17-Nov-2016 06:20 AM
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9/11 विश्व इतिहास में दो घटनाओं के लिए हमेशा याद किया जाएगा। पहली घटना अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप का राष्ट्रपति बनना और दूसरी घटना भारत में नोटबंदी। ट्रंप का प्रभाव अमेरिका या विश्व पर तो बाद में पड़ेगा लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पांच सौ और हजार रुपए के नोट बंदी का असर तत्काल पडऩा शुरू हो गया है। सरकार ने यह कदम आतंकवाद, भ्रष्टाचार और कालेधन पर अंकुश लगाने के लिए किया है। क्योंकि भारत में भ्रष्टाचार के कारण कालाधन इतना जमा हो गया है जिससे आतंकी, नक्सली और अन्य देश विरोधी गतिविधियां चल रही हैं। सरकार के इस निर्णय से भले ही प्रथम दृष्टया जनता को आर्थिक इमरजेंसी के हालात का सामना करना पड़ रहा है लेकिन सरकार का दावा है कि यह कालाधन और आतंक के अंतरंग रिश्तों पर वार है। सरकार के इस कदम से देश में अक्टूबर में जो 17,50,000 करोड़ के नोट प्रचलन में थे, जिसका 84 फीसदी या 14,50,000 करोड़ रुपया 500 और 1000 के नोटों के रूप में था, वे अब बेकार हो गए हैं। एक अनुमान के अनुसार इन नोटों में से कालेधन के रूप में जो भी रकम छुपाकर रखी गई थी उसमें से 4-5 हजार करोड़ रुपए की पुरानी करेंसी सरकार को मिल जाएंगे।
यानी सरकार ने जो दांव खेला है वह कई मायनों में कारगर सिद्ध होगा। दरअसल भारत की करेंसी पाकिस्तान में भी अवैध तरीके से छापी जाती है जो नकली नोट के रूप में भारत पहुंचती है। इस नकली नोट से न केवल भारत की अर्थव्यवस्था चरमरा रही थी बल्कि उससे आतंकवाद और नक्सलवाद भी पोषित किया जा रहा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव से पूर्व ही यह संकेत दे दिया था कि अगर उनकी सरकार बनती है तो आतंकवाद, कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ वार पर वार किया जाएगा। इस दिशा में सबसे पहले आतंकवाद के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक कर उन्होंने पाकिस्तान को सबक सिखाने की शुरूआत की। और अब 500 सौ और 1000 के नोट बंद करके कालेधन और पाकिस्तान में छप रहे नकली नोट पर कड़ा प्रहार किया है।
कालाधन बाहर निकलवाने को लेकर प्रधानमंत्री की मंशा पर देश को कतई संदेह नहीं है। नोट बंद करने से लेकर बेनामी सम्पत्तियों का पता लगाने के लिए सरकार जो भी कदम उठाएगी, देश उसके साथ खड़ा नजर आएगा। वैसे ही जैसे संकट के समय आज तक खड़ा होता आया है। प्रधानमंत्री ने कहा है कि देश के ईमानदार लोगों को डरने की जरूरत नहीं है लेकिन दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। समूचा देश भी यही चाहता है कि लाइलाज हो चुके भ्रष्टाचार और कालेधन पर करारा प्रहार किया जाए। इसे जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए जो भी जरूरी कदम हों, उठाए जाएं। कालेधन को खत्म करने के अभियान में आने वाली तमाम परेशानियों को सहने के लिए भी देश तैयार है। लेकिन इस तरह से नहीं जैसे पिछले कई दिन से देश की 95 फीसदी जनता सह रही है। सरकार को 500 और 1000 के नोट बंद करने थे तो होना तो यह चाहिए कि इसकी जगह नई व्यवस्था को परेशानी रहित बनाने के तरीकों पर विचार किया जाता। देश की 86 फीसदी मुद्रा बाजार से हटाने का फैसला आसान नहीं रहा होगा।
