17-Dec-2016 05:58 AM
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छत्तीसगढ़ में सरकार लगातार यह दावा कर रही है कि सरकार के पुनर्वास की नीतियों से प्रभावित होकर माओवादी आत्मसमर्पण कर रहे हैं। लेकिन माओवादियों और उनके समर्थकों के पुनर्वास का हाल यह है कि पिछले तीन सालों में आत्मसमर्पण करने वाले 1,898 में से अब तक केवल 24 लोगों को ही सरकारी नौकरी मिल पाई है। यह खुलासा हाल ही में विधानसभा के सत्र में हुआ है। छत्तीसगढ़ के गृह मंत्री रामसेवक पैंकरा ने विधानसभा में एक सवाल के जवाब में यह जानकारी दी।
माओवादियों के आत्मसमर्पण और पुनर्वास को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार की नीति के अनुसार, आत्मसमर्पण करने वाले माओवादियों को योग्यता के आधार पुलिस समेत दूसरे विभागों में सरकारी नौकरी दी जानी चाहिए। इस नीति में यह व्यवस्था भी है कि पहले अपराध में शामिल होने पर भी छह महीने तक अच्छा आचरण होने से शासकीय सेवा में उन्हें लिया जा सकता है। लेकिन पिछले तीन सालों में आत्मसमर्पण करने वालों में से केवल 1.26 प्रतिशत लोगों को ही नौकरी मिल पाई है। राज्य के गृह मंत्री रामसेवक पैंकरा पुनर्वास की इस रफ्तार से चिंतित नहीं हैं।
पैंकरा कहते हैं, जहां-जहां नक्सली आत्मसमर्पण कर रहे हैं, पुनर्वास की नीति के आधार पर उन्हें लाभ दिया जा रहा है। जो समस्याएं सामने आती है, उनका निराकरण भी किया जाता है। मामला केवल नौकरी का नहीं है। पुनर्वास के दूसरे मोर्चों पर भी हालात अच्छे नहीं हैं। इन कथित माओवादियों और उनके समर्थकों के पुनर्वास के आंकड़ों को देखें तो बीते तीन सालों में राज्य के नौ जिलों में समर्पण करने वाले 1,898 लोगों में से केवल 104 कथित माओवादियों को ही आवास की सुविधा मिली है। यह आंकड़ा कुल समर्पण का 5.4 फीसदी है।
पिछले साल जनवरी से इस साल 25 अक्टूबर तक जगदलपुर जिले में सबसे अधिक 417 कथित माओवादियों का समर्पण हुआ है, वहां किसी भी कथित माओवादी को ना तो घर मिला है और ना ही जमीन। जशपुर, गरियाबंद, राजनांदगांव और कोंडागांव जिलों का भी यही हाल है। जगदलपुर जिले में तो 412 कथित माओवादियों को केवल 10-10 हजार रुपए की कथित प्रोत्साहन राशि ही मिली, 9 लोगों को केवल 5-5 हजार रुपए से ही संतोष करना पड़ा। एकमात्र माओवादी को हथियार के साथ समर्पण करने के एवज में सबसे अधिक 31,500 रुपए की रकम दी गई है। हालांकि केंद्रीय पुनर्वास योजना के तहत चार कथित माओवादियों के खाते में डेढ़-डेढ़ लाख रुपए जरूर जमा कराए गए हैं। लेकिन पूरे छत्तीसगढ़ में केंद्रीय पुनर्वास योजना का लाभ पाने वालों का आंकड़ा भी इन तीन सालों में 73 तक ही पहुंचा है। यह कुल आत्मसमर्पण का केवल 3.84 प्रतिशत है। मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि छत्तीसगढ़ में 2012 और 2013 में कुल 12 कथित माओवादियों ने समर्पण किया था। लेकिन पिछले दो सालों में कथित आत्मसमर्पण की बाढ़ सी आ गई है। मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल की छत्तीसगढ़ इकाई के अध्यक्ष डॉक्टर लाखन सिंह का आरोप है कि पिछले कुछ सालों से, विशेष रूप से बस्तर में, माओवादियों के आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाने की कोशिश में बेकसूर आदिवासियों को पुलिस कथित आत्मसमर्पण के नाम पर पकड़ कर ले आती है। लेकिन, जब इनके पुनर्वास की बात आती है, राज्य स्तर पर इनकी समीक्षा में दस फीसदी भी ऐसे नहीं होते, जिन्हें माओवादी कहा जाए या उन्हें पुनर्वास का लाभ दिया जाए। पिछले दो सालों के आंकड़े देखें तो कोंडागांव में समर्पण करने वाले कुल 170 और कांकेर जिले के कुल 39 कथित माओवादियों में एक भी ऐसा नहीं था, जिसने किसी हथियार के साथ आत्मसमर्पण किया हो। इन दो सालों में धमतरी, गरियाबंद और राजनांदगांव जिलों में भी किसी माओवादी ने हथियार के साथ आत्मसमर्पण नहीं किया।
आदिवासियों का कराया जा रहा फर्जी समर्पण
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष और विधायक भूपेश बघेल कहते हैं, क्यों हर नक्सली भरमार बंदूक या बगैर हथियार के आत्मसमर्पण कर रहा है? बघेल का आरोप है कि बस्तर में पुलिस छत्तीसगढ़ के आदिवासियों को माओवादी बता कर उन्हें फर्जी तरीके से आत्मसमर्पण करवाने का काम कर रही है। भूपेश बघेल मानते हैं कि अधिकांश माओवादी और उनके कमांडर सीमावर्ती राज्यों के हैं। जब तक उनका आत्मसमर्पण नहीं होता, किसी समस्या का हल नहीं निकलेगा। छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला पूरे छत्तीसगढ़ और खासतौर पर बस्तर में होने वाली मुठभेड़ और आत्मसमर्पण को सवालों के घेरे में रखते हैं। आलोक शुक्ला का मानना है कि कथित माओवादियों के आत्मसमर्पण के समय पुलिस और प्रशासन के अधिकारी पुनर्वास नीति का हवाला देते हुए घोषित इनाम की रकम, अत्याधुनिक हथियार पर एकमुश्त राशि, जमीन नहीं होने पर जीविकोपार्जन के लिए खेती की जमीन और आवास जैसी कई सुविधाएं देने का दावा करते रहे हैं। लेकिन हकीकत में ये चीजें दी नहीं जाती हैं।
-रायपुर से टीपी सिंह के साथ संजय शुक्ला