17-Nov-2016 06:50 AM
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इन दिनों नई दिल्ली में प्रदूषण को लेकर हाय-तौबा मची हुई है। सियासत गर्म है। आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। पर, दो दर्जन चिमनियों से घिरे मध्यप्रदेश के औद्योगिक शहर सिंगरौली को किसी की याद नहीं आ रही है। यहां तक कि जिम्मेदार विभाग भी चुप्पी साध बैठे हैं। जबकि सिंगरौली रीजन में चिमनियों के साथ हजारों कोयले की भ_ियां चौबीसों घंटे कच्चा धुआं उगल रही हैं। जिससे यहां का वातावरण इस कदर दूषित हो गया है कि लोगों को कई तरह की बीमारियों ने जकड़ लिया है।
सिंगरौली औद्योगिक क्षेत्र के लगभग 100 किलोमीटर दायरे में शायद ही कोई गांव, कोई इलाका ऐसा हो जहां बड़ी संख्या में बच्चे और व्यस्क गलियों में रेंगते, लाठियों के सहारे चलते और रास्तों पर लुढ़कते न दिख जाएं। यहां के पानी में फ्लोराइड है, जो सीधे शरीर की हड्डियों पर मार करता है। वो लोग हैं जिन्हें बिजली उत्पादन की कीमत चुकानी पड़ी है जबकि उन्हें कभी बिजली नसीब नहीं होती।
कोयला खदानों की कालिख और बिजली कारखानों की राख में डूबी चिलकटांड़ गांव की एक ऐसी ही अंधेरी बस्ती में रहने वाली 55 साल की सुनिता पिछले 15 साल में शायद ही कभी अपने घर से बाहर निकली हों। अपने विकलांग परिवार के लिए सुनीता की सबसे बड़ी आस है कि पैरों से अपाहिज बेटे रामलखन को एक छोटी दुकान मिल जाए। वजह ये कि सुनीता के हाथ-पैर टेढ़े-मेढ़े है, वही नहीं उनके पांच लोगों के परिवार में आज चार और अपाहिज हैं। लेकिन यह समस्या केवल सुनीता या उसके परिवार की नहीं बल्कि पूरे क्षेत्र की है। दरअसल यहां औद्योगिक प्रदूषण से हवा के साथ पानी भी दूषित हो रहा है। इस कारण लोग गंभीर बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। सिंगरौली के एनसीएल ग्राउण्ड में जहरीले कचरे के ढेर में आग लगा दी जाती है जिससे जहरीला धुआ पूरे वातावरण में फैलता है। उधर, ओवर बर्डेन से उड़ रही धूल, दर्जनभर ओपन कास्ट कोलमाइंस परियोजनाएं, शहर के बीचो-बीच कचरा प्लांट, मानकविहीन फ्लाईएश डैम और सड़कों के जरिए कोयले ढुलाई आदि के चलते सिंगरौली के हालात नई दिल्ली से भी खराब हैं। औद्योगिक क्षेत्र में दर्जनभर से ज्यादा तापीय परियोजनाएं संचालित की जा रही हैं। जिनसे रोजाना 20 हजार से ज्यादा मेगावॉट बिजली का उत्पादन किया जा रहा है। इस क्षेत्र की बिजली से देश का 30 प्रतिशत से ज्यादा भाग रोशन हो रहा है। मगर, यहां के लोग प्रदूषण जैसी घोर समस्या से जूझ रहे हैं। एनजीटी की सख्ती के बाद भी सुधार नजर नहीं आ रहा है।
20 हजार मेगावॉट से ज्यादा रोजाना बिजली उत्पादन करने वाला यह क्षेत्र चिमनियों के खराब हो चुके फिल्टर पेपर से धुएं के साथ रोजाना दो हजार टन कोयला भी उड़ रहा है। दो दर्जन के करीब फ्लाईएश डैम मानकविहीन हैं। जिनसे राख उड़ रही है। सीधे राख जलस्रोतों में पहुंच रही है। ओवर बर्डेन (ओबी) से समूचा क्षेत्र घिरा है। धूल के चलते समूचा क्षेत्र प्रभावित है। इस क्षेत्र में दर्जनभर ओपन कास्ट कोल माइनिंग परियोजनाएं संचालित हैं, जिनसे कोयले के कण हवा में उड़ते रहते हैं। सड़कों पर बिखरे पड़े हैं। सड़कों के जरिए कोयले की ढुलाई बदस्तूर जारी है। इस क्षेत्र में हजारों कोयले की भ_ियों चौबीसों घंटे धधक रही हैं। जिनसे कच्चा धुआं आबोहवा के लिए खतरा बना है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से जारी रिपोर्ट के मुताबिक हवा में सिंगरौली औद्योगिक क्षेत्र में पीएम-10 का स्तर 180 से भी ज्यादा हो गया है। जो खतरनाक स्थिति माना जाता है। इससे जानलेवा बीमारियां फैल रही हैं लेकिन सरकार का ध्यान इस ओर नहीं है।
दमघोटू गैसों का चेंबर बन गया औद्योगिक क्षेत्र
देश के पॉवर हब के रूप में ख्यात सिंगरौली रीजन गहरे संकट की ओर बढ़ रहा है। हर साल औसतन 20 लाख टन औद्योगिक कचरा यहीं डंप होता है, जो उद्योगों से उत्सर्जित कुल कचरे का करीब आधा है। यह खुलासा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देश पर गठित विशेषज्ञ कोर कमेटी की रिपोर्ट से हुआ है। आलम यह है कि धूल के पहाड़ और राख के मैदान सिंगरौली रीजन की नई पहचान बन रहे हैं। दरअसल, बेतहाशा बढ़ते औद्योगिक कचरे ने सिंगरौली रीजन को दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित जगहों में शुमार करा दिया है। कोर कमेटी के आंकड़ों के अनुसार इस रीजन में साढ़े तीन सौ से अधिक उद्योग संचालित हैं, जिनसे करीब 45 लाख टन कचरा हर साल उत्सर्जित होता है। इनमें 35 लाख टन तो फ्लाईऐश शामिल है। यह फ्लाईऐश मप्र के 4 और उत्तरप्रदेश के 6 पॉवर प्लांटों से निकलती है। इन प्लांटों में 21 हजार मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए एक करोड़ टन से अधिक कोयला जलाया जाता है। इनके अलावा 10 लाख टन से अधिक रेड मड व अन्य रसायन उत्सर्जित होते हैं पर इनके निस्तारण के लिए उचित प्रबंध नहीं किया गया है।
-बृजेश साहू