17-Nov-2016 06:11 AM
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देश की पहली आईएसओ भोपाल सेंट्रल जेल ब्रेक कर आठ कैदियों के भागने और बाद में उनके एनकाउंटर में मारे जाने पर हो हल्ला मचा हुआ है। आलम यह है कि इस घटनाक्रम की हकीकत जानने के लिए चार जांचें चल रही हैं। यानी पूरा घटनाक्रम एक मिस्ट्री बनकर रह गया है। ऐसे में कई सवाल भी उठने लगे हैं। लेकिन भोपाल जेल ब्रेक की मूल वजह सरकार की जेलों के प्रति निष्क्रियता मुख्य कारण है। दरअसल सरकार ने कभी जेलों को अपनी प्राथमिकता में लिया ही नहीं है।
इसी का परिणाम है कि 30-31 अक्टूबर की दरम्यिानी रात में कुछ ऐसा घटनाक्रम हुआ जिसने मप्र के माथे पर कलंक का टीका लगा दिया है। हकीकत क्या है यह तो जांच रिपोर्ट आने के बाद ही पता चलेगा लेकिन इसको लेकर तरह-तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं। जो इस घटनाक्रम को एक मिस्ट्री में बदल रहे हैं। सवाल उठ रहा है कि रात को जेल ब्रेक कर भागे आतंकी सुबह तक भोपाल में क्या कर रहे थे? या कहीं ऐसा तो नहीं की पुलिस ने इन्हें सुबह होने तक दबा कर रखा हो? इतने शातिर किस्म के आतंकी एक साथ एक जगह पर क्यों पहुंचे और पुलिस ने सभी को मारने की बजाए कुछ को पकडऩे की कोशिश क्यों नहीं की? जब पुलिस एनकाउंटर कर रही थी तो उस समय वायरलेस सेट पर चल रही बातचीत को रिकॉर्ड क्यों किया गया? फिर उसे सोशल मीडिया पर किसने और क्यों डाला? सवाल यह भी उठ रहा है कि अगर सरकार की प्राथमिकता में जेल विभाग है तो प्रमुख सचिव के बार-बार लिखने के बाद भी विभाग को उपसचिव और अवर सचिव क्यों नहीं मिले। और इस घटना के बाद अब एक अधिकारी की पदस्थापना क्यों हुई। और सबसे अहम सवाल यह कि जिस जेल में 29 खूंखार आतंकी रखे गए थे उसकी दीवार इतनी छोटी क्यों है जिसे 40 सेकेंड में पार किया जा सके?
दरअसल यह सारे सवाल इस बात की ओर संकेत कर रहे हैं कि सरकार ने कभी भी जेल को अपनी प्राथमिकता में नहीं रखा है। यही कारण है कि जेल विभाग में हमेशा से ही कमजोर कार्यक्षमता वाला मंत्री रखा जाता है। इसका परिणाम यह होता है कि जेलें भ्रष्टाचार का गढ़ बनती जा रही है। भोपाल जेल में जेलर रहे पीडी सोमकुंवर और गांधी इसके उदाहरण है। भ्रष्टाचार के आरोप में दोनों को जेल जाना पड़ा। सोमकुंवर तो अभी भी जेल में हैं जबकि गांधी का देहांत हो गया है। आलम यह है कि जेल विभाग में डॉक्टर से लेकर ऊपर तक के पदों पर पैसों से नियुक्ति होती है। इसलिए भ्रष्टाचार पनपता है और जहां चाक चौबंद सुरक्षा व्यवस्था होनी चाहिए वहां ढिलाई बरती जाती है। जिसके कारण भोपाल जेल ब्रेक जैसी घटना हुई है। राज्य की जेलों में काम कर चुके अधिकारियों का कहना है कि मध्य प्रदेश की जेल व्यवस्था चरमरा रही है। भोपाल जेल की खामियों को दूर करने के लिए पूर्व अधिकारियों द्वारा कई बार पत्र लिखें गए हैं लेकिन इस ओर ध्यान नहीं दिया गया है। आज जब बड़ी घटना घटित हो गई है तो हर कोई चिंतत है। अभी भी भोपाल जेल में 21 खूंखार आतंकी हैं जिनमें से अबू फैजल सबसे कुख्यात है। ये आतंकी कभी भी किसी बड़ी घटना को अंजाम दे सकते हैं।
दो साल में एक बार जेल निरीक्षण करने पहुंचे कलेक्टर
जेलों की सुरक्षा को लेकर शासन-प्रशासन कितना सतर्क है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि तीन माह में एक बार जेल निरीक्षण करने का नियम होने के बाद भी भोपाल कलेक्टर निशांत वरवड़े बीते दो साल में महज एक बार जेल में गए थे। भोपाल ही नहीं बल्कि इसका ज्यादातर जेलों में पालन नहीं हो रहा है। जेलों में व्यवस्था को देखने के लिए संभागायुक्त-कलेक्टर्स के निरीक्षण का नियम है, लेकिन ज्यादातर जिलों में अफसर नहीं जाते हैं। अब जाकर सरकार ने निरीक्षण का रिकॉर्ड तलब किया है। जेल ब्रेक के बाद जेलों की प्रशासनिक खामियां लगातार सामने आ रही हैं। अगर भोपाल जेल का निरंतर निरीक्षण होता तो यह घटना घटित नहीं होती। क्योंकि जेल विभाग में सभी अधिकारी-कर्मचारी भ्रष्टाचार की गंगोत्री में हाथ धो रहे हैं। अगर कलेक्टर या संभागायुक्त औचक निरीक्षण करने जाते रहते तो विशेष सतर्कता बरती जाती। निरीक्षण के अभाव में जेल में क्या चल रहा था यह एनकाउंटर के बाद के निरीक्षण में सामने आ ही चुका है।
-सुनील सिंह