सरकारी सूत्रों का दावा है कि यह कवायद पिछले 8 महीने से चल रही थी। इसका मतलब साफ है कि नोट बंद करने का फैसला लेते समय प्रधानमंत्री की कोर टीम ने भविष्य की दिक्कतों का ध्यान नहीं रखा। इतना बड़ा फैसला लिया गया तो इसके नकारात्मक पहलुओं से निपटने के पुख्ता इंतजाम जरूर किए जाने चाहिए थे। वित्त मंत्री एटीएम व्यवस्था के दो-तीन सप्ताह में सुचारू होने का भरोसा जता रहे हैं। मुद्रा परिवर्तन के दौर में इस समय आम आदमी का पूरा ध्यान रोटी और कपड़े पर हो गया है। मकान या प्लॉट की तैयारी फिलहाल धरी रह गई है। ऐसे में रीयल एस्टेट बाजार भी ठिठक गया है। बिल्डर और कॉलोनाइजर वेट एंड वॉच की स्थिति में हैं। फिलहाल बिल्डर न नए सौदे कर रहे हैं, न ही पुराने काम बढ़ा पा रहे हैं।
लाभ से अधिक हानि
एक आंकड़े के अनुसार इस कदम से सरकार के खाते में जितने रुपए आएंगे उससे कहीं अधिक की हानि अर्थव्यवस्था को दो दिन में हो चुकी है। दूसरी बात, काला धन उतना ज्यादा नुकसानदेह नहीं है जितना माना जाता है। इसके उलट काले धन से अर्थव्यवस्था को उड़ान मिलती है। शहरों में जो मॉल, बिल्डिंग प्रोजेक्ट, होटल्स, थिएटर, बड़े-बड़े प्रोजेक्ट देखते हैं, वो कालेधन की ही देन हैं, जिनके निर्माण से श्रमिकों को सालों-साल रोजगार मिलता है और बनने के बाद पढ़ी लिखी आबादी को। जबकि दूसरी ओर मध्यम या उच्च वर्ग को अपने किये भुगतान के बदले सहूलियतें मिलती हैं। यानि पैसा गोल गोल समाज में घूमता है। खैर सरकार ने जो कदम उठाया है वह सार्थक होगा कि नहीं उस पर भी सवाल उठ रहे हैं।
फिलहाल भारत किसी वित्तीय आपदा या बैंकों की तबाही से प्रभावित देश (हाल में ग्रीस) की तरह नजर आने लगा है, जहां बैंक व एटीएम बंद हैं, लंबी कतारे हैं और लोग सीमित मात्रा में नकद लेने और खर्च करने को मजबूर हैं। ऐसे मुल्क में जहां बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था नकदी पर चलती हो, 50 फीसदी वयस्क लोगों का बैंकों से कोई लेना-देना न हो और बड़े नोट नकद विनिमय में 80 फीसदी का हिस्सा रखते हों वहां सबसे ज्यादा इस्तेमाल वाले नोटों को कुछ समय के लिए अचानक बंद करना विध्वंस ही होगा न! खास तौर पर तब जबकि रिजर्व बैंक की नोट मुद्रण क्षमताएं सीमित और आयातित साधनों पर निर्भर हैं।
वैसे इस अफरा-तफरी का कुल किस्सा यह है कि सरकार को नए डिजाइन के नोट जारी करने थे। नकली नोट रोकने की कोशिशों पर अंतरराष्ट्रीय सहमतियों के तहत रिजर्व बैंक ने सुरक्षित डिजाइन (ब्लीड लाइंस, नंबर छापने का नया तरीका) की मंजूरी लेकर तकनीक जुटाने का काम पिछले साल के अंत तक पूरा कर लिया था। नए नोटों को रिजर्व बैंक के नए गवर्नर (राजन के बाद) के हस्ताक्षर के साथ नवंबर 2016 में जारी किया जाना था। इसमें 2,000 रु. का नया नोट भी था। इसी क्रम में नकली नोटों में पाकिस्तानी हाथ होने की पुष्टि के बाद सरकार ने करेंसी को सुरक्षित बनाने की तकनीक व साजो-सामान को लेकर आयात पर निर्भरता तीन साल में 50 फीसदी घटाने का निर्णय भी किया था। नए डिजाइन के नोट जारी करने के लिए पुरानी करेंसी को बंद (डिमॉनेटाइज) नहीं किया जाता, बस नए नोट क्रमश: सिस्टम में उतार दिए जाते हैं। लेकिन सरकार ने नोट बंद कर दिए, जिसके कई नतीजों का अंदाज उसे खुद भी
