राष्ट्रीयता से सराबोर लोक-मंथन
17-Nov-2016 06:36 AM 1234820
गंगा-जमुनी संस्कृति के शहर भोपाल में तीन दिनों तक चले लोक मंथन में राष्ट्रीयता का ऐसा भाव दिखा जो पहले शायद ही कभी दिखा हो। देश के प्रख्यात विद्वानों, मनीषियों, साहित्यकारों, धर्माचारियों, कलाकारों, राजनेताओं ने  सामाजिक संस्कृति के ताने-बाने को तोडऩे के प्रयासों की आलोचना करते हुए लोक-मंथन के मंचों से आह्वान किया है कि हमें अपनी प्राचीन संस्कृति, संस्कार, रहन-सहन एवं राष्ट्रीय परंपराओं को और सुद्दढ़ करते हुए आगे बढऩा होगा। विकास का अर्थ यह कतई नहीं है कि हम अपने मूल संस्कारों को भूल जाएं और पश्चिमी परिवेश को अपना लें। हम आगे तो बढ़ें परन्तु अपनी प्राचीन धरोहरों को लेकर मन में हीन भावना भी नहीं आने दें। राष्ट्र के विविध पक्षों को समाहित करते हुए तीन दिनी इस राष्ट्रीय विमर्श में एक स्वर में पश्चिमी आब-ओ-हवा को नहीं अपनाने पर जोर दिया गया। बौद्धिक सत्रों में औपनिवेशिक मानसिकता पर अनेक वक्ताओं ने तथ्यों के साथ भारत का पक्ष रखा और कहा कि भारत की नींव और भारत का इतिहास प्राचीन, समृद्ध और ऐतिहासिक है। पश्चिमी देश आज अपने अस्वित्व से लड़ रहे हैं। कई देश टूट चुके हैं, कुछ बिखर चुके हैं। इन हालातों में हमें अपनी प्राचीन संस्कृति की ओर निहारना होगा, जो आज भी अडिग है। भारत की प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति का दुनिया में कोई मुकाबला नहीं। इस अवसर पर आए सभी विचारकों ने लोकमंथन आयोजन में महती भूमिका निभाने के लिए मप्र सरकार और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सराहना की। मप्र विधानसभा में आयोजित इस लोकमंथन में राष्ट्रीयता में संस्कृति, लोक परंपरा और उपासना पद्धति विषय पर आयोजित परिचर्चा में पचास से अधिक पुस्तकें लिख चुके और वागीश्वरी, माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार प्राप्त श्रीराम परिहार ने कहा कि राष्ट्रवाद चैतन्य लोक की सनातन नींव है। सनातन पुरूष राष्ट्रवादी होते हुए भी विश्ववादी है। वह अपनी भूमि पर खड़े होकर राष्ट्रवाद की सीमाओं का विस्तार करता है। माता और बच्चे का पवित्र संबंध राष्ट्रवाद है। वहीं राष्ट्र का संस्कृति से कोई संबंध नहीं। अमेरिका में रहने वाला व्यक्ति राष्ट्रवादी हो सकता है, भारत का व्यक्ति यदि राष्ट्र के प्रति चैतन्य न हो तो वह राष्ट्रवादी नहीं। वहीं  राष्ट्रीयता-आधुनिकता का विरोध नहीं विषय पर बोलते हुए हिन्दोल सोन गुप्ता का कहना था कि भारत में जन्में व्यक्ति को पुरातन से ही संस्कार और संस्कृति मिलती है। वह जीवन पर्यन्त उसी संस्कृति का निर्वहन करता है। हमारा संस्कार आधुनिक है और उसे हम निरंतर अपने जीवन में आत्मसात कर रहे हैं। हमारा भारत अखंड है जिसमें अलग-अलग जाति, धर्म, रंग, वेश-भूषा, बोली, संगीत दिखाई देते हैं। फिर भी वह एक अखंड मंडलाकार आकृति में समाहित है। यह सच है कि पश्चिमी संस्कृति में विविधता न होकर एक मत, एक चमड़ी, एक वेश-भूषा, एक बोली को बढ़ावा मिलता है। यह हम पर भी थोपने के प्रयास हुए हैं जो अभी तक असफल ही कहे जा सकते हैं। केन्द्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि आधुनिकता और आधुनिकीकरण में फर्क करना सीखना होगा। उन्होंने कहा कि पाश्चात्य विचारों में शक्ति, सफलता एवं धन संग्रह पर जोर है। वहां उपभोग और प्रतिस्पर्धा पर बल दिया जाता है। भारतीय परम्परा के केन्द्र-बिंदु में परिवार, सम्मान और सहयोग है। आधुनिकता का मतलब सभी के विचार-बिंदुओं को समझना है। हमारी भारतीय परम्परा जीवन जीने का तरीका सिखाती है। दूसरी ओर पाश्चात्य विचार जीवन-शैली पर ध्यान देते हैं। आधुनिकता तो हमेशा परम्परा से ही आती है, क्योंकि उसमें समस्याओं का उत्तर देने की क्षमता होती है। हिन्दुस्तान अपनी जीवन-शैली कभी नहीं भूलेगा। तीन दिनों तक चले इस लोक मंथन में देश के हर क्षेत्र और हर विषय के विशेषज्ञों ने राष्ट्रीयता का भाव जन-जन में जगाने का प्रयास किया। जो भी यहां आया वह मप्र के संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम की प्रशंसा करके गया। -विकास दुबे
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