03 प्रतिशत की ब्याज दर पर कर्ज देने पर एमओयू हुआ था। लेकिन दूसरी एजेंसियों को 2 से 6 प्रतिशत ब्याज दर चुकानी होगी। जो कई गुना महंगा हो जाएगा। इससे सरकार में संशय की स्थिति है। जिससे पिछले एक महीने से प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ा। पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने सवाल उठाया है कि इस गति से काम चलता रहा तो भोपाल में कभी मेट्रो ट्रेन नहीं चल पाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि अब तक 26 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं और कुछ भी नहीं मिला। उधर मेट्रो रेल कार्पोरेशन के एमडी विवेक अग्रवाल का कहना है कि जायका के मना करने के बाद भोपाल-इंदौर के मेट्रो प्रोजेक्ट पर वित्तीय सहायता के लिए एडीबी एवं यूरोपियन बैंक से चर्चा चल रही है। जैसे ही वित्तीय सहायता मंजूर होती है काम तेजी से आगे बढग़ा। भोपाल-इंदौर मेट्रो की कहानी आंकड़ों की जुबानी 2009 में नगरीय प्रशासन में मेट्रो की फाइल चलनी शुरू हुई, अप्रैल 2010 में डीएमआरसी से प्री फिजिबिलिटी के लिए करार, दिसंबर 2011 में डीएमआरसी ने रिपोर्ट सौंपी। मार्च 2012 में डीएमआरसी की बजाय ग्लोबल टेंडर देने का फैसला, अक्टूबर 2012 में नई कंपनी से डीपीआर बनाने की प्रक्रिया शुरू, मई 2013 में एलआरटीसी को दिया काम। सितंबर 2013 में कंपनी ने मोड बताया लेकिन गौर ने विधानसभा चुनाव के बाद तक फैसला रोका। फिर फरवरी 2014 में कंपनी की अंतरिम रिपोर्ट मंजूर हुई, जून 2014 तक कंपनी रिपेार्ट मंजूरी का इंतजार करती रही। अक्टूबर 2014 में फाइनल रिपोर्ट तैयार, जनवरी 2015 में मेट्रो कंपनी के गठन की प्रक्रिया शुरू, अक्टूबर 2015 में जायका से लोन लेने का फैसला फरवरी 2016 में जायका की टीम आई। मई 2016 में नवंबर तक जायका ने लोन मंजूर करने की बात कही। लेकिन उसके बाद भी मेट्रो रेल के चलाने की प्रक्रिया केवल कागजों पर ही चल रही है। अब स्थिति यह है कि अधिकारी कर्ज मिलने की आस में हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। यानी लोन मिलेगा तभी काम होगा। ऐसे अटक गई अपनी मेट्रो द्य    भोपाल में कुल 95.03 किलोमीटर होगा मेट्रो ट्रेन का रूट द्य    इसमें से 84.83 किलो मीटर ऐलिवेटेड होगी। द्य    भोपाल मेट्रो रेल परियोजना की कुल लागत 22504.25 करोड़ द्य    प्रथम चरण में करोंद से एम्स तक 14.99 किमी, भदभदा से रत्नागिरी तक 12.88 किमी।  लागत 6962 करोड़ रुपए  इसके लिए जायका से 0.3 प्रतिशत पर लोन लेने की कवायद शुरू हुई थी। द्य    2016 जनवरी : जायका को मेट्रो प्रोजेक्ट की डीपीआर पर आपत्ति, लोन अटका द्य    सितंबर 2016 : एडीबी से 2.0 प्रतिशत पर लोन लेने की तैयारी। अफसरों ने उलझा दी इंदौर-भोपाल की मेट्रो : गौर राजस्थान के बाद उत्तरप्रदेश के लखनऊ में मेट्रो ट्रेन संचालन शुरू होने के बाद पूर्व नगरीय प्रशासन मंत्री बाबूलाल गौर ने मध्यप्रदेश के आईएएस अफसरों की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं। गौर ने कहा कि मेट्रो ट्रेन मध्यप्रदेश में भी शुरू हो जाती पर प्रदेश के आईएएस अफसरों की प्लानिंग ने इसका कबाड़ा कर दिया। गौर का कहना है कि मंत्री रहने के दौरान उनके द्वारा डीएमआरसी के माध्यम से मेट्रोमेन ई श्रीधरन के निर्देशन में काम शुरू कराने की कोशिश की गई थी पर एमपी के अफसरों ने कहा कि हम दिल्ली से अच्छी मेट्रो बनाएंगे। -सुनील सिंह
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