17-Nov-2016 06:46 AM
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वन रैंक वन पेंशन को लेकर केंद्र सरकार चक्रव्यूह में फंस गई है। पूर्व सैनिक रामकिशन ग्रेवाल की आत्महत्या पर दिल्ली की सियासत प्रदूषण के कोहरे में भले ही ढक गई हो, लेकिन इस मुद्दे पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को दो दिन में तीन बार हिरासत में लिए जाने से देश का माहौल कुछ बदला-बदला सा लग रहा है। इस प्रकरण को देश लिए बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम माना जा रहा है, जो कथित तौर पर केन्द्र सरकार की विफलता का परिचायक बन सकता है। कांग्रेसी खेमा तो इस पूरे प्रकरण से बेहद उत्साहित है। उसे लगता है कि केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के इशारे पर दिल्ली पुलिस द्वारा राहुल गांधी के खिलाफ की गई इन कार्रवाइयों से कांग्रेस का सेंसेक्स ऊपर चढ़ा है।
कांग्रेसियों के उत्साह और ऊर्जा को देखकर अक्टूबर 1977 में हुई इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी की चर्चा होने लगी है। कहा जा रहा है कि जब इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी हुई थी, तब पूरे देश के कांग्रेसी नजदीकी जेलों में अपनी गिरफ्तारी देने के लिए टूट पड़े थे और तब कांग्रेसियों द्वारा कहा गया था कि जब तक इंदिरा गांधी की रिहाई नहीं होगी, तब तक वे जेल में ही रहेंगे। आलम ये हो गया था कि इंदिरा गांधी को जेल से रिहा करना ही पड़ा। अब सवाल यह उठ रहा है कि अपनी हिरासत के बाद चढ़े कांग्रेस के सेंसेक्स को उपाध्यक्ष राहुल गांधी यूपी चुनाव 2017 और लोकसभा चुनाव 2019 तक कायम रख पाएंगे? हालांकि कांग्रेसी तो दंभ भर रहे हैं कि राहुल को हिरासत में लेेने की कार्रवाई से मोदी सरकार ने अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मार ली है।
दिल्ली प्रदेश कांग्रेस आईटी सेल के संयोजक विशाल कुन्द्रा कहते हैं कि महात्मा गांधी को रोका अंग्रेजों ने, इंदिरा गांधी को रोका मोरारजी देसाई ने और राहुल गांधी को रोका नरेन्द्र मोदी ने। मोदी सरकार की यह कार्रवाई उसी के लिए घातक बनेगी। विशाल कुन्द्रा कहते हैं कि मोदी सरकार की जनविरोधी और अलोकतांत्रिक नीतियों को जनता समझने लगी है और वह सरकार को अवश्य सबक सिखाएगी। गौतम बुद्धनगर जिले में पुराने कांग्रेसी कार्यकर्ता दीपक शर्मा कहते हैं कि जिस दिन राहुल गांधी को हिरासत में लिया गया था, उसी दिन से मोदी सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो गई। इस तरह की जनविरोधी गतिविधियां मोदी सरकार को सत्ता से हटने के लिए बाध्य करेंगी। सोशल साइट्स पर अन्य लोग भी यह साफ शब्दों में कह रहे हैं कि केन्द्र सरकार के कथित जनविरोधी कारनामे ही कांग्रेस और राहुल गांधी की लोकप्रियता को बढ़ा रहे हैं।
शिवसेना प्रवक्ता अरविन्द सावंत ने कहा है कि राहुल गांधी और दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को वन रैंक वन पेंशन के मुद्दे पर कथित आत्महत्या करने वाले पूर्व सैनिक के परिवार से मिलने से नहीं रोका जाना चाहिए था। दक्षिण मुंबई निर्वाचन क्षेत्र से सांसद सावंत ने कहा कि यह किस तरह का रवैया है? दिल्ली पुलिस की कार्रवाई निंदनीय तथा शर्मनाक है। उन्होंने कहा कि कथित आत्महत्या का राजनीतिकरण किया जाना ठीक नहीं था और परिवार से सही व्यवहार नहीं किया गया। सावंत का तर्क है कि राहुल गांधी एक राष्ट्रीय दल के उपाध्यक्ष हैं, जबकि सिसोदिया एक निर्वाचित सरकार के उपमुख्यमंत्री हैं और दोनों की ही गिरफ्तारी पर दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। इधर, राजनीति के जानकार बताते हैं कि राहुल गांधी के खिलाफ दिल्ली पुलिस की कार्रवाई ने केन्द्र की मोदी सरकार और भारतीय जनता पार्टी को बैकफुट पर ला दिया है। हालांकि