नहीं था।
पूर्व के प्रयास हो गए थे फेल
काले धन को रोकने की ताजा कोशिशों का रिकॉर्ड बहुत सफल नहीं रहा है। बैंकों, प्रॉपर्टी व ज्यूलरी पर नकद लेन-देन में पैन नंबर की अनिवार्यता से बैंकों में जमा कम हो गया और बाजार में नकदी बढ़ गई। काला धन घोषणा माफी स्कीमें बहुत उत्साही नतीजे लेकर नहीं आईं। अंतत: सरकार ने अप्रत्याशित विकल्प का इस्तेमाल किया, जिससे करीब तीन लाख करोड़ रु. की काली नकदी खत्म होने का अनुमान है। इसके साथ ही नए नोट लेने के लिए नकदी लेकर बैंक जा रहे लोगों पर आयकर विभाग की निगरानी हमेशा रहेगी।
बहरहाल, एटीएम पर धक्के खाने और पैसे होते हुए उधार पर सब्जी लेने के दर्द के बावजूद इस फैसले से उठी गर्द के पार देखने की कोशिश भी करनी चाहिए, जहां पुनर्निर्माण की उम्मीद दिखती है। भाजपा के पूर्व नेता और चिंतक केएन गोविंदाचार्य कहते हैं कि काले धन पर नियंत्रण का दावा करना लोगों की आंख में धूल झोंकना है। वह कहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा 500 और 1000 के नोट समाप्त करने के फैसले से पहले मैं भी अचंभित हुआ और आनंदित भी। पर कुछ समय तक गहराई से सोचने के बाद सारा उत्साह समाप्त हो गया। नोट समाप्त करने और फिर बाजार में नए बड़े नोट लाने से अधिकतम 3 प्रतिशत काला धन ही बाहर आ पायेगा, और मोदी जी का दोनों कामों का निर्णय कोई दूरगामी परिणाम नहीं ला पायेगा, केवल एक और चुनावी जुमला बन कर रह जाएगा।
वह कहते हैं कि नोटों को इस प्रकार समाप्त करना- खोदा पहाड़, निकली चुहिया सिद्ध होगा। अर्थशास्त्रियों के अनुसार भारत में 2015 में सकल घरेलु उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 20 प्रतिशत अर्थव्यवस्था काले बाजार के रूप में विद्यमान थी। वहीं साल 2000 मेें यह 40 प्रतिशत तक थी, अर्थात धीरे-धीरे घटते हुए यह 20 प्रतिशत तक पहुंची है। 2015 में भारत का सकल घरेलु उत्पाद लगभग 150 लाख करोड़ था, अर्थात उसी वर्ष देश में 30 लाख करोड़ रूपये काला धन बना। इस प्रकार अनुमान लगाएं तो 2000 से 2015 के बीच न्यूनतम 400 लाख करोड़ रुपये काला धन बना है। रिजर्व बैंक के अनुसार मार्च 2016 में 500 और 1000 रुपये के कुल नोटों का कुल मूल्य 12 लाख करोड़ था जो देश में उपलब्ध एक रुपये से लेकर 1000 तक के नोटों का 86 प्रतिशत था। अर्थात अगर मान भी लें कि देश में उपलब्ध सारे 500 और 1000 रुपये के नोट काले धन के रूप में जमा हो चुके थे, जो कि असंभव है, तो भी केवल गत 15 वर्षों में जमा हुए 400 लाख करोड़ रुपये काले धन का वह मात्र 3 प्रतिशत होता है।
प्रश्न उठता है कि फिर बाकी काला धन कहां है? अर्थशास्त्रियों के अनुसार अधिकांश काले धन से सोना-चांदी, हीरे- जेवरात, जमीन- जायदाद, बेशकीमती वस्तु (एंटिक्स), पेंटिंग्स आदि खरीद कर रखा जाता है, जो नोटों से अधिक सुरक्षित हैं। इसके अलावा काले धन से विदेशों में जमीन-जायदाद खरीदी जाती है और उसे विदेशी बैंकों में जमा किया जाता है। जो काला धन उपरोक्त बातों में बदला जा चुका है, उन पर 500 और 1000 के नोटों को समाप्त करने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। अधिकांश काला धन घूस लेने वाले राजनेताओं-नौकरशाहों, टैक्स चोरी करने वाले बड़े व्यापारियों और अवैध धंधा करने वाले माफियाओं के पास जमा होता है। इनमें से कोई भी वर्षों की काली कमाई को नोटों के रूप में नहीं रखता है, इन्हें काला धन को उपरोक्त वस्तुओं में सुरक्षित रखना आता है। या उन्हें सिखाने वाले मिल जाते हैं। इसी प्रकार जो कुछ नोटों के रूप में उन बड़े लोगों के पास होगा भी, उसमें से अधिकांश को ये रसूखदार लोग इधर-उधर करने में सफल हो जाएंगे। 