नील गायों को वनवास
17-Nov-2016 06:31 AM 1234833
मप्र में फसलों को नुकसान से बचाने के लिए सरकार नीलगायों को गोली मारने का ऐलान कर चुकी थी, लेकिन पशु प्रेमी संस्थाओं और केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी के डर से इस फैसले को बदल दिया गया है। सरकार ने अब तय किया है कि नीलगायों को गोली मारने की जगह प्रदेश के दो प्रमुख बाधों के टापू पर छोड़ दिया जाएगा। नीलगाय से होने वाले नुकसान के कारण सरकार को फसलों पर काफी मुआवजा चुकाना पड़ता है। ये मुद्दा विधानसभा में भी कई बार विधायक उठा चुके हैं। किसानों की समस्या और विधायकों की शिकायत के बाद सरकार ने नीलगाय को सबसे पहले छतरपुर, रीवा और पन्ना जिले से शिफ्ट करने का फैसला लिया है। इसके तहत नीलगाय को पकडऩे के लिए बोमा पद्धति का प्रयोग किया जाएगा। वन मंत्री गौरीशंकर शेजवार ने बताया कि इन तीन जिलों से नीलगाय को पकड़ कर इंदिरा सागर बांध और गांधी सागर बांध के टापू पर छोड़ा जाएगा। इससे पहले बाघ, चीतल, बारासिंघा सफलतापूर्वक शिफ्ट किए जा चुके हैं। भारत में संभवत: ऐसा पहली बार होने जा रहा है, जब नील गायों की शिफ्टिंग किसी एक स्थान से दूसरे स्थान पर होगी। किसानों की समस्या को देखते हुए बिहार और पूर्वाेत्तर के अन्य राज्यों में नील गायों को मारने की अनुमति है, पर मध्यप्रदेश में इस जानवर को बचाने और किसानों की टेंशन खत्म करने के लिए नीलगायों की शिफ्टिंग की जा रही है। इसके लिए मध्यप्रदेश के वन विभाग ने पूरी योजना बना ली है। विभागीय अधिकारियों ने बताया कि नीलगायों की शिफ्टिंग में बोमा बाड़े का इस्तेमाल किया जाएगा। वन विभाग उन खेतों में बोमा खड़ा करेगा, जहां सबसे ज्यादा नीलगाय आती हैं। बोमा में चारा डाला जाएगा और फंसने पर स्पेशल वाहन से शिफ्ट किया जाएगा। उन्होंने बताया कि नीलगाय को हाका देकर बोमा तक लाने वाले ग्रामीण और कर्मचारी हाथ में सफेद कपड़ा लेकर और हेलमेट व चेस्ट गार्ड पहनकर चलेंगे। सफेद कपड़ा उसे गलत दिशा में जाने से रोकने में काम आएगा। जंगल से सटे खेतों में नीलगायों से रबी और खरीफ की फसलें बचाना मुश्किल हो रहा है। नीलगाय जंगल से 5 किमी दूर तक खेतों में खड़ी फसलों को चट कर लेती हैं। फिलहाल इस नुकसान की भरपाई मुआवजे से की जा रही है। फिर भी किसानों का गुस्सा वन विभाग के प्रति बढ़ता जा रहा है। छतरपुर, रीवा, पन्ना, मंदसौर, नीमच, रतलाम सहित मालवा के अन्य जिलों में यह समस्या सबसे ज्यादा है। रायसेन, विदिशा, नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, बैतूल जिले भी समस्या से अछूते नहीं हैं। इसलिए वन विभाग ने नीलगायों की शिफ्टिंग की तैयारी की है। पहले चरण की सफलता के बाद प्रदेशभर में यह अभियान चलाया जाएगा। बताया जाता है कि इसके लिए कुछ गांव के लोगों और वनकर्मियों को शिफ्टिंग की ट्रेनिंग  भी दी जा रही है। वन मंत्री गौरीशंकर शेजवार ने बताया कि अभी तक वन्यप्राणियों से फसलों को होने वाले नुकसान का मुआवजा राजस्व विभाग देता था। लेकिन अब वन विभाग देगा। दरअसल होता यह था कि मुआवजे का मामला राजस्व विभाग में जाकर लटक जाता था। इसको देखते हुए राज्य सरकार ने किसानों के प्रति संवेदनशील रवैया अपनाते हुए यह काम वन विभाग को दे दिया है। वन मंत्री ने बताया कि नीलगाय और सुअर से फसलों को बचाने के लिए सोलर पद्धति के इस्तेमाल पर भी जोर दिया गया है। किसानों को इस पद्धति का उपयोग करने की सलाह दी गई है। वह कहते हैं कि सरकार की कोशिश है कि किसानों की फसलों को किसी भी प्रकार की क्षति न पहुंचे। साउथ अफ्रीका की तर्ज पर दी जा रही ट्रेनिंग वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि अधिकारियों-कर्मचारियों को प्रशिक्षण साउथ अफ्रीका की तर्ज पर दिया जा रहा है। इसके तहत एक बोमा बनाकर प्रशिक्षित किया जा रहा है। इसका मतलब एक बाड़े से है। इसकी संरचना इस तरह से होती है कि एक बार इसमें नीलगाय आ जाए तो वह वापस नहीं जा सकती है और उसे आसानी से पकड़ लिया जाता है। अब तक यह प्रशिक्षण नील गायों पर नहीं किया है। यदि यह सफल होता है तो किसानों के साथ वन विभाग की भी बड़ी परेशानी का हल हो जाएगा क्योंंकि नीलगायों के आने पर किसान शिकायत करते हैं और वन विभाग ज्यादा कुछ कर नहीं पाता। इस प्रशिक्षण से किसानों को काफी फायदा होगा। खेतों में नील गायों के आने पर उन्हें केवल वन विभाग को सूचना देनी होगी। वन विभाग प्रशिक्षण के आधार पर आसानी से नीलगायों को पकड़कर वनक्षेत्र में छोड़ देंगे। -रजनीकांत पारे
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