17-Nov-2016 06:25 AM
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दिल्ली का दिल इतना बेदर्द नहीं है कि वह अपनों से दिल्लगी करें। लेकिन दिल्ली के शासक हमेशा से दिल्ली का शोषण करते आए हैं। यही कारण है कि दिल्ली हमेशा कराहती रहती है। वर्तमान समय में दिल्ली की कराह का कारण है उसके वातावरण में फैली दमघोटू गैसें। ये गैसे दिल्ली में कचरा जलाने, प्रदूषण और गाडिय़ों के धुएं से निकली हैं। लेकिन इन दमघोटू गैसों से निपटने का समाधान खोजने की बजाए दिल्ली सरकार इसे भी राजनीतिक मुद्दा बनाने में जुट गई है। आलम यह है कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इसके लिए केंद्र सरकार को दोषी मान रहे हैं। दिल्लीवासियों का दर्द यह है कि दूसरों को करोड़ों देकर वाह-वाही लूटने वाले का बौद्धिक खजाना जहरीली गैसों में छटपटा रही दिल्ली के लिए रिक्त नजर आता है। हमारे जिम्मेदारÓ नेताओं को दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा प्रेरणा लेनी चाहिए जिसने इस मामले में तत्काल कदम उठाते हुए लोगों से पर्यावरण के अनुकूल गुरुपूरब तथा उससे पूर्व की प्रभात फेरियों में पटाखे न चलाने की अपील की। दिल्ली में सबसे अधिक प्रदूषण दीपावली की आतिशबाजी से होता है। इसलिए सरकार की कोशिश यह होनी चाहिए कि आतिशबाजी दिल्ली के बाहर करने की व्यवस्था करें अन्यथा दिल्ली रहने लायक नहीं बचेगी।
अब तक डेंगू, चिकनगुनिया, बर्ड फ्लु के आतंक का शिकार रही दिल्ली का वातावरण इतना जहरीला कभी नहीं हुआ। प्रदूषण का स्तर मापने वाली मशीन की क्षमता से पार जा पहुंचे इस प्रदूषण का परिणाम हर तरफ धुआं-धुआं है। सामान्य से 20 गुना से भी अधिक प्रदूषित दिल्ली के समाचार से डरे बाहर से आने वाले पर्यटक अपना कार्यक्रम रद्द कर रहे है। लेकिन दिल्ली वाले कहां जाये इसके बारे में सोचने की जरूरत न तो सत्ता वालों को है, न विपक्ष को और न ही उन लोगों को है जो देश की सुरक्षा से खिलवाड़ कर रहे हैं। चहूं ओर व्याप्त यह निष्क्रियता इस बात का प्रमाण है कि हम स्वयं को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बताते नहीं थकते परंतु परिपक्वÓ के मामले में हम बहुत छोटे है। यहां सिर्फ और सिर्फ तंत्रÓ की लड़ाई है लोकÓ की चिंता तो दिखावा मात्र है। इसी दिखावे के कारण दिल्ली दिन पर दिन दूषित होती जा रही है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 20 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में 13 भारत के हैं। पीएम 2.5 (सांस के साथ जाने वाले पार्टिकल्स) का कांस्ट्रक्शन प्रति घन मीटर 10 माइकोग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए लेकिन दिल्ली में इसका स्तर 122 है। 75 लाख से अधिक निजी वाहनों की भीड़ से पिछले कुछ महीनों से दिल्ली प्रतिदिन ट्रैफिक जाम का शिकार होती है। एक घंटे से भी कम का सफर कई घंटों में तय होना रूलाता तो है पर चौकाता नहीं है। क्योंकि अब यह सामान्य सी बात है। तेजी से बढ़ती जनसंख्या के बोझ से बेहाल दिल्ली की यही नियति बन चुकी है। पर्यावरण में सुधार के लिए अधिक इवन-ओड के प्रयोग तो किये गये लेकिन जब तक सार्वजनिक यातायात में सुधार न हो, सफलता संदिग्ध ही रहती है। दिल्ली में उत्पन्न किये जा रहे धूल और धुएं के कण आसपास के राज्यों के लिए भी समस्या बन रहे हैं। इसलिए सरकारों को गंभीरता से इस समस्या को लेना होगा। दिल्ली का जहरीली गैसों का चैम्बर बनना उसी सस्ती लोकप्रियता का प्रतिफल है। हर सड़क रेहड़ी-पटरी, ई-रिक्शा से सकरी हो रही है। रही सही कसर लाखों वाहन पूरी कर रहे है। केवल प्रशासन ही नहीं नागरिक के रूप में हम सब भी कहीं न कहीं हम भी नियमों का पालन न करने के दोषी है। लगता है जैसेे आत्मघाती होने की हमने कसम खा रखी है। तो परिणाम भी हम सबको ही भुगतना पड़ेंगे। क्योंकि राजनेता तो अपने को बचाने के लिए बेहतर से बेहतर उपाय कर ही लेंगे।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी जताई चिंता
विश्व स्वास्थ्य संगठन की ताजा रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली विश्व को सबसे ज्यादा प्रदूषित नगर है। यहां के अस्पतालों में अधिकांश मरीज दमा, अस्थमा और सांस की बीमारियों के रोगी आते हैं। सांस और फेफड़े संबंधी रोगों के कारण होने वाली मौतों की दर भी सर्वाधिक है। आंखो में जलन, सांस लेने में कठिनाई, घुटन से परेशान लोगों को कोई राहत देने वाला नहीं। हां, दिवाली पर पटाखे चलाने के लिए कोसने वाले जरूर सक्रिय है। वैसे कारण कम नहीं है। पटाखे तो एक दिन छोड़े गये जबकि अनेक स्थानों पर वैध, अवैध फैक्ट्रियों की चिमनियों से निकलता धुआं, भलस्वा और गाजीपुर के सैनेट्री लैंड फिल पर कूड़े के जलते ढेर इसके कारण है। तो लाखों वाहनों का प्रदूषण भी एक वजह है। उस पर भी इन दिनों पंजाब और हरियाणा में धान की मशीनों से कटाई के बाद खेतों में बच गये ठूंठ भी जलाये जाते है। ताकि अगली फसल के लिए मैदान साफ हो सके। इन सब का धुआं दिल्ली को दूषित किए हुए हैं।
-अक्स ब्यूरा