2000 से 2015 में उपजे कुल काले धन 400 लाख करोड़ का केवल 3 प्रतिशत है सरकार द्वारा जारी सभी 500 और 1000 के नोटों का मूल्य।
पांच सौ और एक हजार रुपये के नोटों का प्रचलन बंद करने के मोदी सरकार के अप्रत्याशित फैसले ने देश के हर अमीर-गरीब व्यक्ति पर असर डाला है। यह असर सरकार के फैसले को लेकर प्रतिक्रिया के रूप में भी है और परेशानी-संतुष्टि के रूप में भी। इसमें दो राय नहीं कि सरकार का फैसला साहसिक है, लेकिन जिस तरह आम लोगों को परेशानी हो रही है उससे यह भी स्पष्ट है कि सरकार के नीति-नियंताओं ने पूरी तैयारी नहीं की अथवा वे यह अनुमान नहीं लगा सके कि इस फैसले का तात्कालिक असर क्या होगा? अगर इस बड़े फैसले को लागू करने के पहले उसके असर का आंकलन करके उपयुक्त जमीन तैयार कर ली गई होती तो आज जो आपाधापी मची है और खुदरा कारोबार के साथ बड़े कारोबार भी ठहरते हुए दिख रहे हैं और इस सबके चलते फौरी तौर पर ही सही, अर्थव्यवस्था की गति बाधित होने का अंदेशा उभर आया है उससे बचा जा सकता था। इसी के साथ विरोधी दलों की अनावश्यक चीख-पुकार से भी बचा जा सकता था। लेकिन सरकार ने बिना तैयारी के नोटबंदी का कदम उठाकर सबको परेशानी में डाल दिया है। यही नहीं सरकार के इस कदम ने कालाबाजारियों को अपनी रकम सोना, चांदी और अन्य वस्तुओं की खरीदी में खपाने का मौका दे दिया है। यही नहीं जिस जनधन योजना में महीनों से एक रुपए भी जमा नहीं हुए थे उनमें हजारों रुपए जमा हो रहे हैं। ऐसे में कालाबाजारी कैसे रुकेगी ?
क्या पेपर लेस करेंसी की दिशा में कदम
सरकार ने यह कदम क्यों उठाया इसको लेकर तरह-तरह के सवाल उठ रहे हैं। पहला यह कि क्या अमेरिका की तरह मोदी ने भारत को भी पेपर लेस करेंसी वाला देश बनाने की ओर कदम बढ़ाया है। क्योंकि प्रधानमंत्री की जिस तरह अमेरिकी शासन से नजदीकी रही है उससे तो यही लग रहा है। ऐसे में यह भी संभावना जताई जा रही है कि काले धन के कारोबार को फिर से न पनपने देने के लिए हर संभव कदम उठाने के साथ ही कैशलेस सोसायटी का निर्माण करने वाले उपाय भी किए जाएंगे। इससे ही नोटबंदी का फैसला देश की तस्वीर बदलने वाला साबित होगा। वही सवाल यह भी उठ रहा है कि कहीं यह कदम उत्तरप्रदेश चुनाव को देखकर तो नहीं उठाया गया है। दरअसल एक अनुमान के अनुसार उत्तरप्रदेश में कालेधन के करीब 35 हजार करोड़ रुपए चुनाव में खपाए जाने थे। शायद यही कारण है कि अरविंद केजरीवाल, मायावती और मुलायम सिंह आरोप लगाने से नहीं चूक रहे हैं कि भाजपा ने अपने कालेधन को सफेद कर लिया है और देश को भंवर में डाल दिया है। उधर नोटबंदी से परेशान जनता सवाल पूछ रही है कि पॉलिटिकल पार्टियों को चंदे पर करोड़ों रुपये के टैक्स की छूट क्यों है। पॉलिटिकल पार्टियों से पैसों का ब्योरा क्यों नहीं लिया जाता। ज्ञातव्य है कि देश में 2000 पॉलिटिकल पार्टियां हैं।
क्या चूक हो गई नरेंद्र मोदी से?