भाजपा के लोग इस कोशिश में हैं कि किसी तरह से कांग्रेस को इसका सियासी लाभ न मिल सके, वैसी रणनीति बनाई जाए। इसके लिए सरकार ने पूर्व सैनिकों पर दाना डालना शुरू कर दिया है। पूर्व सेना प्रमुख और केन्द्रीय मंत्री वीके सिंह सैनिकों के साथ निरंतर चर्चा कर रहे हैं। लेकिन सैनिकों पर उनकी किसी भी बात का असर नहीं हो रहा है। जिस तरह कांग्रेस और पूर्व सैनिकों ने सरकार के खिलाफ कड़ा रुख अख्तियार किया है उससे सरकार को यह डर सताने लगा है कि आने वाले चुनावों में उसकी गति चक्रव्यूह में फंसे अभिमन्यु की तरह न हो जाए। अब देखना यह है कि पहले पाकिस्तान फिर कालाधन के खिलाफ सजिकल स्ट्राइक करने वाले नरेंद्र मोदी इस चक्रव्यूह से निकलने के लिए किस तरह की स्ट्राइक करते हैं।
लेकिन इंदिरा गांधी नहीं बन पाए राहुल
जनता पार्टी के हाथों मिली करारी हार के बाद इंदिरा गांधी ने सरकार के एक गलत कदम को हथियार बनाते हुए जिस तरह एक बड़ा दांव खेला था उसी तरह राहुल ने भी दांव खेला है। लेकिन वे इंदिरा गांधी नहीं बन पाए। इंदिरा ने उस समय जमानत लेने से इंकार कर दिया, बाद में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। इंदिरा का यह कदम कारगर रहा और पूरे देश की जेलों में कांग्रेसियों का हुजूम उमड़ पड़ा। उस समय के युवा नेता रहे यूपी के महाराजा डॉ. संजय सिंह और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दलित नेता दीपक कुमार ने इंदिरा गांधी की रिहाई के तरह-तरह के नारे दिए थे। सवाल यह है कि क्या राहुल गांधी भी इंदिरा गांधी की तरह कोई करिश्मा कर सकते हैं? हालांकि वे अब जेल से बाहर हैं, लेकिन इस बात में कोई दो राय नहीं कि इस गिरफ्तारी के बाद छोटा सा ही सही माहौल उनके पक्ष में बना है। देखना यह है कि वे इसका सियासी फायदा कितना ले पाते हैं। हालांकि अभी तक उनका दाव सरकार पर असर नहीं दिखा पाया है।
पहले चीन से अब हक के लिए लड़ रहे हैं
70 साल के पूर्व सैनिक राम किशन ग्रेवाल की कथित आत्महत्या के बाद राजनीतिक हलचल तेज हो गई और विपक्षी दलों कांग्रेस और आप ने सत्ताधारी भाजपा को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। इस सब हलचल के बीच दिल्ली में जंतर मंतर पर वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे कुछ पूर्व सैनिकों से इस मसले पर बताया कि पहले हमने चीन के खिलाफ अपने देश को बचाने के लिए लड़ाई की। अब हमें अपने हक के लिए अपनी ही सरकार से लडऩा पड़ रहा है।
हक मिलने तक जारी रहेगा आंदोलन
भारत-पाकिस्तान की जंग में भारतीय सेना का हिस्सा रहे लेफ्टिनेंट कामेश्वर पांडे कहते हैं कि देश की सेना में 31 वर्ष तक अपनी सेवाएं देने के बाद आज देश से भरोसा उठ रहा है। जब मैंने फौज जॉइन की तो बांग्लादेश को अलग करने की तैयारी चल रही थी। ऐसे वक्त मैं टेक्निकल सपोर्ट में था। जब हमने बांग्लादेश अलग किया तो देश ने सिर पर बैठा लिया था। लेकिन आज सरकार ने हम फौजियों को सौतेली संतान बना दिया है। भरोसा नहीं होता कि यह वहीं देश है। वह कहते हैं कि जब तक हक नहीं मिलेगा पूर्व सैनिकों का आंदोलन इसी तरह चलता रहेगा।
सैनिकों को अब राजनीति से जंग लडऩी पड़ रही
1971 में जंग लड़े चुके कर्नल दिलबाग डबास को भी यही दुख है। उनका मानना था कि, जब फौज में था तब दुश्मन से जंग लड़ी और अब रिटायर हुआ तो देश की राजनीति से जंग लडऩी पड़ रही है। 1962, 1965 और 1971 की तीनों जंग लड़ चुके सूबेदार दलबीर सिंह को सरकार से खासी निराशा है। दलबीर के मुताबिक, वही जज्बा आज भी है मगर सरकार के रवैये से नाराज हूं। जवानी के दिनों मैंने भारत मां की सेवा की पर आज बुढ़ापे में हम गैर हो गए। हम फौजियों के साथ सरकार दरियादिली नहीं दिखा रही। सरकार की बेरुखी दिल दुखाने वाली है। लेकिन सरकार अडिय़ल रवैया अपनाए हुए हैं।
-बिन्दु माथुर