उपचुनाव तय करेगा कद
17-Nov-2016 06:43 AM 1234945
कांग्रेस जब अपना चेहरा राहुल गांधी को बनाने के निर्णायक दौर में पहुंच चुकी है तब मध्यप्रदेश में कांग्रेस आईसीयू में है। पार्टी के कर्मठ कार्यकर्ता छटपटा रहे हैं कि उन्हें प्रदेश में कोई सशक्त  चेहरा मिल जाए जिसको आगे करके वे कांग्रेस के वनवास को खत्म कर सकें। लेकिन जब भी प्रदेश में कांग्रेस के चेहरे की बात होती है नेताओं में सिर फुटौव्वल शुरू हो जाती है। एक बार फिर से पार्टी में सिर फुटौव्वल है। सांसद कमलनाथ, सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया और वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव में चेहरा बनने की होड़ लगी गई है। लेकिन आलाकमान अभी अपने पत्ते खोलने को तैयार नहीं है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि आलाकमान ने प्रदेश के नेताओं को टारगेट दे दिया है कि शहडोल लोकसभा और नेपानगर उपचुनाव की जीत और वहां नेताओं की परफारमेंस उनके कद को तय करेगा। इसको देखते हुए तीनों नेताओं ने अपना ध्यान शहडोल व नेपानगर में लगा लिया है। चुनावी कमान कमलनाथ के हाथ में है। ऐसे में सवाल यह खड़ा होता है कि यदि कांग्रेस शहडोल उपचुनाव जीत गई तो क्या राष्ट्रीय नेतृत्व मध्यप्रदेश में कमलनाथ को चेहरा बनाने पर गंभीर होगा या फिर नए सिरे से एक लंबी पारी खेलने के लिए हाईकमान ज्योतिरादित्य सिंधिया को ही सामने लाता है। चर्चा तो यह भी है कि कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया में आपसी समन्वय बना हुआ है और दोनों केंद्र और राज्य में एक-दूसरे को भरोसे में लेकर ही आगे बढऩा चाहेंगे। ऐसे में दिग्विजय सिंह और उनके समर्थकों को सिंधिया से ज्यादा कमलनाथ का समर्थन करने में ज्यादा भलाई नजर आती है। केंद्र में दखल रखने वाले इन नेताओं के लिए जरूरी है कि वह प्रदेश अध्यक्ष की भूमिका में अरुण यादव ही नहीं पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह और बाला बच्चन का भी भरोसा हासिल करें। सुरेश पचौरी से लेकर सत्यव्रत चतुर्वेदी जैसे नेताओं को भी खुलकर किसी के साथ खड़े नजर आना होगा। फिलहाल यह दूर की कौड़ी है क्योंकि शहडोल लोकसभा उपचुनाव के बाद राष्ट्रीय नेतृत्व का पूरा फोकस उत्तर प्रदेश और पंजाब पर होगा। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि अरुण यादव को कितनी ताकत मिलती है और वह खुद को कितना आगे तक ले जाते हैं लेकिन यदि इन उपचुनावों में भी कांग्रेस हार जाती है तो फिर अरुण यादव के विकल्प की तलाश तेज होना लाजमी है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि गोविंद सिंह हों या सज्जन सिंह वर्मा या फिर सिंधिया खेमे से जुड़े विधायक और पदाधिकारी, ये आगे भी अपनी सुविधा के अनुसार बयान देते रहेंगे जिससे कम से कम ज्योतिरादित सिंधिया को मध्यप्रदेश में आगे लाने से रोका जा सके जिसकी अपनी वजह और खेमेबाजी की लंबी रणनीति। लेकिन यह भी सच है कि यदि सिंधिया विरोधी खेमा लामबंद हो रहा है तो फिर कोई तो बात है जो वो अपनी ही पार्टी के नेताओं के निशाने पर आ चुके हंै। बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि क्या कमलनाथ को भरोसे में लेकर सिंधिया सक्रिय हुए हैं तो उन्हें राहुल इशारा कर चुके हैं जो देखना चाहते हैं कि कौन, क्यों, कितना विरोध कर सकता है। ज्योतिरादित्य ही नहीं आने वाले समय में कमलनाथ और सिंधिया के बीच में ही फैसला होना है कि किसकी अगुवाई में अगला चुनाव लड़ा जाए और शिवराज को सीधे चुनौती कौन देगा। ऐसे में दिग्गी खेमे की रणनीति का अंदाजा लगाया जा सकता है। दिग्विजय सिंह के करीबी माने जाने वाले गोविंद सिंह से लेकर कमलनाथ के समर्थकों के साथ पार्टी के राष्ट्रीय सचिव सज्जन सिंह वर्मा ने जिस तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया पर तंज कसकर व्यंग्य और कटाक्ष के जरिए मजे ही नहीं लिए उनका माखौल उड़ाया उससे यही संदेश गया कि दिग्गजों का क्या इन्हें वरदहस्त प्राप्त है और इस मर्ज की कोई दवा नहीं है। आखिर संगठन और राष्ट्रीय नेतृत्व आंख क्यों मूंदे है और उनके आका समझते और समझाते क्यों नहीं कि वो कांग्रेस को कमजोर क्यों देखना चाहते है। 2018 में सत्ता की वापसी की राह देखकर कांग्रेस को गुटबाजी का यह रोग खतरनाक साबित होगा। नेता आपसी रंजिश के कारण भले ही एक-दूसरे को कमजोर करने में लगे हैं लेकिन उनके इस कदम से पार्टी को सबसे अधिक नुकसान हो रहा है। सिंधिया की सक्रियता ने बढ़ाया कइयों का बीपी सिंधिया की प्रदेश में दूसरे नेताओं के मुकाबले बढ़ती सक्रियता कहीं न कहीं दिग्विजय और कमलनाथ को क्या रास नहीं आ रही। जो  कहने को कांग्रेस की इस नई फिल्म से फिलहाल दूरी बनाए हुए हैं। व्यापम के मामले ने इन दिग्गजों को जिस तरह एकजुट किया था वह शायद बात अब पुरानी हो चुकी है लेकिन जिस तरह कमलनाथ की अगुवाई में कांग्रेस ने विवेक तनखा को उम्मीदवार बनाकर राज्यसभा का चुनाव लड़ाया था उससे यह संदेश गया था कि राष्ट्रीय नेतृत्व के हस्तक्षेप के बाद ही सही कांग्रेस और मध्यप्रदेश के उसके दिग्गज नेता सत्ता में वापसी को लेकर संजीदा हो गए हैं लेकिन इस चुनाव के बाद कमलनाथ  राज्य की राजनीति में  सक्रिय नहीं दिखे तो दिग्विजय सिंह कुछ विशेष मौकों को छोड़ दिया जाए तो फिलहाल मध्यप्रदेश से दूरी बनाए हुए हैं। लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया जरूर अपने संसदीय क्षेत्र में न सिर्फ सक्रिय हैं बल्कि सुदूर क्षेत्र में भी अपनी नजर गड़ा चुके हैं। -भोपाल से अरविंद नारद
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