नोटबंदी के बाद देश में जिस तरह का जनआक्रोश दिख रहा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तेवर आक्रामक नजर आ रहे हैं उससे ऐसा लग रहा है जैसे यह निर्णय लेने में प्रधानमंत्री से कहीं न कहीं चूक हो गई है। इसलिए नोटबंदी के बाद से मोदी कभी भावुक हो रहे हैं तो कभी आक्रामक हो रहे हैं। नोटबंदी के फैसले के बाद पहली बार किसी सार्वजनिक सभा में गोवा के पणजी में बोलते हुए मोदी ने जिस तरह कहा कि अगर मैं कोई गलती करता हूं तो देश मुझे इसकी जो भी सजा दे मैं उसके लिए तैयार हूं। यही नहीं वह यह कहने से भी नहीं चूकते हैं कि मैंने घर, परिवार सब कुछ देश के लिए छोड़ा है। कुछ लोगों को लगता है कि मोदी डर जाएगा। मोदी को जिंदा जला दोगे तब भी नहीं डरेगा। आखिर मोदी ऐसा क्यों बोल रहे हैं। यही नहीं ऐसी क्या बात हो गई है कि वे यह कह रहे हैं कि आजादी के बाद से हो रहे भ्रष्टाचार को उजागर करूंगा अगर इसके लिए मुझे एक लाख युवाओं की भर्ती करनी पड़ी तो करूंगा। प्रधानमंत्री जनता के बीच ये बातें तो बोल गए लेकिन जनता अब इस सोच में पड़ गई है कि प्रधानमंत्री इतने डरे सहमें क्यों हैं। यही नहीं उत्तरप्रदेश के गाजीपुर में भी उन्होंने जनता के सामने गिड़गिड़ाते हुए कहा कि वह इस समस्या में उनका साथ दे। नोटबंदी के बाद देश में जिस तरह की अफरा-तफरी का माहौल है उससे लगता नहीं है कि समस्या का समाधान 50 दिन में हो जाएगा। शायद यही वजह है कि प्रधानमंत्री की आंखों में भी आंसू छलक रहे हैं। अपने ढाई साल के कार्यकाल में प्रधानमंत्री इतने आक्रामक कभी नहीं दिखे जितने अभी दिख रहे हैं। जो इस बात का संकेत है कि उनसे कहीं न कहीं चूक हो गई है।
एक बार फिर बदलेगी करेंसी
काले धन के खिलाफ अपनी मुहिम को अंजाम तक पहुंचाने के लिए सरकार एक बार फिर करेंसी बदलेगी। क्योंकि सरकार ने यह कदम कालाधन, आतंकवाद और भ्रष्टाचार रोकने के लिए उठाया है। अत: अगर सरकार को रिपोर्ट मिलती है कि नई करेंसी कालेधन में तब्दील हो रही है तो सरकार एक बार फिर से इन नोटों को बदल सकती है और बदलाव के तौर पर इनसे बड़े नोट भी चलन में ला सकती है। साथ ही 100 और 50 रुपए के नोट भी बदले जा सकते हैं। क्योंकि देश में नकली नोट इस रूप में भी हैं। अत: संभावना जताई जा रही है कि जैसे ही स्थिति नॉरमल होती है सरकार 100 और 50 रुपए के नोट बदलेगी। यही नहीं जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को नए ढांचे में ढालने की कोशिश में लगे हैं उससे यह भी लग रहा है कि देश में इमरजेंसी लग सकती है। साथ ही पाकिस्तान की भारत विरोधी गतिविधियों को देखते हुए संभावना जताई जा रही है कि आने वाले ढाई सालों में भारत कभी भी पाकिस्तान पर हमला कर सकता है। इसलिए जनता को अभी से ऐसी परिस्थितियों के तैयार रहने की जरूरत है। उधर सरकार को देश में कालाबाजारी और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए बैंकिंग व्यवस्था सुदृढ़ करनी पड़ेगी साथ ही कैशलेश सोसायटी का निर्माण करना पड़ेगा। केंद्र सरकार को उम्मीद है कि नोटबंदी के फैसले से ऐसा माहौल बनेगा कि लोग नकदी का प्रयोग कम कर देंगे। अच्छा होता कि इसके लिए पहले ही कुछ जरूरी कदम उठा लिए जाते। एक कदम तो बैंकिंग सेवाओं को सुदढ़ करने का होना चाहिए था, क्योंकि देश का एक बड़ा इलाका बैंकिंग सेवाओं के मामले में पिछड़ा हुआ है। इसका प्रमाण नोटबंदी के फैसले के बाद मची अफरा-तफरी से भी मिलता है।