50-50 में फंसा शहडोल
17-Nov-2016 07:01 AM 1234811
शहडोल उपचुनाव में किसकी जीत होगी यह तो 22 नवंबर को साफ हो जाएगा। लेकिन इस आदिवासी बहुल सीट ने भाजपा और कांग्रेस के नेताओं को ठंडी में भी पसीने-पसीने कर दिया है। इस सीट पर अब तक हुए 16 लोकसभा चुनावों में 5 बार भाजपा जबकि 6 बार कांग्रेस का कब्जा रहा है। और इस बार कांग्रेस की प्रत्याशी भाजपा प्रत्याशी पर भारी पड़ रही है। लेकिन कांग्रेस के लिए गोंडवाना गणतंत्र पार्टी विलेन बन सकती है। यानी कांग्रेस की जीत में भाजपा नहीं बल्कि गोंगपा कांटा बन कर खड़ी है। प्रदेश सरकार में मंत्री ज्ञान सिंह भले ही शहडोल संसदीय क्षेत्र से दो बार सांसद रह चुके हैं लेकिन क्षेत्र में अब उनका क्रेज दिख नहीं रहा है। वहीं पूरे क्षेत्र में कांग्रेस की युवा उम्मीदवार हिमाद्री सिंह छायी हुई हैं।  इससे भाजपा को एक अनजाना-सा डर सता रहा है। यही कारण है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनके 10 मंत्रियों सहित पूरी भाजपा शहडोल में डोल रही है। सत्ता संगठन के माध्यम से भाजपा द्वारा अब तक तमाम प्रकार की जमावट करने के बाद भी सर्वे रिपोर्ट बराबरी का मुकाबला बता रही है। मतलब, शहडोल में जनमत भाजपा के पक्ष में नहीं था क्योंकि भाजपा के मुकाबले कांग्रेस के प्रयास नगण्य है। इसके बावजूद सर्वे रिपोर्ट बराबरी पर रहना, सत्ता विरोधी या भाजपा के उम्मीदवार में आकर्षण का अभाव ही ध्वनित करता है। सो, शहडोल में जनमत और जमावट में जमकर जंग होने वाली है। प्रदेश के दोनों प्रमुख दलों ने प्रत्याशियों के नामांकन दाखिले के समय जमकर शक्ति प्रदर्शन किया कांग्रेस प्रत्याशी हिमाद्री सिंह का फार्म भराने प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव और प्रदेश प्रभारी मोहन प्रकाश सहित क्षेत्र के तमाम बड़े नेता उपस्थित रहे तो भाजपा प्रत्याशी ज्ञानसिंह का फार्म भरने स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगभग आधा दर्जन मंत्री और सत्ता व संगठन से जुड़े नेता साथ रहे। बाद में मुख्यमंत्री ने सभा करके भी ज्ञानसिंह के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की। दरअसल, सत्ताधारी दल भाजपा को पिछले कुछ उपचुनाव से अनुभव ठीक नहीं रहा। झाबुआ लोकसभा का उपचुनाव तो तमाम प्रकार की कोशिशों के बाद भी भारी अंतर हार गये। तो घोड़ाडोंगरी और मैहर कैसे जीत गए। इसे भाजपा से अच्छा कौन जान सकता है। यही कारण है जब से शहडोल लोकसभा के सांसद दलपत सिंह परस्ते का निधन हुआ तब से ही सत्ता और संगठन ने अपनी शक्ति, सामथ्र्य शहडोल में झोंकी हुई है। बूथ स्तर पर मजबूत जमावट का माहौल बनाने मुख्यमंत्री और अधिकांश मंत्री शहडोल में डेरा डाले रहे हैं।  संगठन के विशेषज्ञ नेता भी लगातार जमावट कर रहे हैं। केवल भाजपा मन का प्रत्याशी मैदान में नहीं दे पाई। मन हारकर आखिर ज्ञानसिंह को ही मैदान में उतारना पड़ा, सो इतने उच्च स्तर के प्रयासों के बावजूद सर्वे रिपोर्ट उस कांग्रेस पार्टी के बराबरी पर भाजपा को दिखा रही, जिस पार्टी के प्रयास भाजपा के मुकाबले प्रासंग भी नहीं है। शिवराज-कमलनाथ आमने-सामने शहडोल उपचुनाव में प्रत्याशी भले ही दूसरे हैं, लेकिन मुकाबला मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और सांसद कमलनाथ के बीच होता दिख रहा है। चुनाव कड़ा होने की वजह से ही दोनों दलों के प्रमुख नेताओं ने कमान संभाल ली है। भाजपा के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जनता के बीच विकास के नाम पर वोट मांगने पहुंच रहे हैं। सीएम के सबसे ज्यादा रोड-शो और सभाओं की तैयारी की गई है। उधर कांग्रेस के लिए वरिष्ठ नेता कमलनाथ ने सारी तैयारी हाथों में ले ली है। नाथ के लिए सबसे बड़ी चुनौती बिखरे कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को एकजुट करना है। साथ ही उनके सामने चुनौती है सवा दो लाख वोटों के अंतर को पाटना। 2014 के लोकसभा चुनाव में शहडोल से भाजपा सांसद परस्ते ने कांग्रेस की राजेश नंदिनी को 2.14 लाख मतों के अंतर से पराजित किया था। इसके साथ ही कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती है गुटबंदी की। यही कारण है कि दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अरुण यादव एक साथ नहीं देखे गए। उस पर 500 और 1000 रुपए के पुराने नोट बंद हो जाने से एक और चोट पहुंची है। जिससे कांग्रेस की नैय्या मजधार में फंसती नजर आ रही है। -धर्मेन्द्र सिंह कथूरिया
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